अल्पसंख्यकों की सियासत

भारत के औसतन मुसलमान इस बात को भूल रहे हैं कि आज के मुसलमानों के पूर्वज लगभग 18वीं और 19वीं सदी में हिन्दू थे। हिन्दुत्व अर्थात् भारतीय संस्कृति की मान्यता के अनुसार हर आदमी को अपनी उपासना पद्धति अपनाने की स्वतंत्रता है और इसे संस्कृति का किसी उपासना पद्धति से न तो कभी टकराव रहा है और न ही वर्तमान में है। अत: हिन्दुओं व मुसलमानों में उपासना पद्धति के भेद से राष्ट्रीय भावना में कोई फर्क आ गया है और समाज के एक वर्ग की हठधर्मी के कारण राष्ट्रीय भावना में अंतर आ गया है। भारतीयता विरोधी दकियानूसी मुस्लिम नेताओं के मुताबिक दुनिया में जो भाग दार-उल-हरब है उनके साथ युद्ध करके उन्हें उसे दारू-उल-इस्लाम में तबदील करना है। उसके लिए तो भारत भूमि दार-उल-हरब है। अगर यह भावना रहेगी तो फिर कैसे भाईचारा कायम होगा। साफ है कि मुस्लिम समाज आक्रमता व रूढ़िवादिता का खात्मा करना ही होगा। बदकिस्मती यह है कि आज मुस्लिम आक्रमता व रूढ़िवादिता के पक्षधर खाड़ी देशों से अपार धन भारत में भेजा जा रहा है ताकि भारतीय संस्कृति को गिराया जा सके और उसके ऊपर रूढ़िवादी इस्लामी, संस्कृति के लिए भारत में कोई स्थान नहीं है। इससे भारत का बहुत अहित हुआ है। 

-रामप्रकाश शर्मा