विशेष रेलगाड़ियों के किराये संबंधी भ्रम अभी भी बरकरार

नरेन्द्र मोदी सरकार का रिकार्ड रहा है कि जो सब लोग कहेंगे या कम से कम समझदार लोग जो बात कहेंगे, उसे हर्गिज नहीं मानना है, चाहे वह बात कितनी भी उचित और ज़रूरी क्यों न हो। इसीलिए  अब देश के लोगों को भूल जाना चाहिए कि उनके हाथ में पैसा आना है या उनके खातों में सरकार नकदी डालने जा रही है। इसका कारण यह है कि कई समझदार लोग यह सुझाव देने लगे हैं कि सरकार आम लोगों के हाथ मेें पैसा पहुंचाए। 
सबसे पहले जाने-माने अर्थ-शास्त्री और भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने राहुल गांधी से बातचीत में कहा कि सरकार आम लोगों के हाथ में पैसा दे। उससे लोगों को राहत मिलेगी और अर्थ-व्यवस्था भी संभलेगी। उन्होंने इसके लिए 65 हजार करोड़ रुपए का बजट घोषित करने को कहा। इसके बाद यही बात नोबल पुरस्कार विजेता अर्थ-शास्त्री अभिजीत बनर्जी ने भी राहुल गांधी से बातचीत में कही। ये दोनों अर्थ-शास्त्री हार्वर्ड वाले हैं और प्रधानमंत्री मोदी हार्वर्ड वालों को हमेशा फिसड्डी मानते रहे हैं। इसलिए तय है कि सरकार उनकी सलाह पर अमल नहीं करेगी। अभी तो ऐसा लग रहा है कि सरकार लोगों के पास से बचे-खुचे पैसे भी निकालने के जुगाड़ में जुटी है। शराब से लेकर पेट्रोल-डीजल तक के दाम बढ़ाए जा रहे हैं।
विशेष रेलगाड़ियों का किराया
प्रवासी मजदूरों को उनके गृह राज्य तक पहुंचाने के लिए चलाई गई विशेष ट्रेनों के किराए का रहस्य अभी तक रहस्य ही बना हुआ है। सवालों के जवाब नहीं मिले हैं, पर यह हकीकत जाहिर हो गई है कि जिन मजदूरों ने शुरुआती पांच दिनों में यात्रा की, उन्होंने अपनी जेब से किराए के पैसे भरे। विशेष ट्रेनों के बारे में खबरें एक मई से ही आने लगी थीं कि मजदूरों से किराया वसूला जाएगा और अतिरिक्त चार्ज भी लिया जाएगा। इसीलिए रहस्य यह है कि न तो केंद्र सरकार ने सफाई दी और न राज्य सरकारों ने स्थिति स्पष्ट की। पहली ट्रेन जब झारखंड के हटिया पहुंची तब तक झारखंड सरकार को भी अंदाजा नहीं था कि किराए का क्या खेल है। जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि कांग्रेस पार्टी किराया चुकाएगी तब जाकर सरकार की ओर से भी सफाई आई और भाजपा की ओर से भी। यह भी रहस्य है कि सरकार की ओर से सफाई रेल या वित्त मंत्रालय की बजाय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दी। यह रहस्य भी अभी नहीं सुलझा है कि जब रेलवे को किराया लेना ही नहीं था तो उसने कैसे किसी को मजदूरों से किराया वसूलने दिया या उसने इस बारे में पहले ही घोषणा क्यों नहीं कर दी कि मजदूरों को मुफ्त में उनके घर पहुंचाया जाएगा? जाहिर है कि सरकार और रेलवे दोनों सब्सिडी के तकनीकी नियमों के हवाले से मजदूरों को बरगलाने का काम कर रहे हैं। पंजाब में इस समय स्थिति यह है कि प्रवासी मज़दूरों के लिए चलाई जा रही गाड़ियों का किराया पंजाब सरकार अदा कर रही है।
पीएम केयर्स का इस्तेमाल
प्रधानमंत्री ने कोरोना वायरस के संक्रमण से लड़ने के लिए पी.एम.केयर्स नाम से जो नया फंड बनाया है, उसके पैसे का आखिर क्या इस्तेमाल है? यह तो किसी को पता नही है कि उस फंड मे कितना पैसा इकट्ठा हो गया है पर जिस तरह शुरुआत में ही टाटा, रिलायंस, वेदांता, जिंदल, पेटीएम जैसी कम्पनियों ने सैकड़ो करोड़़ रुपए का चंदा दिया और जिस अंदाज में प्रधानमंत्री ने लोगों से दान देने की अपील की, उसे देखते हुए अंदाजा लगाया जा रहा है कि 20-25 हजार करोड़ रुपए जमा हो गए होंगे। इसके अलावा भी सरकार ने कोरोना वायरस से लड़ने के लिए बहुत तरीकों से पैसा इकट्ठा किया है। फिर भी देश के अलग अलग हिस्सों मे फंसे मजदूरों को घर लौटने के लिए विशेष ट्रेनें चलाई जा रही हैं तो किराया या तो मजदूरों को खुद देना है या वे जिस राज्य के रहने वाले हैं, वह राज्य सरकार किराया चुकाएगी। 
कांग्रेस की झूठी उम्मीदें 
आम तौर पर नेता अपनी गलती या विफलता स्वीकार नहीं करते हैं, लेकिन मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने माना है कि उनको 22 विधायकों के टूट जाने का अंदाजा नहीं था। मगर इस स्वीकारोक्ति के बाद उन्होंने जो कहा, उसका कोई आधार नहीं है। उन्होंने कहा कि उप-चुनावों के बाद मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार नहीं रहेगी। लगता है, ऐसी आधारहीन उम्मीद कमलनाथ ने ही कांग्रेस आलाकमान को भी बंधाई हुई है। कांग्रेस के जानकार नेताओं का कहना है कि पार्टी आलाकमान को सचमुच लग रहा है कि 24 सीटों के उप-चुनाव के बाद राज्य में फिर से कांग्रेस की सरकार बन जाएगी। इसीलिए पार्टी ने कोरोना वायरस के संकट के बीच में राज्य का प्रभारी बदला। राहुल गांधी के करीबी दीपक बाबरिया को हटा कर पुराने और आजमाए हुए नेता मुकुल वासनिक को प्रभारी बनाया गया है। वह सोनिया गांधी की पुरानी टीम के सदस्य हैं। बहरहाल, कांग्रेस नेता मध्य प्रदेश को लेकर नाहक ही भ्रम पाल रहे हैं। प्रदेश मे भाजपा के 106 विधायक हैं और पूर्ण बहुमत हासिल करने के लिए पार्टी को 24 खाली सीटों में से सिर्फ  10 पर जीत हासिल करनी है। दूसरी ओर कांग्रेस को बहुमत हासिल करने के लिए सभी 24 सीटें जीतनी होंगी, जो कि नामुमकिन है। 
चलते-चलते
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी को भले ही जापान के क्योटो जैसा नहीं बना सके, मगर अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सम्मान में आयोजित ‘नमस्ते ट्रम्प’ कार्यक्रम की वजह से उनके गृह राज्य गुजरात का सबसे बड़ा शहर अहमदाबाद कोरोना संक्रमण के मामले में अब न्यूयॉर्क बनने जा रहा है।