कहां गायब हो गईं डीवीडी पुरानी फिल्में

इस पत्र को माध्यम से एक अत्यंत प्रासंगिक विषय को उठा रहा हूं। टी-सीरीज़, अल्ट्रा, शेमारू, मोजर बेयर, कैप्टेन, इंडस, बाम्बिनो, रिलायंस, एच.एम.वी. और फ्रैंडस नामक कम्पनियां प्रसिद्ध और पुरानी यादगार फिल्मों की डीवीडी, वीसीडी बनाती हैं ताकि लोग अपनी पसंद की फिल्में जब चाहें देख सकें। हिन्दी की पुरानी और यादगार फिल्में एक ऐसा खज़ाना हैं, हो हर फिल्म प्रेमी अपने पास संजो कर रखना चाहता है। पर अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि अब पुरानी फिल्में देखने के लिए फिल्म प्रेमियों को टीवी चैनलों पर निर्भर होना पड़ रहा है क्योंकि सिनेमाघरों ने भी पुरानी हिन्दी फिल्मों को दिखाना बंद कर दिया है। आज-कल वे जिस तरह की फिल्में दिखाने लगे हैं वे परिवार के साथ देखने लायक नहीं हेती। टीवी चैनल जो फिल्में अपनी मर्जी से चलाते हैं उनमें विज्ञापन इतनी अधिक मात्रा में भर दिए जाते हैं कि फिल्म का मज़ा ही जाता रहता है। जो फिल्म वे ‘मूवी आन डिमांड’ की श्रेणी में आफर करते हैं, उसके लिए प्रति फिल्म 50 रुपए चार्ज करते हैं। टीवी चैनल हर महीने भी दर्शकों से मंथली शुल्क वसूल करते हैं। 

-अक्षित अदित्य तिलक राज गुप्ता,
रादैर (यमुनानगर) हरियाणा।