भारत-नेपाल संबंध बढ़ रही दूरियां

छह वर्ष पूर्व मोदी सरकार ने सत्ता संभालते ही यह नीतिगत फैसला किया था कि दक्षिण एशिया के पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध बना कर रखेगी। आपसी भाईचारे के साथ इस क्षेत्र में सभी प्रकार से व्यापक सुधार किए जाएंगे। सार्क संस्था की स्थापना एवं इसे मज़बूत करने की भावना भी ऐसी ही थी, परन्तु देश को आज़ादी मिलने के बाद जहां पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध प्राय: बिगड़े रहे, वहीं बर्मा, नेपाल, श्रीलंका तथा बंगलादेश के साथ भारत के संबंध सुखद बने रहे हैं। वैसे बर्मा में राजनीतिक उथल-पुथल के कारण तथा रोहिंग्या शरणार्थियों के मामले पर तनाव अवश्य बना रहा।  इसी प्रकार श्रीलंका में तमिल संघर्ष के दौरान दोनों देशों में तनाव अवश्य पैदा हुआ। बंगलादेश के अस्तित्व में आने के बाद वहां भारी राजनीतिक परिवर्तन होने के बावजूद उसके साथ भारत के अच्छे संबंध बने रहे। जहां तक नेपाल का संबंध हैं, भारत के साथ इसके सदियों पुराने संबंध हैं। दोनों देशों के लोग एक-दूसरे के लिए कभी भी अपरिचित नहीं रहे। लाखों नेपाली भारत में निर्बाध रूप से आकर बसते रहे हैं। भारतीय मूल के  लोग भी नेपाल को हमेशा अपना समझते रहे हैं। दोनों देशों के बीच 1700 किलोमीटर की सीमा खुली रही है। लोग निर्बाध रूप से आते-जाते रहे हैं। वर्ष 1950 में हुई एक संधि के बाद यह मैत्री विशेष संबंधों में बदल गई थी। पिछले दशकों में नेपाल में भारी राजनीतिक परिवर्तन देखने को मिले हैं जिससे नेपाल में राजशाही से लेकर लोकतंत्र तक का सफर तय किया गया। लम्बे संघर्ष के बाद राजशाही से निजात पाने के बाद वहां भिन्न-भिन्न राजनीतिक पार्टियां गठबंधनों के रूप में सत्ता में आती-जाती रही हैं। नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी ने राजशाही के विरुद्ध लम्बा संघर्ष जारी रखा। अतीत में लम्बे सोच-विचार के बाद नया नेपाली संविधान अस्तित्व में आया। कम्युनिस्ट पार्टी के अतिरिक्त नेपाली कांगे्रस, राष्ट्रीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी का यहां बड़ा आधार बना रहा। दूसरी ओर कम्युनिस्ट पार्टी को अधिक जनसमर्थन मिलने के बाद यह के.पी. शर्मा ओली के नेतृत्व में मज़बूत आधार बना रही है। कम्युनिस्ट पार्टी तथा ओली का झुकाव काफी सीमा तक चीन की ओर रहा है। चीन भारत के प्रति अपनी नीतियों को ध्यान में रखते हुए नेपाल की अधिकधिक आर्थिक सहायता करता रहा है। चीन ने  ‘वन बैल्ट, वन रोड’ परियोजना के लिए भी नेपाल को भारी ऋण देकर अपने साथ जोड़ लिया है। भारत में अंग्रेज़ी शासन के समय नेपाल के साथ अनेक प्रकार की संधियां होती रही हैं जिनके माध्यम से दोनों देशों की सीमाएं भी निर्धारित की जाती रही हैं। यही संधियां अब तक दोनों देशों की सीमाओं का आधार बनी रही हैं।अब सीमाओं का विवाद एक बार फिर इसलिए बढ़ा है क्योंकि मई के पहले सप्ताह कैलाश मानसरोवर की यात्रा को और सरल बनाने के लिए भारत की ओर से 80 किलोमीटर लम्बी एक नई सड़क का उद्घाटन किया गया है। यह सड़क भारतीय क्षेत्र में से गुजरती है परन्तु नेपाल ने भारतीय प्रदेश उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के लिपुलेख और काला पानी को अपने इलाके घोषित करते हुए इस नई बनाई गई सड़क पर आपत्ति की है। इस संबंध में दोनों देशों में अनौपचारिक बातचीत भी चलती रही है, परन्तु अब नेपाल की ओर से इस मामले पर अपनाए गए कड़े रुख ने भारत को बहुत हैरान किया है। इससे भारत की परेशानी बढ़ गई है। यहीं बस नहीं, अब कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार ने अपनी ओर से अपना एक नया नक्शा तैयार किया है जिसमें लिपुलेख, काला पानी एवं लिम्पियाधुरा इलाकों के 353 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र को अपना दर्शाया है। यहीं बस नहीं, इस संबंध में संसद में एक संवैधानिक संशोधन हेतु बिल पेश करके निचले सदन से सर्वसम्मति के साथ उसे पास भी करवा लिया गया है। अब इसे ऊपरी सदन में पेश किया जाना है। नि:सन्देह नेपाल सरकार के इस कदम से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ सकता है जिसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जा सकता है। भारत को अपने इस पड़ोसी देश के साथ अपने पूर्व जैसे संबंध बनाए रखने के लिए भारी यत्न किये जाने की आवश्यकता होगी ताकि चीन के इरादों पर अंकुश लगाया जा सके।

   -बरजिन्दर सिंह हमदर्द