कोरोना से लड़ेगा स्वदेशी कोविड कवच एलिसा

जहां भारत सहित पूरी दुनिया कोरोना के कहर से त्रस्त है, अधिकतर देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है, वहीं दूसरी ओर बकौल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत आपदा को भी अवसर में बदलने में सफल हो रहा है। प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम अपने संदेश में पिछले महीने कहा था कि हमारे पास साधन हैं, सामर्थ्य है, दुनिया का सबसे बेहतरीन टैलेंट है, जिसका उपयोग कर भारत बेहतरीन उत्पाद बनाने के साथ सप्लाई चेन को भी आधुनिक बनाएगा। भारतीय वैज्ञानिक कोविड-19 के कारक सार्स-कोव-2 से जुड़े स्वदेशी इलाज विकसित करने के प्रयासों में निरन्तर लगे हैं और नई-नई स्वदेशी तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए इस मिशन में सफलतापूर्वक आगे भी बढ़ रहे हैं। कोविड-19 से निजात पाने के सफल प्रयासों की इसी कड़ी में ‘भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड’ (बीबीआईएल) के साथ मिलकर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् (आईसीएमआर) ने देश में ही कोरोना वैक्सीन तैयार करने के लिए काम शुरू कर दिया है, वहीं कोरोना जांच को लेकर भी भारत द्वारा सफलताएं हासिल की जा रही हैं। भारत ने अब स्वदेशी तकनीक पर आधारित पहली कोरोना जांच किट विकसित कर एक बड़ी सफलता पाई है क्योंकि अब इन किटों के लिए भारत की विदेशों पर निर्भरता कम हो जाएगी। भारतीय वैज्ञानिकों ने केवल एक महीने में ही यह किट विकसित करने का करिश्मा कर दिखाया है।पुणे स्थित वायरोलॉजी से जुड़े  शोध की तमाम उच्चतम सुविधाओं से सम्पन्न देश की सर्वोच्च प्रयोगशाला ‘राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान’ (एनआईवी) के वैज्ञानिकों ने देश की पहली स्वदेशी ‘एंटीबॉडी डिटेक्शन किट’ बनाई है, जो भारत में कोरोना संक्रमण के प्रसार पर नज़र रखने में सहायक होगी। कोविड-19 के एंटीबॉडी का पता लगाने वाली इस स्वदेशी जांच किट को ‘कोविड कवच एलिसा’ नाम दिया गया है। एलिसा का अर्थ है ‘एंजाइम-लिंक्ड इम्युनोसॉरबेंट एसे’। यह आमतौर पर जैव नमूनों में एंटीबॉडी, एंटीजन अथवा प्रोटीन और ग्लाइकोप्रोटीन जैसे अन्य यौगिकों को मापने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्रक्रिया है। यह एंटीबॉडी टैस्ट किट बनाने के लिए ही पहले एनआईवी के वैज्ञानिकों को मरीजों में कोविड-19 का कारण बनने वाले सार्स-कोव-2 वायरस को अलग करना पड़ा था। उसके बाद ही वैज्ञानिकों द्वारा कोविड-19 के लिए एंटीबॉडी का पता लगाने के लिए एलिसा परीक्षण विकसित किया गया।आईसीएमआर तथा एनआईवी के वैज्ञानिकों ने कोविड-19 से जुड़े एंटीबॉडी का पता लगाने के लिए आईजीजी एलिसा टैस्ट को विकसित करने और मान्यता देने के लिए कड़ी मेहनत की है। किट की सेंसिटिविटी और गुणवत्ता परखने के लिए मुम्बई में दो जगहों पर यह टैस्ट किए गए, जो काफी सफल बताए जाते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इस जांच किट में ऐसी उच्च संवेदनशीलता तथा सटीकता है, जिसके जरिये अढ़ाई घंटों में एक साथ 90 सैंपल टैस्ट किए जा सकते हैं तथा इस किट से जिला स्तर पर भी एलिसा आधारित परीक्षण आसानी से संभव है। इस टैस्ंिटग किट का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने के लिए अब आईसीएमआर ने अंतर्राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल कम्पनी ‘जाइडस कैडिला’ के साथ भागीदारी की है और ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया द्वारा इसके व्यावसायिक उत्पादन के लिए इस कम्पनी को अनुमति दी जा चुकी है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार यह किट काफी सस्ती पड़ेगी। कोरोना संक्रमण के मामले लगातार बढ़ने और तेजी से लोगों की बड़े पैमाने पर कोरोना जांच के लिए ऐसी किट की देश को बड़ी आवश्यकता इसलिए भी थी क्योंकि कुछ समय पहले भारत में चीन से आई किटें फेल हो गई थी। सही परिणाम नहीं देने के कारण आईसीएमआर द्वारा चीन से करीब पांच लाख कोविड-19 रैपिड एंटीबॉडी टैस्ट किट का ऑर्डर रद्द कर दिया गया था, इसलिए सटीक परिणाम देने वाली स्वदेशी रैपिड टैस्ंिटग किट की जरूरत महसूस की जा रही थी। ‘कोविड कवच एलिसा’ रैपिड टैस्ंिटग किट के ही समान है, जिससे जल्द ही बड़े पैमाने पर लोगों की जांच की जाएगी। मानव शरीर में कोरोना वायरस के एंटीबॉडी की मौजूदगी का पता लगाने वाली इस स्वदेशी जांच किट की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि सटीक परिणाम देने के साथ ही इससे कम समय में जांच संभव होगी और यह बड़ी आबादी वाले इलाकों में कोरोना संक्त्रमण के खतरे को लेकर निगरानी में अहम भूमिका निभाएगी।कोरोना संक्रमण की जांच के लिए ‘रियल टाइम पीसीआर’ टैस्ट (आरटीपीसीआर) कराना जरूरी होता है लेकिन विकसित की गई तकनीक एंटीबॉडी टेस्ट है। शरीर में कोरोना वायरस के संक्रमण का पता लगाने के लिए आरटीपीसीआर टैस्ट किया जाता है, जिसमें लोगों का स्वैब सैंपल लिया जाता है। एंटीबॉडी टैस्ट में उंगली से एक-दो बूंद रक्त लेकर उस नमूने की जांच की जाती है, जिससे पता लगाया जाता है कि शरीर के रोग प्रतिरोधक तंत्र ने कोरोना वायरस को बेअसर करने के लिए एंटीबॉडीज बनाए हैं या नहीं। कोई व्यक्ति किसी वायरस का शिकार होता है तो उसके शरीर में वायरस से लड़ने वाले एंटीबॉडीज बन जाते हैं। इन्हीं एंटीबॉडीज का पता लगाने के लिए रैपिड टैस्ट की जरूरत पड़ती है, जिसके परिणाम काफी कम समय में आ जाते हैं जबकि कोरोना जांच के लिए आरटीपीसीआर की रिपोर्ट में करीब 24 घंटे लगते हैं। आरटीपीसीआर टैस्ट को सर्वोत्तम टैस्ट माना जाता है लेकिन किसी आबादी में कितने लोगों का सामना वायरस से हुआ है, यह समझने के लिए एंटीबॉडी टैस्ट महत्वपूर्ण है। इसमें आरटीपीसीआर किट की तुलना में वॉयो-सैफ्टी और वॉयो-सिक्योरिटी की ज़रूरत भी न्यूनतम ही होती है और यह अन्य रैपिड टैस्ट किट की तुलना में भी अधिक प्रभावी है।

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