ब्रह्मास्त्र के समान होती है प्रार्थना

प्रार्थना का मतलब है कि प्रार्थी द्वारा परमात्मा या अपने इष्टदेव को किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए गुहार लगाना। प्रार्थना सभी धर्मों, सम्प्रदायों तथा मतों में एक प्रमुख प्रक्रिया है जिसके बिना धर्म अधूरा कहा जायेगा। प्रार्थना को अरदास, इबादत, प्रेयर भी कहा जाता है। अधिकांश शिक्षा संस्थानों में पढ़ाई का काम रोज की प्रेयर या प्रार्थना के बाद ही शुरु होता है। अपने-अपने धर्म में आस्था रखने वाले सभी लोग अपने इष्टदेव, परमात्मा, ईश्वर, वाहे गुरु, यीशू, पैगम्बर साहब आदि को सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सार्वभौमिक, सर्वज्ञात, पूर्ण परमात्मा, दीनदयाल, पतितपावन, कृपालु, सच्चिदानंद, बेआसराओं का आसरा आदि कहकर उसकी प्रार्थना करते हैं।वैसे तो मनुष्य अपना काम खुद करता है, अपनी समस्याएं भी यथा संभव खुद हल करने की कोशिश करता है। कभी-कभी मजबूरी में उसे दूसरों की मदद भी लेनी पड़ती है लेकिन जब सभी सहारे छूट जायें, काम बनने, समस्या हल होने की कोई उम्मीद न हो, तब मनुष्य अपने आराध्य को सहायता के लिए पुकारता है, प्रार्थना करता है। प्रार्थना एक ऐसी प्रक्रिया है जब किसी मुश्किल, असमंजस अथवा किंकर्त्तव्यविमूढ़ता में फंसा इंसान भगवान से सहायता की पुकार करता है। हिन्दू लोग रोज आरती करते हैं, मुसलमान लोग नमाज पढ़ते हैं, सिख लोग अरदास करते हैं। मकसद कोई न कोई तो होता है। कोई परमात्मा से अच्छी संतान चाहता है, किसी को नौकरी की तलाश है, किसी को अच्छे जीवन साथी की ज़रूरत है, किसी को धन तो किसी को जायदाद चाहिए, कोई बीमारी से छुटकारा चाहता है। प्रार्थना के लिए कोई जप करता है, कोई तप करता है। कोई योगासन करता है। कोई पहाड़ों पर तो कोई गुफाओं में तो कोई वनों में चला जाता है। सभी के प्रार्थना करने के अपने-अपने तरीके हैं।प्रार्थना अपने लिए, देशहित या विश्व के लिए भी की जा सकती है। ‘सर्वे भवन्तु, सुखिन:, सर्व मद्राणि पश्यन्तु, सर्व निरामय भवयु:’,यह हमारी दैनिक प्रार्थना का भाग ही तो है। ज़रूरी नहीं है कि प्रार्थना करने वाला पढ़ा लिखा, ज्ञानी, विद्वान या फिर धार्मिक ग्रंथों का ज्ञाता हो। प्रार्थना एक दिल की ऐसी ईमानदार पुकार है जो कि परमात्मा से संबंध रखती है। धन्ना भगत एक सीधा साधा अनपढ़ व्यक्ति था जिसने पत्थर में भी परमात्मा के दर्शन कर लिये। प्रार्थना दिल की पुकार है जो कि एक प्रार्थी एक रजिस्टर्ड पत्र के तौर पर परमात्मा को भेजता है जिसका सकारात्मक जवाब मनमाफिक इच्छापूर्ति के तौर पर ज़रूर मिलता है। लेकिन प्रार्थना की जाने की पहली शर्त यह है कि इससे किसी का अहित न हो। प्रार्थना करने वाला अहंकारी, कामवासना, लोभ, ईर्ष्या आदि के वश में होकर प्रभु को न पुकार रहा हो हालांकि अतीत में हमारे धार्मिक ग्रंथों में ऐसे उदाहरण भी देखने को मिलते हैं जब परमात्मा की प्रार्थना/भक्ति करने वाले को जब मनवांछित वरदान मिला तो उसने दूसरों का अहित करने की कोशिश की। ऐसे में प्रभु को अवतार लेकर उसका संहार करना पड़ा। रावण ने शिवजी की पूजा करके जब अमरत्व प्राप्त किया और जुल्म किये तो श्री रामचन्द्र को अवतार लेकर दशानन को यमपुरी नहीं पहुंचाना पड़ा। अगर प्रार्थना करने वाला अहंकारी होगा तो परमात्मा भी मनोकामना पूरी नहीं करेंगे ? हमें याद रखना चाहिए कि प्रार्थना के साथ-साथ मनुष्य को संबंधित इच्छा को पूरा करने के लिए कर्म भी ज़रूर करना चाहिए। कहावत मशहूर है कि परमात्मा उनकी ही मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करते हैं। सिखों के दशम गुरु श्री गुरु गोबिन्द सिंह जहां ईश्वर प्राप्ति के लिए प्रार्थना को आधार मानते थे, वहां शत्रुओं का मुकाबला करने के लिए तलवार भी रखते थे। परमात्मा यह कहता है कि मैं इच्छा पूरी तो कर दूंगा, लेकिन तुम कोशिश तो करो। शेर जंगल का राजा होता है, शिकार तो उसे भी करना पड़ता है। शिकार उसके पास स्वयं नहीं आता।ब्रह्मा, विष्णु, महेश संसार के मालिक हैं, प्रार्थना/मनन तो वे भी करते हैं। हम सभी की यह धारणा है कि परमात्मा साकार है या फिर निराकार। सनातन धर्म के अनुयायी मूर्ति पूजा करके परमात्मा की प्रार्थना कर उसे पाने और इससे अपनी इच्छाओं की पूर्ति करते हैं जबकि परमात्मा को निराकार मानने वाले लोग उसे ओउम् आदि के द्वारा स्मरण कर प्रार्थना करते हैं। जब मन डांवाडोल हो जाए, जब मुसीबत आने पर सभी अपने पराये छोड़ जायें, जब बीमारी असाध्य होने पर डॉक्टर भी जवाब दे जाएं, तब प्रार्थना रूपी ब्रह्मास्त्र के द्वारा चमत्कार होते देखे गये हैं। परमात्मा आस्थावान मनुष्य का वो धन है जो कि बड़े-बड़े हारे हुए जीवन के युद्ध जीतने में मदद करता है। हां, जब कोई मनुष्य मुसीबत में हो तो उसके लिए जहां प्रार्थना की ज़रूरत होती है, वहां उसे ठोस सहायता की भी ज़रूरत होती है। भूखे को रोटी, बीमार को इलाज, बेसहारा को सहारे की भी ज़रूरत होती है। सच्चे मन से प्रार्थना करने वाला किसी का बुरा न तो सोच सकता है और न  ही कर सकता है। प्रार्थना परमेश्वर की तरफ  आत्म केन्द्रित होकर करनी चाहिए। सच्ची प्रार्थना की यही निशानी है कि भगवान का ध्यान करते समय आप उसी के सम्पर्क में ऐसे आ जाओ कि आनंदित होने के बाद आपकी अश्रु धारा रुके ही नहीं। आप उसी में ही खो जाओ। प्रार्थना करने वाला प्रभु नाम में रंगा व्यक्ति शांत, संयमी, तृप्त, मेरी-तेरी से दूर, मोह-माया से परे हो जाता है, वह सबसे अलग होता है। सच्चे मन से जरा प्रार्थना करके तो देखो, चमत्कार हो ही जायेगा।

 (सुमन सागर)