देश के लिए कूटनीतिक ब्रह्मास्त्र है एस-400 प्रणाली

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की हाल में महज 6 घंटे की संक्षिप्त भारत यात्रा के महत्व की पहली परत अब दुनिया की समझ में आ गई है, जब भारत को बहुप्रतीक्षित रूसी रक्षा कवच एस-400 की न केवल पहली खेप मिल चुकी है बल्कि इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इस आधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम की पांच में से मिलने वाली पहली यूनिट को पंजाब सेक्टर में तैनात भी कर दिया गया है। आधुनिक वायु सेनाओं के इस सबसे ताकतवर एयर डिफेंस सिस्टम की देश को चार यूनिटें और मिलनी हैं, जिनमें से दूसरी यूनिट अगले कुछ महीनों के अंदर ही मिल सकती है। इस तरह एस-400 भारतीय सेना की वो ताकत है, जिसके बारे में रूस के रक्षा विशेषज्ञों का ही नहीं बल्कि स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों तक का मानना है कि यह दुनिया में मौजूद सबसे अच्छा एयर डिफेंस सिस्टम है। 
इसमें लगा एडवांस राडार 400 किमी की दूरी तक लक्ष्य को देख सकता है। इसलिए यह ड्रोन से लेकर बैलिस्टिक मिसाइल तक, हर एक चीज का सामना करने की अचूक काबिलियत रखता है। इतना एडवांस सिस्टम तो अमरीका के पास भी नहीं है, लेकिन उन देशों के पास है, जिन्हें रूस ने दिया है और वे देश हैं अल्जीरिया,चीन और तुर्की। भारत और रूस के बीच एस-400 की 5 यूनिट के लिए साल 2018 में करीब 40 हज़ार करोड़ रुपए की डील हुई थी। इस डील के बाद अमरीका तो खुले तौर पर बेचैन हो गया था और चीन बिना हो-हल्ला किये परेशान था। अमरीका की बेचैनी तो इस हद तक थी कि उसने पहले प्यार से मनाना चाहा, फिर धमकी दी और जब धमकियों से भी काम नहीं चला तो कई किस्म के अप्रत्यक्ष व्यापारिक प्रतिबंध भी लगाये, लेकिन भारत अपनी रक्षा जरूरतों को लेकर बिना कोई समझौता किये दृढ़ रहा। 
इसी दृढ़ता का नतीजा है कि देश को एस-400 की पहली खेप मिल चुकी है और दूसरी खेप अगले साल अगस्त से पहले मिलने की उम्मीद है। कूटनीतिक अनुमान तो यही कहते हैं कि अब जबकि भारत को एस-400 की पहली खेप मिल चुकी है और उसे तैनात भी कर दिया गया गया है, शायद अमरीका अब ज्यादा हो-हल्ला नहीं करेगा, क्योंकि वह हमारी दृढ़ता को जान चुका है इसलिए वह अब अब हमारे खिलाफ  अपनी अकड़बाजी से खुद अपना ही नुकसान नहीं करना चाहेगा क्योंकि भले अमरीका अपने आपको दुनिया की अकेली महाशक्ति कहता हो, लेकिन आज की तारीख में दुनिया का आर्थिक और भू-राजनीतिक संतुलन कुछ इस तरह का बन गया है कि अमरीका को हमारी ज्यादा ज़रूरत है बनिस्बत हमें अमरीका की ज़रूरत के। 
लेकिन इस पूरे परिदृश्य में जिस समीकरण की आमतौर पर अभी तक चर्चा नहीं हुई, चाहे चूक के कारण या विषयांतर समझ लिये जाने की अतिरिक्त सजगता के कारण, वह है भारत को मिलने वाले एस-400 का चीनी समीकरण। पूरी दुनिया जानती है कि पिछले एक दशक से चीन और रूस एक दूसरे के बहुत करीब हैं। रणनीतिक तौर पर आज की तारीख में रूस भारत के मुकाबले चीन के ज्यादा करीब है और जिस तरह से चीन को हमसे काफी पहले एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम मिल चुका है, उससे यह बात भी साबित होती है कि हमसे पहले उसके साथ रूस का करार हो चुका था।
निश्चित रूप से जब चीन को 2018 में भारत और रूस के बीच इस रक्षा कवच के सौदे की बात पता चली होगी तो उसने अपनी तरफ  से हर हाल में इस डील को कैंसिल कराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी होगी लेकिन एक तो भारत और रूस के बीज इतना लम्बा, जांचा-परखा दोस्ती का रिश्ता है, और दूसरी तरफ  भारत जैसे उभरते हुए ताकतवर लोकतांत्रिक देश और असीमित संभावनाओं वाले बाज़ार को रूस किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ सकता। 
चीन आज चाहे कितना ही ताकतवर क्यों न हो, लेकिन कोई नहीं जानता कि चीन किसके साथ कब कैसा सुलूक करेगा और कोई यह भी नहीं जानता कि चीन के दिलो-दिमाग में दुनिया को लेकर क्या चल रहा है। किसी के साथ ऐन मौके पर चीन कैसा व्यवहार करेगा, इसकी गारंटी से भविष्यवाणी कोई नहीं कर सकता। चीन के इसी रहस्यात्मक चरित्र को देखते हुए भारत की कीमत पर रूस उससे दोस्ती नहीं निभा सकता, भले आज की तारीख में भारत के मुकाबले रूस और चीन के रिश्ते ज्यादा मजबूत दिखते हों। इसलिए अगर यह कहा जाए कि पिछले दिनों रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन छह घंटे की तूफानी यात्रा पर भारत इसलिए आये थे कि एस-400 की पहली खेप के बाद अगर चीन और उसके कूटनीतिक रिश्तों में कोई दरार पड़ती है तो भारत ऐसे मौके पर रूस के साथ दृढ़ता से खड़ा रहेगा, इसकी गारंटी लेने, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। 
अब यह सौ फीसदी सत्य है कि चीन के किसी भी पलटवार कदम की स्थिति में भारत को साधने के लिए ही रूसी राष्ट्रपति की यह भारत यात्रा थी क्योंकि एस-400 भले दुनिया का कैसा एयर सिस्टम हो, लेकिन इस बात को शिद्धत से समझना होगा कि भारत महज लड़ाई का हथियार नहीं बल्कि एक कूटनीतिक ब्रह्मास्त्र भी है। चीन ने जिस तरह से इस सिस्टम को भारत की तरफ सहरद पर तैनात किया, अगर उसके मुकाबले के लिए भारत के पास यह सिस्टम नहीं होगा तो चीन जीने नहीं देगा। अब जबकि चीन की हर हरकत का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए देश उसी के स्टाइल में लैस हो रहा है और वैसी ही ताकत हासिल कर रहा है, तो बहुत संभव है कि देश की यही ताकत चीन के विरुद्ध नेचुरल डिटेरेंस बन जाए।
इस नज़र से देखें तो रूस से मिला एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम भारत और चीन के रिश्ते को स्थिर और बराबरी का बनाने में बड़ी भूमिका निभा सकता है। जिस तरह से दो परमाणु देश एक दूसरे के विरुद्ध कोई भी फैसला जल्दबाजी और लापरवाही में नहीं करते, उसी तरह से दो ऐसे देश जिनके पास एक बराबर मजबूत एयर सिस्टम हो, वे दोनों देश भी एक दूसरे को हल्के में लेने का साहस नहीं कर सकते। हम तो पहले ही चीन को हल्के में नहीं ले रहे थे लेकिन अब एस-400 के बाद शायद चीन भी ऐसा ही करे। इस मायने में हमारे लिए इस हथियार का सामरिक से ज्यादा रणनीतिक महत्व है। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर