प्रदूषण की जंग में कब तक राहत देगा लॉकडाउन का ब्रह्मास्त्र

भारतीय मेडिकल काउंसिल ने पिछले साल के आखिर में यह अनुमान लगाया था कि साल 2020 में, देश में कैंसर से प्रभावित लोगों की संख्या 1.7 लाख होगी जबकि मरने वालों की संख्या 88,000 से ऊपर होगी। इसी साल यानी 2020 में ही वायु प्रदूषण से मरने वाले लोगों की अनुमानित संख्या 10 लाख से ऊपर आंकी गई थी, क्योंकि साल 2017 में ही हिंदुस्तान में वायु प्रदूषण से 12.4 लाख लोगों की मृत्यु हो चुकी थी। वायु प्रदूषण से मरने वाले लोगों में सबसे बड़ी संख्या राजधानी दिल्ली, यूपी, हरियाणा,पंजाब, बंगाल और महाराष्ट्र के लोगों की रहती है। पर्यावरण थिंक टैंक, स्टेट ऑफ इंडियाज एन्वायरमेंट (एसओई) के मुताबिक देश में हर साल 1 लाख से ज्यादा बच्चों की मौत वायु प्रदूषण के कारण हो जाती है। साथ ही देश में वायु प्रदूषण के कारण लोगों की औसत आय 1.7 वर्ष की कमी हो जाती है। इन तमाम खौफनाक आंकड़ों और अनुमानों के बीच लॉकडाउन कुछ ऐसे सकारात्मक अनुमान लेकर आया है, जो किसी भी हिंदुस्तानी को खुश कर सकते हैं। इनमें पहली बड़ी खुशखबरी वह है जो वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों के तमाम अध्ययनों और अनुमानों के बिना भी राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के रहिवासी इन दिनों महसूस कर रहे हैं। जी, हां! कोरोना वायरस के विरुद्ध छेड़ी गई जंग में पहले 21 दिन के संपूर्ण लॉकडाउन ने और अब 19 दिनों के पूरक (संपूर्ण) लॉकडाउन के चलते उत्तर भारत विशेषकर दिल्ली और उसके आसपास की हवा पूरी तरह से साफ  हो गई है। इसे यूं भी कह सकते हैं कि यह हवा  इन दिनों प्रदूषण से मुक्त है। लोग अब सांस लेते हुए न सिर्फ अच्छा महसूस कर हैं बल्कि ताजगी और उत्साह का भी उन्हें एहसास होता है। नि:संदेह इसका सबसे बड़ा कारण संपूर्ण लॉकडाउन ही है क्योंकि लॉकडाउन के चलते अकेले राजधानी दिल्ली के करीब 40 लाख वाहन सड़कों पर नहीं निकल रहे। मालूम हो कि दिल्ली की सड़कों पर हर दिन दुपहिया, तिपहिया और चारपहिया वाहन कुल मिलाकर 40 से 45 लाख तक होते हैं। कभी कभी यह संख्या बढ़कर 50 लाख तक पहुंच जाती है। दिल्ली देश का वह महानगर है, जिसकी सड़कें देश में सबसे अच्छी और चौड़ी हैं। लेकिन राजधानी दिल्ली में ट्रैफिक इतना ज्यादा होता है कि पीक आवर्स में कारों की रफ्तार औसतन 20 किलोमीटर प्रति घंटे से भी कम की होती है। कई इलाकों में तो यह सुबह शाम 4 से 5 किलोमीटर प्रतिघंटे ही रह जाती है लेकिन इन दिनों हमेशा वाहनों से दबी राजधानी दिल्ली की सड़कें पूरी तरह से सूनी पड़ी हैं। लॉकडाउन में सिर्फ  जरूरी कामों के लिए ही सड़कों पर वाहन उतर रहे हैं, बाकी किसी भी वजह से वाहनों को सड़क में आने की छूट नहीं है। नतीजा यह हुआ है कि दिल्ली में बड़े पैमाने पर वायु प्रदूषण खत्म हो गया है। इन दावों में भले कुछ झोल हो, लेकिन अगर राजधानी दिल्ली को देखें तो पिछले सालों में राजधानी दिल्ली में प्रदूषण पीएम 2.5 का स्तर कभी भी 250 से नीचे नहीं गया था, दीपावली जैसे मौकों पर तो यह 700 से ऊपर भी पहुंचता रहा है लेकिन इन दिनों यह 100 से भी नीचे पहुंच गया है, जोकि ऐतिहासिक रूप से चमत्कारिक है। हालांकि इस संबंध में अभी कोई अंतिम आंकड़ा नहीं आया लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का अनुमान है कि प्रदूषण में आयी इस कमी के चलते देश में इस साल लाखों लोगों की होने वाली असामयिक मृत्यु टल जायेगी। लॉकडाउन का यह सबसे बड़ा फायदा है, जिसे दिल्ली के लोग ही नहीं, पूरी दुनिया के लोग चमत्कार की तरह देख रहे हैं। लॉकडाउन शुरू होने के एक महीने पहले 19 फरवरी के आसपास राजधानी के आनंद विहार इलाके में प्रदूषण 2.5 का स्तर 404 था। जो किसी खास अवसर जैसे दीवाली या हरियाणा और पंजाब में जलायी जाने वाली पराली के बिना सबसे ज्यादा था। लेकिन उसके दो महीने बाद राजधानी में प्रदूषण का स्तर अब तक के रिकॉर्ड में सबसे नीचे रहा। अब इतना तो तय है कि लोगों ने जब एक बार साफ सुथरा वातावरण देख लिया है, तो शायद भविष्य में इसके लिए वे समाज के स्तर पर और सरकार के स्तर पर भी फिर से हासिल करने के लिए कोशिश करें। हो सकता है, लॉकडाउन के बाद जब दैनिक जीवन की गतिविधियां फिर से चालू हों तो लोग प्रदूषण से बचाव वाले उपाय अपनाएं। अगर कोरोना वायरस के चलते जीवन में आयी लॉकडाउन की त्रासदी ऐसा कर पाने में सफल रही तो निश्चित रूप से यह इस त्रासदी का एक बड़ा वरदान होगा।