राम मंदिर के साथ राम को आत्मसात् करना भी ज़रूरी!

राम आस्थावानों के रोम-रोम में बसे हैं। आज से नही युगों युगों से। शबरी ऐसी ही आस्थावान थी। तभी तो राम, शबरी के हो गए और शबरी के झूठे बेर तक खा लिए। आज शबरी जैसी आस्था तो कम ही देखने को मिलती है लेकिन राम का मंदिर बनने से यह उत्साह हर उस व्यक्ति में है जिसके घट में  राम हैं। तभी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने राम मंदिर का ताला खुलवाया, तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहा राव के रहते राम मंदिर मुद्दा परवान चढ़ा और कार सेवकों के संघर्ष से राम मंदिर मुद्दा कानून की चौखट से होते हुए कानून की ही बदौलत निर्माण के लक्ष्य तक आ पहुंचा है। मंदिर जितना बड़ा और भव्य होगा, उतना ही राम भक्त हर्ष की अनुभूति करेंगे लेकिन आवश्यक यह भी है कि मंदिर बनने के साथ साथ हम राम को आत्मसात भी करें। राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं तो हम भी राम का आदर्श स्थापित करें। राम के उच्च चरित्र को दर्शाती ‘रामायण’ हिंदू धर्म की एक प्रमुख आध्यात्मिक पुस्तक है परंतु बिडंबना यह है कि रामायण को बार-बार पढ़ने के बावजूद उसमें लिखे आध्यात्मिक मूल्यों की धारणा नहीं हो पाती और हम राम के नाम रूप पर बहस करते रहते हैं। इससे रामायण रचना की सार्थकता कभी भी सिद्ध नहीं हो सकती है। रामायण को ऐसे परिप्रेक्ष्य में समझने की आवश्यकता हैं जिससे इसमें लिखी हर बात आज के समय में सार्थक सिद्ध हो सके।महर्षि बाल्मीकि ने आध्यात्मिक जागृति व ईश्वरीय अनुभूति के द्वारा दिव्य व महान ग्रन्थ रामायण को रचा, जिससे वह स्वयं भी महान हो गए। वह व्यक्ति दूसरों का शुभचिंतक हो जाता है, जो  स्वयं की अनुभूतियों को समाज कल्याण हेतु प्रयोग कर लोगों में एक नई  सोच फैलाने का कार्य करता है। स्वयं का जीवन परिवर्तन होने पर महर्षि  बाल्मीकि ने समाज में आध्यात्मिक जागृति लाने का बीड़ा उठाया। मोह माया में फंसे लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान रोचक लग सके, इसके लिए उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान को एक रोचक कथा के रूप में प्रस्तुत किया जिसमें मुख्य नायक व नायिका राम और सीता को रखा गया। इसी प्रकार महाकवि तुलसी दास ने ‘राम चरित मानस’ के माध्यम से राम को आदर्श व मर्यादा का पर्याय सिद्ध किया। महर्षि बाल्मीकि ने त्रेता युग के बाद  समाज में आध्यात्मिक क्रांति लाने हेतु राम व सीता का नाम व चरित्र प्रयोग किया जो पूरे संसार के प्रेरक बन गए। हम रामायण में लिखित सब पात्रों को उसी तरह से स्वीकार करते हैं जैसे रामायण को पढ़ने पर जान पड़ता है। 
रामायण का वास्तविक अर्थ जानने के लिए रामायण के विभिनि पात्रों को निम्नलिखित रूप में समझ कर पढ़ें तो आपको उसमें लिखा एक एक बिंदू समझ आ आएगा । राम वास्तव में परमात्मा ही हैं जो संगम युग में धरा पर अवतरित हो कर अपनी बिछुड़ी हुई सीता (सतियुगी आत्मा) को रावण (विकारों) के चंगुल से छुड़ाने आत हैं। सीता हर वह आत्मा है जो वास्तव में पवित्र है परंतु आज रावण के चंगुल में फंसी होने के कारण संताप झेल रही है। रावण, पतित व विकार युक्त सोच व धारणा ही वह रावण है जिसमें फंसी हर आत्मा आज विकर्मों के बोझ तले दबती जा रही है । पाँच मुख्य विकार पुरुष के व पाँच विकार स्त्री के ही रावण के दस शीश हैं । हनुमान वास्तव में धरा पर अवतरित हुए परमात्मा को सर्वप्रथम पहचानने वाली आत्मा  ही हैं परंतु हर वह आत्मा जो ईश्वर को पहचान दूसरी आत्माओं को धरा पर आए ईश्वर का संदेश देने का निमित बनती है, वह भी हनुमान की तरह ही है ।साधारण दिखने वाली मनुष्य आत्मा ईश्वर को पहचान कर, संस्कार परिवर्तन द्वारा पुरानी दुनिया या रावण राज्य को समाप्त करने में राम का साथ देने वाली संसार की 33 करोड़ आत्माएं ही वानर सेना है । लंका, पुरानी पतित दुनिया जहां हर कार्य देहभान में किया जाता है, वही रावण नगरी लंका है। आज हमें इसी सत्यता को आत्मसात कर विकर्मों को त्याग कर राम की तरह पवित्र बनना है। तभी हम राम के समान देवत्व प्राप्त कर सकते हैं और राममय हो सकते हैं।