खुली खिड़की

‘आप’ ‘मैं असित हूं। आपके विभाग में लेक्चरार हूं।’ 
‘ओह माई गॉड, टू यंग...आप तो मेरे सर हैं।...
निशा पहली ही झलक में असित की ओर आकर्षित हो गई। धीर-धीरे निशा व असित नज़दीक हो गए। ये नज़दीकियां कब प्यार में बदल गई निशा को पता भी न चला।
आज निशा का दिल प्रैक्टिकल में नहीं लग रहा था क्योंकि असित सर छुट्टी पर थे। टैस्ट ट्यूब में कैमिकल मिलाकर गर्म करते हुए कैमिकल अचानक निशा के चेहरे पर आ गिरा। अफरा-तफरी मच गई। निशा को अस्पताल पहुंचाया गया। इस हादसे ने निशा को कुरूप बना दिया। वह अपनी एक आंख खो बैठी। असित सर अफसोस करने आए। निशा ने पढ़ाई छोड़ दी तथा घर वापिस चली गई। निशा अब किसी से बात न करती। अपने आप को कमरे में बंद रखती। खिड़कियों पर पर्दा डालकर अंधेरों से बातें करती। निशा सोच रही थी, ‘असित सर ने कोई फोन नहीं किया। न ही दोबारा कभी आए। फिर शीशे में अपना चेहरा देखती...डर जाती...।
इस तरह दो वर्ष गुजर गए।
निशा तुमसे मिलने कोई मिलिट्री ऑफिसर आया है।’ मां ने कहा-
रहने दो मां। मुझे किसी से नहीं...।
‘बेटी। मैंने कहा...पर बहुत जिद कर रहा है।’
‘मैं हूं निशा। युवराज...देहरादून से मिलिट्री ऑफिसर की ट्रेनिंग समाप्त होने के बाद मेरी पोस्टिंग तुम्हारे शहर में हुई है।’
निशा ने दोनों हाथों से चेहरा ढक लिया। 
‘मैं जानता हूं निशा...तुम्हारे साथ वक्त ने अच्छा नहीं किया। निशा मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ। मैं तुम्हें हमेशा खुश रखूँगा...।
निशा युवराज के गले लग गई। निशा ने कमरे की खिड़की आज पहली बार खोली। सारा कमरा उजाले से भर गया।
-तहसील नालागढ़, जिला सोलन (हिमाचल प्रदेश)
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