नहीं थमा पराली जलाने का सिलसिला

विगत लगभग 20 वर्ष से पंजाब एवं हरियाणा में धान की पराली एवं गेहूं की नाड़ को फसल की कटाई के बाद खेतों में ही जलाने का सिलसिला जारी है। प्रत्येक वर्ष इस संबंध में की गई अपीलें, दलीलें एवं व्यवस्था नकारा होकर रह जाती हैं। आश्चर्य इस बात का है कि न तो सम्बद्ध विभाग ही इसे लेकर कोई प्रभावशाली ढंग-तरीका खोज सके हैं, न ही बड़े स्तर पर किसान इस गम्भीर समस्या को लेकर कोई सहयोग ही दे रहे हैं तथा अपने हठ पर ही कायम हैं। सम्भवत: वे इस बात से ब़ेखबर हैं कि आग लगाने का यह सिलसिला पूरे समाज को ही प्रभावित नहीं करता, अपितु उनके अपने घर-परिवार एवं गांव भी बुरी तरह से इसकी चपेट में आ जाते हैं। 
अब जब विगत लगभग 7 महीने से पूरा देश कोरोना महामारी की चपेट में आया हुआ है तथा इस महामारी ने एक बार तो सामान्य जन-जीवन को तहस-नहस करके रख दिया है। देश की आर्थिकता विनाश के कगार पर आ गई है। अब तक 60 लाख से अधिक लोग इससे प्रभावित हो चुके हैं। मौतों की संख्या लगभग एक लाख तक पहुंच चुकी है तथा नित्य-प्रति हज़ारों लोग इसका शिकार हो रहे हैं। ऐसे समय में फैलाया गया किसी भी प्रकार का प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए और भी घातक हो सकता है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त राजधानी दिल्ली में भी फैले इस प्रदूषण का प्रभाव देखा जा सकता है। इस मौसम में हवा की गुणवत्ता बेहद खराब हो जाती है। महामारी के होते हुये इस बार धान की कटाई को लेकर दोनों ही प्रदेशों की सरकारों ने यह सुनिश्चित बनाने के लिए पूरा ज़ोर लगाया था कि फसल की कटाई के बाद किसान अपने खेतों में अवशेषों को आग न लगाएं। इससे ज़मीन की गुणवत्ता भी नष्ट होती है। धुआं फैलने से होने वाली दुर्घटनाओं में भी मानव जानें जाती हैं तथा बढ़े हुये प्रदूषण का प्रत्यक्ष प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है। अब जबकि महामारी का ज़ोर पूर्व की भांति बना हुआ है, तो उस समय फैलने वाले धुएं के प्रदूषण से इसके और बढ़ने की भी पूरी आशंका उत्पन्न हो गई है। दूसरी तरफ हालत यह है कि अभी धान मंडियों में आना ही शुरू हुआ है, कि किसानों ने खेतों में आग लगानी शुरू कर दी है। इस संबंध में उप-ग्रहों के माध्यम से लाल हो रही धरती की तस्वीरें लोगों को डराने लगी हैं। आश्चर्य इस बात का है कि अब तक पंजाब में लगभग 17 हज़ार कम्बाइनों के मालिक उनके साथ पराली सम्भाल (सुपर स्ट्रा) व्यवस्था की मशीनरी लगवाने में भी सफल नहीं हो सके। किसानों को हैप्पीसीडर मुहैया करवाने में भी अभी पूरी सफलता हासिल नहीं की जा सकी।
चाहे ये योजनाएं भी बनती रहीं कि इलाकों के अनुसार संयुक्त सहकारी यत्नों से ये छोटी मशीनें खरीद ली जाएं, परन्तु इस क्षेत्र में भी पूरी सफलता नहीं मिल सकी। गांवों की पंचायतों, सरपंचों, नम्बरदारों एवं सम्बद्ध अफसरों को इस गम्भीर समस्या को रोकने में सहयोगी बनाने के यत्न अब तक सफल नहीं हुए तथा न ही सम्बद्ध किसानों पर दर्ज किये गये  मामले उन्हें इस ओर से हटा सके हैं। हम समझते हैं कि ऐसे गम्भीर मामले को यदि पूरे यत्नों के साथ सरकार एवं समाज मिल कर हल न कर सके तो यह हमारी समूची व्यवस्था की गिरावट एवं हमारी नकारात्मक मानसिकता का ही प्रदर्शन है जिसका प्रभाव किसी न किसी रूप में आगामी पीढ़ियों पर पड़ने से नहीं रोका जा सकेगा।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द