चीनी विस्तारवाद के विरुद्ध कुऐड की लामबंदी

आज अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर तीन बड़े खतरे मंडराते हुये दिखाई दे रहे हैं। कोरोना महामारी ने दुनिया भर में चिंता पैदा की हुई है। इस्लामिक आतंकवादी संगठनों ने सभी बड़े-छोटे देशों को चुनौती दी हुई है। इसके साथ ही भारत-प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है। चीन के बढ़ रहे इस प्रभाव के संदर्भ में ही भारत, अमरीका, जापान एवं आस्ट्रेलिया की टोक्यो में सम्पन्न हुई बैठक को देखा जा सकता है। इन देशों के समूह को कुऐड कहा जाने लगा है। कुछ वर्षों से इस संगठन ने मजबूत होना शुरू किया है। पिछले दशकों में चीन प्रत्येक दृष्टिकोण से मजबूत देश बनकर उभरा है। उसने दुनिया भर में व्यापार करना शुरू किया। खुली मंडी के दौर में दुनिया के अधिकतर देशों ने चीन के साथ व्यापार के लिए प्रबल समर्थन दिया है। भारत भी इन देशों में शामिल है। परन्तु चीन ने अपनी बढ़ती हुई ताकत के साथ जिस प्रकार भारत-प्रशांत महासागर के क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाया है, उसे इसलिए ़खतरनाक समझा जाने लगा है क्योंकि चीन ने अपने इन पड़ोसी देशों के साथ सीमांत झगड़े भी बढ़ाये हैं तथा समुद्र के विशाल क्षेत्र पर भी अपना अधिकार जमाना शुरू कर दिया है। इसने चीन सागर के साथ लगते देशों को भारी चिंता में डाल दिया है। इस संबंध में काफी समय पूर्व उसका वियतनाम के साथ युद्ध भी हो चुका है तथा समुद्र के साथ सटे लगभग एक दर्जन अन्य देशों के साथ भी उसके झगड़े शुरू हो गये हैं। जापान भी इनमें शामिल है। भारत के साथ उसका सीमांत झगड़ा विगत 60 वर्षों से चलता आया है। चीन की ऐसी विस्तारवादी नीति को भांपते हुये प्रशांत क्षेत्र के देश चिंतित हुये दिखाई देते हैं। जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिन्जो आबे ने भी चीन की नीतियों के प्रति सतर्कता वाली नीतियां अपनाई थीं। अब जबसे जापान के नये प्रधानमंत्री योशीहिदे सुका बने हैं, तो उन्होंने भी सीमांत वास्तविकता को भांपते हुये अपनी पूर्व सरकार की ओर से चीन के प्रति अपनाई गई नीतियों का अनुसरण करना शुरू कर दिया है। जापान चीन के बढ़ते हुये प्रभाव को कोरोना महामारी से भी अधिक खतरनाक समझता है। इसीलिए इन देशों ने इस मामले के प्रति चिंता को सांझा करते हुये नई योजनाबंदी तैयार करने का मन बनाया है। इस बैठक में चीन की ़खतरनाक गतिविधियों पर चिंता प्रकट की गई है। भारत ने प्रशांत महासागर के क्षेत्र में शांति, सुरक्षा एवं समृद्धि की बहाली के लिए आपसी सहयोग एवं सहमति प्रकट की है तथा यह भी कि भारत-प्रशांत महासागर क्षेत्र को एक मुक्त और सांझी प्रणाली दिया जाना ज़रूरी है, जिसमें स्वतंत्र एवं उन्मुक्त समुद्री व्यापार को अधिमान दिया जाए। इन चार देशों के संगठन के साथ दक्षिणी कोरिया, न्यूज़ीलैंड एवं ताइवान ने भी समर्थन व्यक्त किया है। वियतनाम भी इसमें शामिल होने की तैयारी करते हुये दिखाई दे रहा है। इस बैठक में चीन की दबावपूर्ण, विस्तारवादी एवं आर्थिक कब्ज़े वाली नीति पर गहन विचार-विमर्श किया गया। इस स्थिति को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पैदा हुआ बड़ा खतरा घोषित किया गया है तथा यह भी कि इस खतरनाक रुझान का सैनिक संधि के माध्यम से मुकाबला किया जाना ज़रूरी है। चीन की नीति यह भी रही कि वह अपनी आर्थिक मजबूती के दृष्टिगत छोटे एवं पिछड़े देशों को अपने साथ गांठने के यत्न में रहता है। इन देशों के साथ बहुत-सी योजनाओं संबंधी इसने आर्थिक समझौते कर लिये हैं जिनके माध्यम से आगामी समय में वह इन्हें अपने दबाव तले बनाये रखने का यत्न करेगा। उत्पन्न हुई ऐसी स्थिति एवं समय में भारत की ओर से इस संगठन को मजबूत करने के लिए किये जा रहे यत्नों की समझ आ सकती है। ऐसे प्रयत्न ही चीन के खतरनाक इरादों पर  अंकुश लगाने में समर्थ हो सकते हैं। यदि चीन को इसकी समझ आ जाती है तो विश्व को किसी और बड़े सम्भावित  युद्ध के खतरे से बचाया जा सकता है। आज विश्व को किसी बड़े युद्ध की नहीं, अपितु प्रत्येक दृष्टिकोण से उन्नति एवं निर्माण की आवश्यकता है, जो व्यापक स्तर पर व्याप्त गरीबी, बेरोज़गारी एवं महामारी को बड़ी सीमा तक कम करने में सहायक हो सकेगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द