ऐसे हो सकता है पराली की समस्या का समाधान

पंजाब के फतेहगढ़ साहिब जिले की अमलोह तहसील के निकटवर्ती गांव में 70 एकड़ (30 एकड़ अपनी+40 एकड़ ठेके पर) ज़मीन पर कृषि करता उद्यमी बलबीर सिंह जड़िया स्वयं आज़माइशें कर खोज करता रहता है। जड़िया खेत में अवशेष तथा पराली को आग नहीं लगाता। पराली को लाभदायक बनाने के ढंग उसने ढूंढ लिए हैं। पराली को बागों में तथा सब्ज़ियों पर बिखेरता है। मलचिंग करके पानी की बचत करता है। पराली को चारे के तौर पर भी इस्तेमाल करता है। वह पराली का चारा बना कर भी उपयोग करता है। इसका कुतरा करके बरसीम के साथ मिला कर पशुओं को चराता है। पराली को अमोनिया से शोध कर इसे पौष्टिक बना कर पशुओं को खिलाता है। इस तरह वह फीड पर होने वाले खर्च बचा लेता है और खेत में पराली को आग लगाने से छुटकारा पाता है। अमोनिया से शोध कर चारे की पौष्टिकता हरे चारे के समान हो जाती है। वह कहता है कि पराली को चारे के तौर पर गौशालाओं में प्रयोग किया जाए तो एक भी आवारा पशु सड़कों पर घूमता नज़र नहीं आएगा। हरियाणा, राजस्थान तथा उ.प्र. में गुज्जर गऊओं को चारा पराली के कुतरे के साथ मिला कर खिलाते हैं। पशुओं में दूध की कोई कमी नहीं आती। जड़िया कहता है कि पशु पराली को इस कारण भी नहीं खाते क्योंकि एक क्ंिवटल पराली में 15 किलो के लगभग रेत या मिट्टी होती है। यदि इसे धो कर कुतरा करके हरे चारे के साथ मिला कर पशुओं को दिया जाए तो वे खुशी से इसे खा लेंगे। जड़िया कहता है कि खरीफ में उसे धान-बासमती के अतिरिक्त कोई अन्य फसल की बिजाई लाभदायक नहीं लगी। उसने मक्की की बिजाई करके देखी, गन्ने की बिजाई भी करके देखी परन्तु इन फसलों को पानी की ज़रूरत कम समय में पकने वाली धान की किसमों तथा बासमती से कम नहीं। पानी बचाने के लिए वह बासमती किस्मों की काश्त की सिफारिश करता है और मांग करता है कि केन्द्र सरकार इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) तय करे ताकि इसे लगाने हेतु किसान उत्साहित हों और पंजाब में जो भूमिगत पानी का स्तर कम होने की समस्या आ रही है, उस पर काबू पाया जा सके। जड़िया ने 13 भैंसें तथा दो गऊएं भी रखी हुई हैं परन्तु डेयरी फार्मिंग के तौर पर उसने इसे लाभदायक नहीं पाया। परिवार को शुद्ध रूप में दूध, दहीं, घी तथा लस्सी मिल जाते हैं और वे स्वस्थ रहते हैं। कभी जड़िया के परिवार में कोई सदस्य बीमार नहीं हुआ। वह बाज़ार से कोई वस्तु लेकर घर में इस्तेमाल नहीं करता। अपने लिए फल तथा सब्ज़ियां स्वयं उगाता है और मित्रों-रिश्तोदारों को भी खिलाता है। साधारण काश्तकार से वह अब बढ़िया बीज उत्पादक बन गया है। दूसरे किसामों को धान एवं गेहूं के शुद्ध तथा अच्छे बीज मुहैया करता है। करनाल गन्ना केन्द्र से उसे गन्ने की 12029 किस्म ला कर किसानों को इसका बीज उपलब्ध किया। 
रबी में अब जड़िया जी.बी.डब्ल्यू. 187, डी.बी. डब्ल्यू. 222, एच.डी.-3086, पी.बी. डब्ल्यू. 725 और एच.आई.-1620 गेहूं की किस्में बीजने की योजनाबंदी कर रहा है। गत वर्ष उसने डी.बी. डब्ल्यू 187 किस्म के 1 किलो बीज की बाट पर ‘डिबलिंग’ तकनीक से बिजाई कर 26 क्ंिवटल उत्पादन प्राप्त किया, जो बीज अब वह किसानों को उपलब्ध करवा रहा है। वह कहता है कि वह लेज़र लैवलिंग करवा कर गेहूं की बिजाई बीज कमखाद ड्रिल का प्रयोग करके 40 किलो प्रति एकड़ बीज से करेगा क्योंकि उस द्वारा किये गए परीक्षणों के आधार पर इस विधि से बिजाई करने से बीज की  गुणवत्ता अधिक अच्छी बनती है। नदीनों पर वह ‘अवकीरा’ एवं ‘शगुन’ नदीन प्रयोग करेगा ताकि गुल्ली डंडे की समस्या न आए। अवकीरा का खर्च 2500 रुपये प्रति एकड़ तक आने के कारण वह इसे थोड़ी सी ज़मीन पर ही प्रयोग करेगा।  आम बिजाई में वह शगुन नदीन नाशक प्रयोग करने की सिफारिश करता है परन्तु इस नदीन नाशक को बर्बट, डब्ल्यू. एच.-1105 तथा उन्नत पी.बी. डब्ल्यू. 550 गेहूं की किस्मों पर नहीं प्रयोग करना चाहिए। वह किसानों को बेचने हेतु अपने फार्म पर अनाज से अधिक बीज पैदा करता है परन्तु कहता है कि बीज का धंधा इतना लाभदायक नहीं रहा।  जड़िया कहता है कि निकट भविष्य में धान-बासमती एवं गेहूं का फसली चक्कर कायम रहेगा। इनके स्थान पर बड़े स्तर पर किसी अन्य फसल की काश्त होना अभी संभव नहीं।