ज़हरीली हवा का स्थायी समाधान तलाश किया जाना चाहिए

‘नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम’ के तहत पांच साल पहले देश के शताधिक शहरों की हवा सुधारने का लक्ष्य लेकर काम शुरू किए गए और हजारों करोड़ के बजट खर्चने के पश्चात आज भीषण वायु प्रदूषण के दौर में उसके सुझाए रास्तों, बनाये रोड मैप और विकसित तकनीकी के आंकलन का समय है। इस पर भी गंभीरता से सोचना ज़रूरी है कि आखिर हर साल आने वाली इस आवर्ती समस्या का कोई स्थायी, टिकाऊ समाधान तलाश न किए जाने के पीछे कारण क्या हैं?
पिछले पांच सालों से केंद्र सरकार ने ‘नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम’ के तहत चुनिंदा 132 शहरों की हवा साफ  करने का अभियान चला रखा है। इस कार्यक्रम के ट्रेकर ने दीपावली की मध्यरात्रि से अगले दिन दोपहर तक देश के 11 बड़े शहरों की हवा जांची तो इनका पीएम 2.5 का स्तर 902 से 999 तक निकला, जो अतिशय खतरनाक है। इसी बीच पहले से ही वायु प्रदूषण से ग्रस्त 18 शहरों के अलावा देश के 52 दूसरे शहरों की हवा बुरी तरह से बिगड़ गई जिसमें यूपी, बिहार, उड़ीसा, बंगाल के कई शहर शामिल हैं। बेशक इन शहरों के निवासियों की किस्मत राजधानी में रहने वालों जितनी बढ़िया नहीं है, जहां रह रहकर कृत्रिम बारिश की बात हो। यहां कोई कृत्रिम बारिश नहीं होने वाली। साल दर साल वायु प्रदूषण से त्रस्त और ग्रस्त होने वाले नये शहरों में लगातार इजाफा होता जा रहा है, जबकि इसके मूल और बड़े कारक वही जाने पहचाने पुराने ही हैं। नये कारक, कारण बहुत कम ही जुड़ रहे हैं। वाहनों, कारखानों, पराली जलाने, ईंट भट्टे से निकली गैसें, धुआं, परिवहन प्रसूत या फिर भवन अवसंरचना से निकलने वाली धूल तथा दो चार दिन के लिए दीवाली के पटाखे। 
कुछ क्षेत्र विशेष या शहर ऐसे भी है जहां इन धूल, धुएं गैसों का प्रकार परिमाण, स्रोत किंचित बदल जाता है पर ऐसा नहीं है कि हर साल दो चार प्रदूषणकारी तत्व या कारक इसमें और जुड़ रहे हों। हां, उन्हीं प्रदूषणकारी तत्वों की मात्रा और अनुपात हमारी हवा में बढ़ता जा रहा है इसका साफ  मतलब यह है कि प्रदूषण के स्रोतों, कारकों, उनके आशंकित सक्रियता के समय, परिमाण तथा हवा में उनके अनुपात को हम ठीक तरह से पहचान चुके हैं। पर उनको नियंत्रित नहीं करते, यदि स्रोतों पर पहले ही प्रभावी रोक लगा दें, उनके उचित विकल्प और पर्याप्त निराकरण की व्यवस्था करें तो बहुत संभव है कि प्रदूषण का स्तर उस स्तर तक काबू में आ जाए कि वह नागरिकों के जानमाल, सेहत के लिए अत्यंत घातक की श्रेणी में न आए। पर हम इस सालाना अल्पकालिक आपदा का महज तात्कालिक, अस्थाई इलाज ही ढूंढ़तें हैं, स्थाई अथवा टिकाऊ नहीं, जबकि अब इसी की आवश्यकता है।   
प्रश्न यह है कि जब हमें पता है कि यह हर साल आने वाली आवर्ती आपदा है, तो फिर इसका मुकम्मल इलाज क्यों नहीं करते? हर साल अपने पुराने रूप स्वरूप से अधिक व्यापक, घातक चेहरे के साथ सामने आता है। हम कुछ नए पुराने टोटके आजमाते है, शर्तिया फेल हो चुके कुछ विवादित तरीकों का इस्तेमाल करते हैं, कुदरत और भगवान से वर्षा, तेज़ हवा की गुहार लगाते हैं। मौसम बदलता है और अगले वायु प्रदूषण के दौर तक के लिए फिर सब कुछ भूल जाते है। सरकारी संस्थान इसके मैकेनिज्म या तौर तरीके को भलीभांति समझ चुके हैं। वायु प्रदूषण किस क्षेत्र, राज्य शहर में किस कारण से क्यों और किस हद तक बढ़ता है, इतने सालों में वे देख और आंक चुके हैं। इनके विविध तथा पर्याप्त आंकड़े भी उनके पास हैं। 
मौसम विभाग के पास इनके तमाम कारकों, कारणों को विश्लेषित कर खतरे के प्रति पहले से आगह करने की सलाहियत है। पूर्वानुमान पश्चात किस स्थान या क्षेत्र विशेष के लिए कौन से ठोस, टिकाऊ और स्थाई कदम उठाए जा सकते हैं, जिससे सालभर वायु प्रदूषण न्यूनतम रहे और विशेष कालखंड में यह सामान्य से ऊपर या खतरनाक के स्तर तक न पहुंचे, यह तय करना तब मुश्किल नहीं। मगर यह अबूझ है कि इस दिशा में किसी स्थायी समाधान तक न पहुंचने के पीछे क्या कारण हैं? वायु प्रदूषण की चुनौतियों के दीर्घकालिक और स्थायी समाधान हेतु इसके विभिन्न उपायों को संयोजित करने वाली एक समेकित बहुआयामी रणनीति आवश्यक है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 2018 में वायु प्रदूषण पर नियंत्रण हेतु समयबद्ध रणनीति के तहत राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्त्रम को अखिल भारतीय स्तर पर लागू किया। ‘सभी के लिए स्वच्छ हवा’ को एक आंदोलन बनाया। मंत्रालय ने 2023 हेतु ‘स्वच्छ वायु के लिये एक साथ’ थीम रखा और 132 शहरों की हवा सुधार का लक्ष्य। 
मंत्रालय ने पांच साल के लिए राष्ट्रीय, राज्य स्तरीय कार्य योजनाओं के कार्यान्वयन सम्बंधी जो लक्ष्य रखा था, इस साल पूरा हो रहा है। इस कार्यक्त्रम के तहत राज्य और शहर प्रशासन को स्थानीय स्तर पर वायु प्रदूषण से प्रभावी और कुशल तरीके से निपटने के लिए वैज्ञानिक व्यावहारिक रणनीति बनाने और उपाय करने में मदद करना के अलावा उन्हें इस क्षेत्र में तकनीकी और वैज्ञानिक देना है। लक्ष्य है कि 2024 तक वायु प्रदूषण के स्तर में 30 फीसदी की कमी लाने के साथ आगे के लक्ष्य के लिए रोडमैप तैयार करना। इसकी केंद्र स्तरीय संचालन समिति, निगरानी समिति और कार्यान्वयन समिति की कार्य प्रगति की समय समय पर सामूहिक समीक्षा की जाती रही है।    
बड़े शहरों में सार्वजनिक परिवहन में ई-बसों को शामिल कर ऐसा सुधार करना कि लोग इसे अपनाएं,सख्त उत्सर्जन मानकों को लागू करना, बिजलीचालित वाहनों पर ज़ोर, सीएनजी स्टेशनों, चार्जिंग प्वाएंट्स बढ़ाना, कारपूलिंग का कल्चर विकसित करना, जन-जागरूकता बढ़ाने जैसे काम सरकार कर तो रही है, लेकिन प्रयास सुस्त दिखते हैं। सरकारें परिवहन में अत्यंत विकसित और सुरक्षित ईंधन का इस्तेमाल तथा कैटालिस्ट कन्वर्टर्स, पार्टिकुलेट फिल्टर वाली न्यूनतम उत्सर्जन वाले उन्नत इंजन प्रौद्योगिकियों को अपनाने की ओर बढ़ती नहीं दिखती। जैव, हाइड्रोजन, रीन्यूबल ईंधन जैसे विकल्पों की ओर गति भी पर्याप्त तेज नहीं है। सौर ऊर्जा का अधिकतम प्रयोग हो या फिर स्वच्छ हवा एजेंडा 2030 को लागू करने के प्रावधानों पर अमल, सिग्नल फ्री सड़कें बनाना, अच्छे फुटपाथ और साइकिल लेन बनाकर साइकिलिंग और पैदल चलने को व्यापक स्तर पर बढ़ावा देना कहीं नहीं दिखता। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर