कोरोना के बाद फिर चमकने को तैयार सूर्य नगरी कोणार्क

अभी संदेह है कि हर साल की तरह नये साल की पूर्व संध्या पर इस बार पुरी और कोणार्क में पर्यटकों का रेला दिखेगा क्योंकि लॉकडाउन भले खुल गया हो, मंदिरों में आना जाना भी चाहे भले शुरू हो गया हो, लेकिन डर अभी नहीं गया। बहुत कम लोग ही बाहर निकल रहे हैं लेकिन सूर्य नगरी कोणार्क को उम्मीद है कि वर्षांत तक कोरोना का डर खत्म हो जायेगा और एक बार फिर से उड़ीसा में पर्यटन की बहार होगी।पुरी से मात्र 35 किलोमीटर दूर कोणार्क का विश्वविख्यात सूर्य मंदिर गंग वंश के शासकों के कला प्रेम और कला निष्ठा की गौरव गाथा है। इस आश्चर्यजनक धरोहर के बारे में कवीन्द्र रवीन्द्र ने कहा था, ‘यह पत्थरों की भाषा है, जिसने मनुष्यों की भाषा को भी शिकस्त दे दी है।’ यह सूर्य मंदिर, जिसे ब्लैक पेगोडा भी कहा जाता है, स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना है। यहां की शिल्पकला की एक विशेषता है कला की सूक्ष्मता (बारीकी)। कला की यह बारीकी मंदिर की दीवारों पर स्पष्ट दिखाई देती है। यहां पशु-पक्षियों, देवी-देवताओं, मनुष्यों, अप्सराओं तथा लताओं की अद्वितीय पच्चीकारी देखकर पर्यटकों का मन रम जाता है। वे घंटों तन्मय होकर इसे देखते रहते हैं। ‘आईने अकबरी’ के अनुसार सूर्य मंदिर 9वीं सदी में केसरी वंश के किसी राजा ने बनवाया था। बाद में गंगवंशीय राजा नरसिंह देव (प्रथम) ने (1236-64) अपने विजय स्मारक के रूप में इसका जीर्णोद्वार कराकर देश को कोणार्क का अनुपम उपहार दिया। इसके निर्माण काल में श्रेष्ठ-प्रेम तथा रस-साहित्य का भी सृजन हुआ। कोणार्क शहर का निर्माण राजा नरसिंह देव ने बड़े-बड़े वास्तु शिल्पकारों की देखरेख में बारह वर्षों में पूरा किया था। यद्यपि समय की मार ने इसके अनेक हिस्सों को तोड़फोड़ डाला है, जिसकी पिछले दिनों मरम्मत चल रही थी। एक तरह से कोरोना का लॉकडाउन सूर्य मंदिर के लिए सही रहा जब इसके जीर्णोंद्वार का काम जोर शोर से सम्पन्न हुआ। माना जा रहा है कि कोरोना के बाद का सूर्य मंदिर नयी धज के साथ निखरा नया मंदिर है। कब जाएं : वैसे तो कोणार्क किसी भी मौसम में जाया जा सकता है, किंतु इस समय जिस तरह की कोरोना संबंधी अनिश्चितता है, उसमें जब भी जाएं, पूरी तरह से पता करके जाएं कि मंदिर में लोगों को जाने देते हैं या नहीं। कैसे जाएं : यहां का निकटतम हवाई अड्डा भुवनेश्वर है। देश के हर बड़े शहर से यहां के लिए उड़ानों की सुविधा है। भुवनेश्वर से कोणार्क 65 किलोमीटर दूर है और वहां से नियमित बसें उपलब्ध रहती हैं। टैक्सियां भी उपलब्ध रहती हैं और उड़ीसा पर्यटन विकास निगम पर्यटन टूर भी संचालित करता है। रेल से आने वाले पर्यटकों के लिए कोणार्क का नज़दीकी रेलवे स्टेशन पुरी है। पुरी रेलवे स्टेशन से बस या टैक्सी द्वारा कोणार्क सहजता से पहुंचा जा सकता है।सूर्य मंदिर : कोणार्क सूर्य मंदिर के कारण ही जग प्रसिद्ध है। इसके 24 अलंकृत चक्के भारतीय बारह महीनों के पखवाड़ों की ओर इंगित करते हैं। प्रत्येक चक्के का व्यास 2.94 मीटर है। इन चक्कों में लगी 8-8 तीलियां दिन के 8 पहरों की ओर संकेत करती हैं। जगती के अग्रभाग में बने सात घोड़े सात दिनों की ओर इशारा करते हैं। कहते हैं कि इस सुंदर कलाकृति को 12 हज़ार कुशल कारीगरों ने बारह वर्षों के कठिन परिश्रम से तैयार किया था। तत्कालीन उत्कल राज्य के इन बारह वर्षों की सारी की सारी आय इसी मंदिर को बनवाने में खर्च हो गई थी। मंदिर में लगे विशालकाय पत्थरों को देखकर विस्मय होता है कि इतने बड़े-बड़े पत्थर आए कहां से, जबकि कोणार्क में तो क्या इस पूरे इलाके में भी दूर-दूर तक कोई पर्वत नहीं है। संग्रहालय : सूर्य मंदिर के पास ही स्थित भारतीय पुरातत्व विभाग के इस संग्रहालय में कोणार्क की दुर्लभ कलाकृतियाें को रखा गया है। रिसर्च करने वाले इसका लाभ उठाते हैं। यह सुबह 9 बजे से शाम के 5 बजे तक खुला रहता है और शुक्रवार को बंद रहता है।समुद्र तट : सूर्य मंदिर से मात्र तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित यहां का समुद्र तट विश्व के सुंदरतम समुद्र तटों में एक है। समुद्र की उठती-गिरती लहरों को देखकर असीम आनंद मिलता है। मीलों फैली सफेद रेत पर एक-दूसरे को पकड़ लेने की होड़ में भागते पर्यटकों को अनायास ही अपने बचपन के सुखमय दिनों की याद हो आती होगी। क्या खरीदें : अपने इस पर्यटन को दीर्घजीवी बनाने के लिए यहां के मुख्य बाज़ार से हाथ की बनी छतरियां, दीवार सज्जा की वस्तुएं आदि खरीद सकते हैं। तारकशी के आभूषण, सोपस्टोन को तराशकर बनाई गई मूर्तियां, लकड़ी के रंग-बिरंगे खिलौने आदि भी यहां से खरीदे जा सकते हैं।

                                                                                                                                  -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर