रंग-मंच जिसकी सांसों में बसा है नवनिन्दरा बहल

नवनिन्दरा बहल पंजाबी नाटक और रंग मंच के क्रमवार हस्ताक्षर कपूर सिंह घुम्मण और माता मंजीत कौर की लाडली बेटी, जिसे थिएटर, अभिनय, निर्देशन और नाटक रचना से जुनून की हद तक प्यार है। 30 अक्तूबर, 1949 को जन्मी माता-पिता से नाटक रंग मंच की गुढ़ती लेकर बड़ी होने वाली नवनिन्दरा को आई.सी नंदा जैसे महान नाटककारों का साथ मिला। चार-पांच वर्ष की उम्र में वह अपने माता-पिता के साथ रिहर्सलों व नाटक खेलने जाया करती थी। सात-आठ वर्ष की उम्र में बाल कलाकार नवनिन्दरा के अभिनय से खुश होकर 1960-61 में उस समय के गवर्नर विद्यालंकार जी ने उन्हें 100 रुपये का इनाम दिया। वह शायद नवनिन्दरा का पहला अवार्ड या सम्मान था। अच्छी सूरत और सीरत की मालिक नवनिन्दरा अपने माता-पिता  के नेतृत्व को अपने लिए शुभ मानती है वहीं साथ ही अपने हमसफर ललित बहल जो प्रसिद्ध रंगकर्मी और नाटक निर्देशन के माहिर हैं, उनके साथ ने उनकी कला को और निखारा और भावनात्मक व भौतिक तौर पर विकास किया। तेरी मेरी एक जिंदड़ी उंज वेखन नूं असी दो की पंक्ति इस दम्पति पर पूरी तरह सही बैठती है। उन्हें अपने बेटे कन्नू बहल की प्रतिभा पर भी गर्व है, जो कि स्थापित फिल्म निर्देशक हैं और पारिवारिक परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं। नाटक लेखिका, स्क्रीन प्ले, निर्देशिका, अभिनेत्री डा. नवनिन्दरा बहल का समूचा जीवन अध्यापन के साथ जुड़ा है। डा. नवनिन्दरा को 38 वर्षों का अध्यापन अनुभव है। उन्होंने पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला के प्रोफैसर और प्रमुख के तौर पर सेवाएं निभाईं। 1974 से दूरदर्शन पर बतौर एंकर, फिर 1974 से 1980 का पूरा दशक दूरदर्शन और नाटक के साथ जुड़ी रहीं। 1990 के दशक नैशनल दूरदर्शन पर भी कई नाटक किये। वह समझती है कि दूरदर्शन के युवा होने से उनकी कला युवा हुई है। ‘नोरा’ नाटक ने उनके भीतर एक अलग ही चाव पैदा किया। पंजाब के कृषि संकट और किसान आत्महत्याओं के बारे ‘साडा जग्गो सीर मुक्किया’ नाटक रचना (बलदेव धालीवाल की कहानी पर आधारित) लिखा। कुमार स्वामी धर्म-राजनीति के संबंधों में नाटक 14 भारतीय भाषाओं में अनुवादित है। मूर्ख विद्वान, आखिरी नाटक, नाटक कथा, नाटक की रचनाएं उनकी विशेष उपलब्धियां हैं। इसके अलावा पंजाबी रंगमंच, भारतीय थिएटर, रंग मंच और टैलीवीज़न नाटक विषयों से संबंधित अनेक आलोचनात्मक और अनुवादित पुस्तकें लिखीं। इश्कबाज़ा, वेद व्यास के पौत्र, वो लड़की, अफसाने के लिए आज भी दर्शकों के मन में बसती हैं। 
डा. नवनिन्दरा ने टैलीविज़न के क्षेत्र में नाटकों और टैलीफिल्मों में नया अध्याय शुरू किया। दूरदर्शन के लिए आतिश (टैली फिल्म 1995), तपिश (फिल्म) 1988, चिड़ियां दा चम्बा, रानी कोकिला (1990), धारावाहिक वो लड़की (1988), महासंग्राम (2002), खानाबदोश (2007), रेडियो सीरिज गागर में सागर आदि अनेकों क्रमवार और उपदेश भरपूर धारावाहिक और टैलीफिल्मों के द्वारा जन-साधारण को नई दिशाएं दी। एक अदाकार के तौर पर डा. नवनिन्दरा बहल ने अनेक सम्मान प्राप्त किये, जिनमें 1985 में सर्वोत्तम रेडियो नाटक कुमार स्वामी के लिए नैशनल अवार्ड, चिड़ियां दा चम्बा फिल्म के लिए, इंडो सोफियत फिल्म फैस्टीवल में निर्देशिका के तौर पर अवार्ड, भारतीय टैलीविज़न नाटक के क्षेत्र में राष्ट्रीय रत्न अवार्ड, मंच-रंगमंच अमृतसर की ओर से सम्मान हासिल हुये। 
डा. नवनिन्दरा पंजाब के रंगमंच से संतुष्ट नज़र आती हैं। वह टैलीविज़न, सिनेमा और थिएटर को दर्शकों तक सन्देश पहुंचाने के लिए एक बड़ा माध्यम समझती हैं। वह समझती हैं कि संगीत और नृत्य के साथ-साथ थिएटर और रंगमंच स्कूली और कालेज की शिक्षा का एक हिस्सा होना चाहिए। डा. नवनिन्दरा ने स्वयं भी कालेज के समय थिएटर और अदाकारी को निखारा। नवनिन्दरा उस समय को सोच कर बहुत भावुक हो जाती है जब ‘माचिस’ फिल्म में अभिनय के लिए गीतकार और निर्देशक गुलज़ार का स्वयं उन्हें निमंत्रण आया था। थिएटर और मीडिया की बहुत-सी चयन कमेटियों में बहुत ईमानदारी और संजीदगी के साथ उन्होंने कार्य किया। नेहा यू.पी.एस.सी., पंजाबी यूनिवीर्सिटी, दूरदर्शन केन्द्र, सभ्याचारक मामले, दिल्ली सरकार, फिल्म और टैलीविज़न इंस्टीच्यूट कोलकाता आदि में पदाधिकारी रह चुकी हैं। बहुत-सी राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय कांफ्रैंसों में पूंजीवत भाषणकार के तौर पर मुख्य प्रवक्ता के तौर पर सिनेमा, टैलीविज़न और थिएटर के बारे भाग ले चुकी डा. नवनिन्दरा थिएटर और अभिनय को अपनी सांसों में बसा हुआ और दिल में धड़कता हुआ महसूस करती है। नाटक कला के साथ गहरी साझ रखने वाली नवनिन्दरा ने अपने घरेलू माहौल से प्रभावित होकर नाटक कला के साथ रिश्ता जोड़ा और उनके  भाई-बहन भी पिता के बताये हुये मार्ग पर चल रहे हैं। जीवन में अभिनय, निर्देशन और नाटक लेखन का आनंद मान रही डा. नवनिन्दरा को कार्यालय ‘अजीत प्रकाशन समूह’ की ओर से भाषा विभाग के अवार्ड के लिए मुबारकबाद और भविष्य के लिए शुभकामनाएं। 
-हंसराज महिला महाविद्यालय, जालन्धर।