महिला फुटबालरों ने ओलम्पिक खेलों में शुरू किया नया अभियान

टोक्यो ओलम्पिक खेलों से पूर्व खिलाड़ियों को ओलम्पिक खेलों में किसी भी किस्म के राजनीतिक, सामाजिक या धार्मिक मामलों के समर्थन या विरोध में आवाज़ उठाने की अनुमति नहीं होती थी परन्तु अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक संघ ने इन ओलम्पिक खेलों से पहले खिलाड़ियों को किसी भी मामले संबंधी दायरे में रह कर अपनी आवाज़ बुलंद करने का अनुमति दे दी थी। इस छूट के कारण टोक्यो ओलम्पिक में इस किस्म की गतिविधियां देखने को मिलीं, जिनमें खिलाड़ियों ने विभिन्न मुद्दों को विश्व स्तर पर उभारने का प्रयास किया। टोक्यो ओलम्पिक में महिला फुटबाल खिलाड़ियों ने सीमित दायरे में रहकर आवाज़ बुलंद करने की शुरूआत की। टोक्यो ओलम्पिक के पहले दिन चिल्ली एवं ब्रिटेन के मध्य हुए महिलाओं के फुटबाल मैच में पहले ब्रिटिश खिलाड़ियों ने मौदान में घुटनों के बल बैठ कर नस्लवाद के खिलाफ आवाज़ बुलंद की। ब्रिटिश खिलाड़ियों की इस गतिविधि को देखते हुए, चिल्ली की खिलाड़ियों ने भी घुटनों के बल बैठ कर ब्रिटिश खिलाड़ियों का साथ दिया। इसके एक घंटा बाद स्वीडन और अमरीका की खिलाड़ियों ने भी ऐसा ही किया। इस पहलकदमी के पदचिन्हों पर चलते हुए जर्मनी की जिम्नास्टिक खिलाड़ियों ने भी विलक्षण ढंग से खिलाड़ियों के शोषण के विरुद्ध आवाज़ बुलंद की। जर्मन जिम्नास्ट सारा वौस व उसकी साथियों ने जिम्नास्टिक खेल के नियमों को दृष्टिविगत करते हुए पूरी पोशाक पहन कर मुकाबले में भाग लिया। महिलां खिलाड़ियों द्वारा बुलंद की गई आवाज़ ने हांगकांग के बैडमिंटन खिलाड़ी एंगास नग कलोग को भी प्रोत्साहित किया। उसने ओलम्पिक में बैडमिंटन मुकाबलों में काली किट पहन कर भाग लिया। एंगास ने अपनी टी-शर्ट पर हाथ से ‘हांगकांग-चाइना’ लिख कर अपना विरोध प्रकट किया। इसका प्रभाव भारतीय बैडमिंटन महिला खिलाड़ी मनिका बतरा पर भी देखने को मिला। उसने ओलम्पिक के दौरान अपने निजी कोच सनमये परांजपे को मैचों के दौरान मैदान में न जाने के खिलाफ आवाज़ उठाई। 

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