इतना महत्वपूर्ण क्यों है हिन्दू धर्म में गायत्री मंत्र ?

‘ऊं भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।।’ 11 शब्दों के इस गायत्री मंत्र की सनातन धर्म परम्परा में चारों वेदों के बराबर की मान्यता है। माना जाता है कि इस मंत्र को मां गायत्री ने चारों वेदों के बाद विशेष तौर पर रचा था और यह भी माना जाता है कि यही मंत्र चारों वेदों का सार है। इसलिए अगर आपने चार वेद नहीं पढ़े और गायत्री मंत्र को ध्यानपूर्वक पढ़ते हैं तो चारों वेदों के बराबर का पुण्य लाभ होता है। 11 शब्दों के इस अत्यंत प्रतिष्ठित और पूज्य मंत्र का सरल शब्दों में अर्थ है, ‘एक सृष्टिकर्ता प्रकाशमय परमात्मा के तेज का हम ध्यान करते हैं। परमात्मा का यह तेज हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करे।’ इस गायत्री मंत्र को धार्मिक न सही, नैतिक दृष्टि से आत्मसात कर लिया जाए तो दुनिया में हर तरह की  अनैतिकताओं पर विराम लग सकता है। किसी भी व्यवस्था में जो सर्वाधिक मानवीय लोकतंत्र हो सकता है, उस लोकतंत्र की कामना और धारणा ही इस मंत्र में विधिवत तरीके से व्याप्त है। यह मंत्र सन्मार्ग यानी सच्चे मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करने को कहता है। अगर हम सच्चे मार्ग पर चलते हैं तो फिर हमें कोई भी अनैतिकता के रास्ते पर नहीं ले जा सकता। सनातन धर्म में इस मंत्र की बहुत ही अहमियत है। ज्योतिष से लेकर कर्मकांड के सभी आचार्य और प्राचार्य इस मंत्र की महिमा का व्याख्यान करते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इस मंत्र को पढ़ने की भी एक पूरी व्यवस्था है। इस बात का पूर्ण विधान है कि इस मंत्र को कब पढ़ा जाए और कैसे पढ़ा जाए? ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक गायत्री मंत्र के जाप के लिए तीन विशेष समय हैं— एक समय है सूर्योदय से थोड़े पहले का, दूसरा है सूर्योदय के बाद का और तीसरा समय है सूर्यास्त का। सूर्योदय के बाद के समय को हम दोपहर तक इस्तेमाल कर सकते हैं और इसी तरह सूर्यास्त के समय को हम सूर्य छिपने के बाद से लेकर सोने के पहले तक कभी भी इस्तेमाल कर सकते हैं। सामान्य जीवन में आम तौर पर लोग इस मंत्र का सर्वाधिक जप संध्याकाल में करते हैं। धार्मिक नियमों के मुताबिक शाम को सूर्य छिपने के बाद गायत्री मंत्र के पढ़ने और इसे उपचारित करने का सबसे सही तरीका यह है कि इसे मन में ही दोहराया जाए। अगर पढ़ते हुए ध्वनि का निकलना जरूरी हो, तो इसे बहुत ही धीमी आवाज़ में पढ़ें। जो लोग इस मंत्र को धार्मिक और अनुष्ठानिक मान्यताओं के मुताबिक पढ़ना चाहते हैं, उन्हें इस मंत्र को पढ़ते समय अपने हाथ में रुद्राक्ष की माला रखनी चाहिए। यह माला 108 मनकों की होनी चाहिए और जब हम मंदिर या घर के विशिष्ट पूजा पाठ वाले कोने में इस मंत्र का जाप करें तो अंगुलियों से गायत्री मंत्र के मनकों को आगे बढ़ाते रहना चाहिए। गायत्री मंत्र का नियमित जाप करने के कई फायदे होते हैं। ये धार्मिक भी हैं और नैतिक व मनोवैज्ञानिक भी। जो लोग धार्मिक ईमानदारी से गायत्री मंत्र का जाप करते हैं, उसके आदर्शों के मुताबिक जीवन जीते हैं, उन्हें जीवन में दुख नहीं देखने पड़ते। जो लोग इस मंत्र को एक सांस्कृतिक सम्मान के साथ पढ़ते हैं, उसके चलते वो लोग हमेशा उत्साह और सकारात्मक जीवन ऊर्जा से लबरेज रहते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने आपको धार्मिक और सेवा कार्यों में लगाते हैं तथा सौहार्दपूर्ण उत्साह से पूर्ण जीवन जीते हैं। ऐसे लोग किसी भी तरह की परिस्थितियों से आसानी से बाहर निकल आते हैं, आपा नहीं खोते। गायत्री मंत्र की विशिष्टता यही है कि इसे चाहे आप धार्मिक दृष्टि से पढ़ें या आध्यात्मिक दृष्टि से, दोनों ही दृष्टियां फायदा पहुंचाती हैं, दोनों ही तरीके हमें रोजमर्रा की आपाधापी भरी ज़िंदगी में सुकून देते हैं। इसलिए गायत्री मंत्र का जितना महत्व इसके धार्मिक कामकाज में है, उतना ही महत्व इसका आध्यात्मिक सोच समझ में भी है। जो लोग नियमित तौर पर इसे पढ़ते हैं, उनके जीवन में तनाव की उपस्थिति कम रहती है, बेचैनी कम होती है और किसी चीज़ के लिए व्यग्रता नहीं होती। इस मंत्र को नियमित शाम, सुबह पढ़ने से स्वभाव में संयम आता है। इस मंत्र का सुबह शाम नियमित रूप से जाप करने वालों के मन में बुरे विचार और ख्याल नहीं आते हैं। ऐसे लोगों में दूसरे के प्रति दया और संवदेना के भाव होते हैं।

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