एक बहती धारा है ज़िन्दगी

ज़िन्दगीनुमा चीज भी कुछ ऐसी है, 
जिसे हर पात्र अपने ही ढंग से पढ़ता है
सिर्फ पढ़ता ही नहीं, समझता भी है। 
बहुतों के लिए यह एक भंवर है
जिसमें से निकलने की कोशिश मात्र से ही,
पात्र गहराई में डूब जाता है। 
अनेकों के लिए इसके पात्र नाटककार मारलो
के डा. फास्टस हैं जो सब कुछ प्राप्त कर
बिक जाते हैं, इक शैतान के हाथ। 
कइयों ने माना है यह है सिर्फ
एक बदरंग सी पेंटिंग जिसमें सुन्दर रंगों की जगह,
छिटके हैं जगह-जगह पर काले धब्बे। 
बहुत कम पात्र शायद यह समझते हैं
कि ज़िन्दगीनुमा चीज़ की सार्थकता छिपी है गीतासार में,
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन भव। 

               -डा. रेखा कालिया भारद्वाज