‘मैराथन’ में लड़खड़ाते कदम

नवजोत सिंह सिद्ध के पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद से एकाएक त्याग-पत्र देने की घोषणा ने जहां सभी ओर भारी हैरानी पैदा की है, वहीं इससे कांग्रेस का संकट और भी गहरा हो गया है। प्रदेश में कुछ महीनों बाद होने जा रहे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के भविष्य पर एक प्रश्न-चिन्ह उभरता जा रहा है। पिछले महीनों में पंजाब के मामले को लेकर इस राष्ट्रीय पार्टी में जो घटनाक्रम घटित होता रहा है, वह किसी दिलचस्प नाटक अथवा फिल्म से कम नहीं था। कुछ महीनों के समय में ही पंजाब में इस पार्टी के भीतर जितने उतार-चढ़ाव आये, वे जहां लोगों को हैरान करने वाले थे, वहीं पार्टी की कतारों में परेशानी पैदा करने वाले भी थे। 
प्रदेश में दंगल के लिए दो पहलवान ही उतरे दिखाई देते थे जिनकी कुश्तियों के असंख्य दौर हुए। अतत: सिद्धू ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को पछाड़ दिया। बड़े दुखी मन से त्याग-पत्र देते हुए कैप्टन ने कहा था कि वह स्वयं को अपमानित हुआ महसूस कर रहे हैं परन्तु साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि नवजोत सिंह सिद्धू स्थिर एवं स्थायित्व देने वाला व्यक्तित्व नहीं है। उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता। यहां तक कि वह पार्टी एवं समाज के लिए घातक हैं। ऐसी ही नाटकीय घटनाएं नया मुख्यमंत्री बनाने के समय घटित हुईं। भिन्न-भिन्न नाम उभर कर सामने आते रहे। अंतत: पलड़ा चरणजीत सिंह चन्नी की ओर झुका जिसकी पहले किसी को अधिक उम्मीद नहीं थी। नये हालात ने चन्नी को मुख्यमंत्री के पद तक पहुंचा दिया, परन्तु इसके साथ ही यह आशंका भी पैदा हो गई थी कि क्या सिद्धू एवं चन्नी मिलजुल कर एकरसता के साथ आगे बढ़ सकेंगे। हाईकमान की ओर से मंत्रियों के चयन एवं उनके विभागों के वितरण को लेकर उभरे मतभेदों से ही यह महसूस होना शुरू हो गया था कि यह एकरसता अधिक देर तक कायम नहीं रह सकेगी। एक बड़ा प्रश्न यह भी उत्पन्न हो गया था कि विगत समय में जितने बड़े दावे नवजोत सिंह सिद्धू ने जन-अदालत में किये हैं, उन्हें एक सीमित समय में वह पूरा कर पाने में किस प्रकार एवं किस सीमा तक सफल हो सकेंगे। यदि ऐसा करने में वह असमर्थ रहते हैं तो उनकी जन-अदालत में जवाबदेही होना निश्चित है। परन्तु नई सरकार के गठित होते ही जिस प्रकार का ढांचा बनाया गया, जिस प्रकार से उच्च पदों पर बैठने वाले व्यक्तियों का चयन किया गया, उससे यह स्पष्ट होने लगा था कि सिद्धू के किये दावे काफूर हो जाएंगे। उच्च प्रशासनिक पदों पर ऐसे लोग नियुक्त किये गये जो इन दावों पर पूरा नहीं उतर सकते थे। जिस प्रकार मंत्रियों के विभागों का वितरण किया गया, उससे भी यह लगा कि निकट भविष्य में उनसे कोई ठोस पग उठाये जाने की आशा नहीं की जा सकेगी। 
सभी प्रकार के चयन में की गई कार्रवाइयां सिद्धू की बातों एवं स्वभाव के अनुरूप नहीं थीं। सम्भवत: इसी कारण उनके मन की निराशा बढ़ती गई जिस कारण उन्होंने यह पग उठाया। इस समय ऐसे पग के परिणाम समूची पार्टी के लिए किस सीमा तक घातक हो सकते हैं, इसका अनुमान ही लगाया जा सकता है। कांग्रेस के पांव चल रही इस राजनीतिक दौड़ में एक बार तो पूरी तरह से डगमगा गये प्रतीत होते हैं। ये किस सीमा तक सम्भल सकेंगे तथा कितना पथ तय कर सकने के समर्थ होंगे, इस संबंध में वर्तमान में तो अनिश्चितता ही बनी दिखाई देती है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द