अच्छा प्रदर्शन करने वाले हर खिलाड़ी की प्रशंसा हो

अंग्रेज़ी की एक कहावत के अनुसार खेलों को खेल की तरह ही खेलना चाहिए, जंग की तरह नहीं। यह कहावत छत-प्रतिशत सही भी है और वर्तमान एवं समय के हिसाब से समझनी और अमल में लानी ज़रूरी भी है। वर्तमान का कड़वा यथार्थ यह है कि इलैक्ट्रानिक संचार माध्यम अर्थात् टी.वी. चैनलों और सोशल मीडिया के  एक बड़े वर्ग ने खेलों को खेल नहीं रहने दिया है, बल्कि खेल के मैदान को ‘जंग का मैदान’ बना दिया है और किसी भी मैच से पहले भारत के संबंधित खेल की टीम को भारत के शेर या भारत के जंगबाज कह कर बढ़ा-चढ़ा कर बताया जाता है, जिससे खेल प्रेमियों या मीडिया से प्रभावित लोगों में यह प्रभाव तैयार हो जाता है कि हमारे देश की टीम या खिलाड़ी सर्वश्रेष्ठ हैं और इन्हें कोई हरा नहीं सकता। सच तो यह होता है कि विरोधी टीम भी जीत का जज़्बा मन में लेकर और पूरी तैयारी करके ही आई होती है। वह टीम अपना पूरा ज़ोर लगा देती है और मैदान फतेह करके चली जाती है। इन हालातों में कई खेल प्रेमी या मीडिया प्रभावित लोग अपने देश की टीम या खिलाड़ियों से नाराज़ हो जाते हैं, उनके घरों की तोड़फोड़ करने लग जाते हैं। यह प्रवृत्ति बेहद खतरनाक और शर्मनार है। इस सोच और कार्यशैली पर अंकुश लगना चाहिए। सम्पन्न हुए टी-20 विश्व कप मैचों में भारत की पाकिस्तान से हार के बाद भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली की मासूम बच्ची संबंधी की गई शर्मनाक टिप्पणी की जिनती भी निंदा की जा सके उतनी ही कम है। एक अन्य खिलाड़ी मोहम्मद शम्मी संबंधी की गई टिप्टणी भी बहुत निंदनीय है।  ऐसे घटनाक्रम की हर तरफ निंदा एवं आलोचना होनी चाहिए। दरअसल मीडिया का यह कर्त्तव्य बनता है कि वे खेलों को खेलों की तरह ही रहने दें। यदि भारतीय टीम जीतती है तो उसकी खूब प्रशंसा करे यदि विरोधी टीम जीतती है तो उसकी भी प्रशंसा करे। जो भी अच्छे खेल का प्रदर्शन करता है, उसके खेल की प्रशंसा होनी चाहिए। बात रही हारने वाली टीम की, तो उसके कारणों की जाच करना एवं घटिया प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों के खिलाफ उचित कार्रवाई का जिम्मा संबंधित टीम के प्रबंधकों पर छोड़ देना चाहिए। मीडिया तथा आम लोगों को स्वयं ही जज बन कर हारने वाले खिलाड़िरयों को सज़ा सुनाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। लोगों को या खेल प्रेमियों को तो बेहतर खेलने वाले खिलाड़ियों या टीमों की प्रशंसा करने तक ही सीमित रहना चाहिए, क्योंकि किसी भी खेल से संबंधित कोई भी टीम जब अच्छा प्रदर्शन करती है या नये रिकार्ड कायम करती है तो उस खेल का नाम तो विश्व में ऊंचा हो ही रहा होता है। यदि सचिन तेंदुलकर या सर डान ब्रैडमैन ने क्रिकेट में, मेजर ध्यान चंद ने हाकी में और पेले या मैराडोना ने फुटबाल में उपलब्धियां प्राप्त की हैं तो उनकी अद्भुत खेल प्रतिभा की प्रशंसा प्रत्येक देश में की जानी चाहिए और की भी जाती है। परन्तु किसी खिलाड़ी को साम्प्रदायक चश्मे से देखना या दुश्मन देश का खिलाड़ी समझ कर उसकी आलोचना करने का हक किसी को भी नहीं मिलना चाहिए।  सो, आज आवश्यकता है कि सभी संबंधित पक्ष एकजुट होकर बैठें और विचार करके यह प्रस्ताव पारित करें कि खेलों को खेल ही रहने दिया जाए और इन्हें जंग का मैदान हरगिज़ न बनाया जाए। 

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