़खतरनाक मोड़ पर है पाकिस्तान

पाकिस्तान के राजनीतिक मंच पर जो परिदृश्य उत्पन्न हुआ है, उसने एक बार फिर इस देश को अतीव नाज़ुक स्थिति में ला खड़ा किया है। 1947 में देश के विभाजन से लेकर अब तक यह अनेक बार अतीव गड़बड़ वाले हालात में से गुज़रता रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर इसकी स्थिति अतीव दयनीय हो चुकी है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ सम्बद्ध संस्था वित्तीय कार्रवाई टास्क फोर्स (एफ.ए.टी.एफ.) ने भी निरन्तर इसे स्लेटी (ग्रे) सूची में रखा हुआ है। आगामी समय में इसके यहां से फिसल कर काली सूची में चले जाने के हालात बन गये हैं। इसका एक बड़ा कारण यहां दुनिया भर के कट्टरपंथी जेहादियों का जमावड़ा होना है जो भारत, अमरीका, फ्रांस एवं अन्य बहुत-से यूरोपीय देशों के लिए तो अतीव ़खतरा बने ही हुये हैं, अब वे पाकिस्तान के अस्तित्व के लिए भी भारी ़खतरा दिखाई देते हैं। इसके एक बड़े प्रांत बलोचिस्तान में विगत कई दशकों से अलगाववादी लड़ाई चल रही है जिसमें हो रहे रक्तपात के समाचारों को अक्सर सरकार की ओर से दबा दिया जाता है। 
आज का बंगलादेश भी कभी पाकिस्तान का ही पूर्वी हिस्सा था परन्तु उस समय वहां ऐसे हालात बने तथा जनरल याहिया खान जैसे सैनिक तानाशाहों ने अपने अधिकार मांगने वाले लोगों का नरसंहार कर दिया जिसके परिणाम स्वरूप बंगलादेश अस्तित्व में आया। अपने अस्तित्व के लगभग आधा समय तक यहां सैनिक जनरलों का ही शासन रहा। जनरल सिकन्दर मिज़र्ा से लेकर फील्ड मार्शल अयूब खान, जनरल ज़िया-उल-हक, जनरल याहिया खान तथा जनरल परवेज़ मुशर्रफ आदि जनरलों ने सेना के बलबूते पर यहां 35 वर्ष तक शासन किया। इसके अतिरिक्त लोकतांत्रिक ढंग से भी जो सरकारें बनीं, उन पर भी सदैव सेना का ही पहरा रहा। पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) के नेता नवाज़ शऱीफ ने सेना की दबंगता मानने से आनाकानी की तो उनकी निर्वाचित सरकार का तख्ता पलट कर जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने देश पर कब्ज़ा कर लिया तथा वह वर्ष 1999 से 2008 तक देश को अपने सैनिक बूटों के तले कुचलते रहे। यदि नवाज़ शऱीफ की बात करें तो उनकी पहली सरकार बनने का श्रेय भी सेना को दिया जाता है। यह विश्वास किया जाता है कि विगत चुनावों के दौरान सेना ने ही बड़े स्तर पर जालसाज़ी करके इमरान खान को कुर्सी पर बिठाया था। इमरान ने लगभग साढ़े तीन वर्ष तक देश पर शासन किया है परन्तु वह सदैव स्वयं भी विवादों में घिरे रहे हैं जबकि वह पाकिस्तान पीपल्ज़ पार्टी के नेताओं सहित अन्य नेताओं को अत्याधिक भ्रष्ट करार देते रहे। परन्तु आज उनकी अपनी सरकार के समय पाकिस्तान में भ्रष्टाचार इस सीमा तक बढ़ चुका है कि विश्व के देशों में से इसका नम्बर 140वां है। इमरान खान के शासन में यह नम्बर निरन्तर बढ़ता रहा है। इसके साथ-साथ बेरोज़गारी एवं महंगाई ने लोगों का जीवन दूभर कर दिया है तथा आर्थिक संकट ने देशवासियों को पूरी तरह से घेर लिया है। इसने चीन जैसे अपने मित्र देश से अधिकाधिक आर्थिक सहायता ली है जिसके कारण वह चीन के ऋण के जाल में पूरी तरह फंस चुका है। चाहे इमरान खान ने अपने शासन में अमरीका तथा अन्य देशों के साथ सम्बन्ध बढ़ाने का यत्न किया परन्तु उनकी ओर से तालिबान की निरन्तर की जाती वकालत ने अन्य देशों की नज़रों में उनको संदिग्ध बनाये रखा। 
निरन्तर होती आलोचना के दृष्टिगत इनकी भागीदार पार्टियों ने भी इनका साथ छोड़ने की घोषणा कर दी। मौलाना फज़ल-उल-रहमान की जमात-उलेमा-ए-इस्लाम के अतिरिक्त बलोचिस्तान अवामी पार्टी एवं मुत्ताहिदा कौमी मूवमैंट आदि पार्टियों ने भी इमरान खान के विरोध की घोषणा की है। इन सब त्रुटियों ने नवाज़ शऱीफ के भाई शहबाज़ शऱीफ को अगला प्रधानमंत्री बनाने के लिए भी सहमति प्रकट कर दी है। पाकिस्तान की असैम्बली के 342 सदस्यों में इमरान खान ने बहुमत खो दिया है तथा उनकी अपनी पार्टी के ही दर्जन भर से अधिक सदस्यों ने उनके विरोध में आवाज़ उठाई है। चाहे इमरान खान निरन्तर सेनाध्यक्ष जनरल जावेद बाजवा के सम्पर्क में हैं। सेना भी अपने जोड़-तोड़ में रत है क्योंकि वह किसी न किसी भांति बनने वाली नई सरकार पर भी अपना अधिकार बनाये रखना चाहती है। आगामी दिनों में चाहे कोई नई सरकार बनती है अथवा इमरान खान की ओर से नैशनल असैम्बली भंग करने की घोषणा की जाती है, इस संबंध में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता परन्तु यह स्पष्ट दिखाई देने लगा है कि पाकिस्तान अब अतीव ़खतरनाक मोड़ पर आ पहुंचा है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द