नई सरकार के लिए चुनौती 

अपनी सरकार की एक मास की कारगुज़ारी का रिपोर्ट कार्ड पेश करते हुये मुख्यमंत्री भगवंत मान ने 13 कार्यों का उल्लेख किया है। इनमें उन्होंने मुफ्त बिजली देने के अपनी पार्टी के वायदे को पूरा कर दिये जाने की बात भी कही है। चुनावों के दौरान आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल ने अन्य कई रियायतें देने के साथ-साथ प्रदेश के सभी घरेलू उपभोक्ताओं को 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने की भी घोषणा की थी। इस घोषणा की अब तक कुछ प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। जिन्हें इससे लाभ मिला है, उन्होंने इस पग की प्रशंसा की है। जिन्हें लाभ नहीं मिला, वे अब स्वयं को ठगा हुआ महसूस करते हैं क्योंकि जनरल वर्ग का एक परिवार आज प्राय: प्रति महीना 300 यूनिट से अधिक बिजली प्रयुक्त करता है। यदि उसका बिजली का मीटर 300 से एक यूनिट भी अधिक दर्शाता है तो उसे पूरा बिल ही अदा करना पड़ेगा जबकि अनुसूचित जाति एवं पिछड़ी श्रेणियों के वर्गों को केवल 300 से ऊपर आये यूनिटों की ही अदायगी करनी पड़ेगी। उभरी ऐसी आलोचना पर भारी विवाद उत्पन्न होने की सम्भावनाएं बन गई हैं जिसका सरकार को लाभ की अपेक्षा नुकसान अधिक हो सकता है।
 सरकार की इस घोषणा से एक अनुमान के अनुसार लगभग पांच हज़ार करोड़ रुपये की सबसिडी की राशि उसे बिजली निगम को देनी पड़ेगी। पहले ही पॉवरकाम ने सरकार से सबसिडी के 9600 करोड़ रुपये लेने हैं। आम आदमी पार्टी ने चुनावों से पूर्व मुफ्त बिजली के अतिरिक्त अन्य भी कई ऐसे वायदे किये थे जिनका खर्च भी वार्षिक हज़ारों करोड़ रुपये आने का अनुमान लगाया जा रहा है। यदि सरकार 35 हज़ार कर्मचारियों को स्थायी करने का अपना वायदा पूरा करती है तो वह अन्य हज़ारों करोड़ रुपये के वार्षिक खर्च को कैसे पूरा करेगी? चुनाव जीतने एवं सरकार चलाने में अन्तर होता है। चुनावों से पूर्व पार्टी के अध्यक्ष भगवंत मान वायदे एवं दावे किये जा रहे थे परन्तु मुख्यमंत्री बनने के बाद एकाएक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास जाकर उन्होंने एक लाख करोड़ रुपये की राशि मांगने से कोई संकोच नहीं किया अथवा कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई थी। केन्द्र से इतनी बड़ी राशि मांगने का उनका क्या आधार अथवा तर्क था, इस संबंध में उन्होंने कोई ठोस जानकारी नहीं दी। अब बिजली मुफ्त देने की घोषणा के साथ-साथ पंजाब की आर्थिक दुरावस्था को देखते हुये उन्होंने कहा है कि पंजाब तो पहले ही तीन लाख करोड़ रुपये के ऋण तले डूबा पड़ा है। इसका ठीकरा उन्होंने विगत सरकारों के सिर फोड़ा है तथा यह भी कहा है कि सरकार इसकी ठोस जांच करवाएगी कि पहले किस-किस वर्ष में कितना-कितना ऋण किस सरकार ने लिया तथा उसे फिर वापिस क्यों नहीं किया गया। जहां तक ऋण का प्रश्न है, इस संबंध में तो प्राय: कहा जाता है कि पंजाब की वित्तीय स्थिति यह हो गई है कि यहां हर नव-जन्मे बच्चे के सिर पर एक लाख रुपये का ऋण होगा। आंकड़ों के अनुसार इसमें कोई अतिश्योक्ति भी नहीं है। 
हम इस स्थिति को तत्कालीन सरकारों की अक्षमता ही मानते हैं जिसके कारण आज पंजाब सरकार को विगत ऋण का ब्याज अदा करने के लिए भी ऋण लेना पड़ रहा है। अकाली-भाजपा सरकार 10 वर्षों में पंजाब के सिर पर 1.82 लाख करोड़ रुपये का ऋण छोड़ गई थी तथा विगत पांच वर्षों में कांग्रेस सरकार की ओर से भी एक लाख करोड़ रुपये के अन्य ऋण की गठरी पंजाब के सिर पर रख दी गई थी। अब इस ऋण का बोझ लगभग तीन लाख करोड़ रुपये हो चुका है जिसके लिए सरकार को लगभग 19 हज़ार करोड़ रुपये वार्षिक ब्याज चुकाना पड़ना है। ऐसी राजनीति लोगों को भ्रमित करने के लिए की जाती है। दूसरे शब्दों में विगत कई दशकों से हमारे राजनीतिज्ञ लोगों की आंखों में धूल ही झोंकते रहे हैं। आज मुख्यमंत्री भगवंत मान का यह कहने का अधिकार अवश्य है कि वह इस ऋण के बोझ के लिए विगत सरकारों की कारगुज़ारी का लेखा-जोखा करेगी परन्तु उनकी पार्टी की ओर से लोगों को अब जो नये वायदों के स्वप्न दिखाये गये हैं, वे क्रियात्मक रूप में किस प्रकार पूर्ण हो सकेंगे, यह नई सरकार के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती होगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द