कोयले एवं बिजली का संकट

देश के कई प्रदेशों में उत्पन्न हुये बिजली संकट से केन्द्र सरकार भी चिंतित हुई है। इस संबंध में पिछले दिनों गृह मंत्री अमित शाह ने भी सम्बद्ध मंत्रियों एवं अधिकारियों के साथ बैठक की है। विवरण के अनुसार अप्रैल के महीने में ताप बिजली घरों को लगभग 500 करोड़ टन कोयला दिया गया जोकि विगत के मुकाबले में 15 प्रतिशत अधिक है। अप्रैल के महीने में एकाएक अतीव गर्मी पड़ने से बिजली की मांग में भारी वृद्धि हुई है। विगत सात वर्ष के बाद यह मांग बढ़ी है तथा यह भी अनुमान लगाया जाता है कि यह मांग आगामी दिनों में और भी बढ़ जाएगी। स्थिति के सुधरने में सप्ताह भर का समय और लग सकता है। 
देश भर में बिजली के ताने-बाने का बड़ा प्रसार होने के कारण इसके साथ अन्य विभाग भी जुड़े हुये हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण रेलवे के माध्यम से कोयले की ढुलाई होती है। कोयला खदानों में से अधिक कोयला निकालना एवं उसे सही समय पर उचित स्थानों पर भेजना आवश्यक होता है।  आगामी धान के मौसम में इसकी मांग और भी बढ़ जाने की सम्भावना है। प्रदेश सरकारें अपने-अपने कारणों के दृष्टिगत इस मामले के प्रति चिंतित हुई दिखाई देती हैं। प्रधानमंत्री की अपनी समस्या है। यदि बिजली का घरेलू कट लगता है तो गर्मी के दिनों में हाहाकार मचना स्वाभाविक है। दूसरी ओर औद्योगिक कट लगने से भांति-भांति के उत्पादन बंद होने से रोज़गार पर प्रभाव पड़ता है। कृषि क्षेत्र में कट बढ़ने से भी प्रदेश सरकार की चिन्ता में वृद्धि हुई है। जहां तक प्रदेश के ताप बिजली घरों का संबंध है, कोयले के मामले में ये सदैव की भांति पिछड़ गये प्रतीत होते हैं। चार ताप बिजली घरों की हालत यह है कि ये कई कारणों के दृष्टिगत रुक-रुक कर चलते रहे हैं। पिछले दिनों पॉवरकाम के पास प्राय:  4 हज़ार मैगावाट बिजली की उपलब्धता बनी रही जबकि आवश्यकता 7300 मैगावाट की थी। रोपड़ के 4 में से 2 यूनिट, तलवंडी साबो के 3 में से 2 यूनिट एवं गोइंदवाल साहिब के 2 में से एक यूनिट बंद रहे। जहां तक कोयले का प्रश्न है, रोपड़ थर्मल प्लांट में एक सप्ताह भर का, गोइंदवाल साहिब में कुछ दिनों का कोयला ही शेष बचा है। आगामी दिनों में यदि यह स्थिति नहीं संवरती तो धान के मौसम में यह और भी खराब हो सकती है जिसे लेकर घरेलू एवं औद्योगिक क्षेत्रों में और भी बड़े बिजली कट लग सकते हैं जिन्होंने पहले ही स्थिति को नाज़ुक कर रखा है। बिजली निगम विगत दशकों से निरन्तर आर्थिक तंगी में से गुज़रता रहा है जिसके कारण इसे कोयला मंगवाने के लाले पड़े रहते हैं। उद्योगों को 5 रुपये प्रति यूनिट बिजली देने का वायदा किया गया था जबकि बिजली की कमी होने के कारण दूसरे साधनों से बिजली अतीव महंगे दाम पर लेनी पड़ रही है। प्रदेश सरकार ने घरेलू क्षेत्र में 300 यूनिट मासिक बिजली मुफ्त देने की जो बात की है, इससे उस पर 4000 करोड़ रुपये का वार्षिक बोझ पड़ेगा।
विगत सरकारों ने पहले ही नई सरकार के लिए इस क्षेत्र में मुसीबतें खड़ी की हुई थीं जिन्हें इस सरकार ने बिजली मुफ्त देने की अपनी घोषणा से और भी बढ़ा लिया है। पहले ही कृषि के क्षेत्र में जो मुफ्त बिजली दी जा रही है, उसकी राशि 7000 करोड़ रुपये वार्षिक बनती है। अनुसूचित जातियों को प्रत्येक महीने 200 यूनिट बिजली मुफ्त देने से 1600 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। कांग्रेस की चरणजीत सिंह चन्नी की सरकार ने जो बिजली बिल माफ किये हैं, उनकी कीमत 1500 करोड़ रुपये है। उद्योगों के लिए सस्ती बिजली की घोषणा ने 2300 करोड़ रुपये वार्षिक बोझ की वृद्धि की है। इस प्रकार एक अनुमान के अनुसार पंजाब में मुफ्त बिजली का ही वार्षिक बोझ 23000 करोड़ रुपये से अधिक हो जाता है। अब मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पॉवरकाम को 1000 करोड़ रुपये सबसिडी जारी करने की घोषणा की है परन्तु सरकार की ओर पिछली 9000 करोड़ रुपये की सबसिडी देना अभी भी शेष है। बढ़़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए अप्रैल में ही 300 करोड़ से अधिक की बिजली 10.70 रुपये प्रति यूनिट की दर से बाहर से खरीदी गई है। मार्च में भी 150 करोड़ से अधिक की बिजली खरीदनी पड़ी थी। कंगाल हुआ बिजली निगम किस प्रकार सही समय पर कोयला बाहर से मंगवायेगा, रेलवे को किस प्रकार भाड़े की अदायगी कर सकेगा तथा बढ़ी हुई मांग को निगम की कड़ी आर्थिक तंगी के चलते हुये कैसे पूरा कर सकेगा, यह स्थिति अतीव गम्भीर सोच एवं दृष्टिकोण की मांग करती है। इस सरकार को मुफ्त की घोषणाओं की झड़ी लगाने की बजाय लोगों के विकास के लिए आधारभूत सुविधाएं उचित दरों पर देने के साथ-साथ अपना अधिक ज़ोर स्वास्थ्य, शिक्षा एवं रोज़गार पर रखना पड़ेगा क्योंकि आर्थिक क्षेत्र में आने वाली चुनौतियां और भी बड़ी सिद्ध हो सकती हैं। 
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द