अभी भी बैडमिंटन में सुधार की ज़रूरत है गोपीचंद

थॉमस कप में शानदार पहली जीत कम से कम पी गोपीचंद के लिए तो आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि उनको ही इस बात का श्रेय जाता है कि भारत में एक ऐसा वातावरण विकसित हुआ, जिसमें से विश्व विजेता बैडमिंटन खिलाड़ी निकलकर आ रहे हैं। इस पूर्व आल इंग्लैंड चैम्पियन की कोशिशों से पहले व्यक्तिगत मेहनत से इक्का-दुक्का विश्व स्तरीय खिलाड़ी तो निकलकर आ जाते थे जैसे प्रकाश पादुकोण, सैयद मोदी या स्वयं गोपीचंद, लेकिन ऐसा कोई सिस्टम नहीं था, जिसके ज़रिये निरन्तर विश्व स्तरीय शटलर्स सामने आ सकें, जैसा कि आज है। आज हमारे पास पीवी सिंधु, सायना नेहवाल, लक्ष्य सेन, के श्रीकांत, एचएस प्रोंनॉय, सात्विक, चिराग शेट्टी आदि के रूप में खिलाड़ियों की एक लम्बी सूची है, जो संसार के किसी भी टॉप शटलर को हराने और दुनिया की किसी भी प्रतियोगिता को जीतने का दमखम रखते हैं। हद तो यह है कि इस समय जो जूनियर लड़कियों में विश्व की नम्बर एक खिलाड़ी, है वह भी भारत की ही तसनीम मीर है। इस शानदार सकारात्मक परिवर्तन का हक गोपीचंद की अथक कोशिशों को देना अतिशयोक्ति न होगा। बहरहाल, अब गोपीचंद का फोकस इस बात पर है कि भारत को संसार में बैडमिंटन का सबसे प्रभावी देश बनाया जाये, जैसा कि चीन, इंडोनेशिया व डैन्मार्क हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि थॉमस कप जीत के बाद लोग भारत की चर्चा बैडमिंटन पॉवरहाऊस के रूप में कर रहे हैं, लेकिन गोपीचंद का कहना है, ‘अभी बहुत काम करना शेष है। हमें अनेक विभागों में गहराई की ज़रूरत है और बहुत से क्षेत्रों में संरचना की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि खिलाड़ियों की क्षमता को अधिकतम किया जा सके। सुधार की अभी बहुत अधिक गुंजाइश है।’ गोपीचंद की यह बात सही प्रतीत होती है, क्योंकि हमारे जो टॉप प्लेयर हैं और जो दूसरी पंक्ति के खिलाड़ी हैं, उनकी प्रतिभा व क्षमता में बहुत अधिक अंतर है। यह अंतर शायद इसलिए भी प्रतीत हो रहा है, क्योंकि कोविड के कारण जूनियर स्तर की प्रतियोगिताएं आयोजित नहीं हुई हैं, जिससे युवा खिलाड़ियों को अगला पायदान चढ़ने का अवसर नहीं मिला है। गोपीचंद के अनुसार देश में टैलेंट की कोई कमी नहीं है। उन्हें यकीन है कि जब स्थितियां सामान्य हो जायेंगी तो अनेक खिलाड़ी अपनी छाप छोड़ेंगे। गौरतलब है कि गोपीचंद के कोच बनने से पहले बैडमिंटन में हमें सीमित सफलता ही मिल पाती थी। इसलिए यह जानना ज़रूरी हो जाता है कि गोपीचंद ने ऐसा क्या जादू किया है, जो शानदार नतीजे बरामद हो रहे हैं। गोपीचंद के मन में हमेशा यह बात तैरती रहती थी कि अगर उन्हें अंतर्राष्ट्रीय सफलता मिल सकती है तो देश में अन्य योग्य खिलाड़ी भी होंगे, जो इसे दोहरा सकते हैं। वह योग्य खिलड़ियों के लिए कुछ करना चाहते थे और उनकी मदद करना चाहते थे कि वह अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सफलता अर्जित करें। इसलिए उन्होंने कोचिंग का दायित्व संभाला और जो कुछ उन्होंने इस क्षेत्र में हासिल किया है उससे वह खुश हैं। दरअसल, एक कोच के रूप में उनकी कामयाबी के तीन मुख्य कारण हैं। एक, खिलाड़ियों का उनमें विश्वास होना क्योंकि उनमें से हर एक ने लगभग 10-12 वर्ष उनकी अकादमी में गुज़ारे हैं। वर्क एथिक ने भी इसमें काम किया है। दो, सरकार की मदद के कारण टॉप खिलाड़ियों को असीमित प्रतियोगिता एक्सपोज़र मिला है और ठोस ट्रेनिग सुविधाएं भी। इसकी बैडमिंटन के विकास में भी बड़ी भूमिका रही है। तीसरा यह कि सायना, सिंधु, श्रीकांत, कश्यप आदि टॉप खिलाड़ियों या युगल टीमों ने निरन्तर अच्छे नतीजे दिए हैं। वह युवाओं के लिए प्रेरणा रहे हैं। 1983 में भारत की क्रिकेट वर्ल्ड कप में जीत के बाद हमारे देश में क्रिकेट का जबरदस्त विकास हुआ है। अब लोग थॉमस कप जीत के बाद ऐसी ही उम्मीद बैडमिंटन के संदर्भ में भी कर रहे हैं। क्या ऐसा मुमकिन है? इस बारे में गोपीचंद का कहना है कि यह ख़ुशी की बात है कि लोग 1983 की क्रिकेट जीत से थॉमस कप जीत की तुलना कर रहे हैं। इससे खेल को बढ़ावा मिलेगा। 

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