लुकआउट नोटिस से किसकी साख पर लगेगा प्रश्न-चिन्ह ?

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने दिल्ली आबकारी नीति मामले में 8 लोगों के विरुद्ध लुकआउट नोटिस (एलओसी) जारी किया है जिस कारण अब ये लोग देश छोड़कर बाहर नहीं जा सकते। जिन लोगों के विरुद्ध लुकआउट नोटिस जारी किया गया, उनमें दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी शामिल हैं। इसके कारण दिल्ली अब आम आदमी पार्टी बनाम भारतीय जनता पार्टी के बीच बड़ी सियासी जंग का अखाड़ा बनता लग रहा है। गौरतलब है कि दिल्ली की नई शराब नीति पर गत 22 जुलाई, 2022 को दिल्ली के उप-राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने नियमों के कथित उल्लंघन और प्रतिक्रियागत खामियों को लेकर सीबीआई जांच की सिफारिश की थी।
इसके बाद 19 अगस्त, 2022 को सीबीआई ने दिल्ली के उमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया सहित कई दूसरे आशंकित उम्मीदवारों के घरों व दफ्तरों में एक साथ छापे मारे थे। इस छापेमारी के दौरान खुफिया एजेंसी को दो संदिग्ध व्यक्ति अपने घरों में नहीं मिले थे। हालांकि इन व्यक्तियों को भी जांच में शामिल होने के लिए तलब किया गया है लेकिन कहीं ये लोग देश छोड़कर भाग न जाएं, इसलिए सीबीआई ने जिन लोगों के घरों में छापे मारे हैं और जिनको लेकर उसे आशंका है कि इन्होंने दिल्ली की नई शराब नीति की आड़ में घोटाला किया है, उनमें से 9 लोगाें के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराई गई है।  जिन लोगों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करायी गई हैं, उनमें दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के अलावा मनोरंजन और इवेंट मैनेजमेंट कम्पनी ओनली मच लाउडर के पूर्व सीईओ विजय नायर, ब्रिंडको स्पिरिट्स के मालिक अमनदीप ढल्ल, इंडोस्पिरिट्स के मालिक समीर महेंदू्र, बड्डी के डायरेक्टर अमित अरोड़ा, खुदरा प्रा. लि. (राधा इंडस्ट्रीज) के दिनेश अरोड़ा, महादेव लिकर्स के सनी मारवाह, प्रोप्राइटरशिप फर्म अर्जुन के रामचंद्र पिल्लई और अर्जुन देशपांडे शामिल हैं। सिर्फ  पर्ने रेकोर्ड के पूर्व उपाध्यक्ष मनोज राय के विरुद्ध लुकआउट नोटिस नहीं जारी किया गया जबकि उनके विरुद्ध भी एफआईआर की गई है। 
इस लुकआउट नोटिस के बाद यह मामला काफी बड़ा लगने लगा है, लेकिन जिस तरह से भाजपा और ‘आप’ के दूसरे नेता तथा कार्यकर्ता दिल्ली में एक दूसरे के विरुद्ध कमर कस कर उतर आये हैं, उससे लगता है, जैसे यह कोई भ्रष्टाचार का मामला न हो बल्कि राजनीतिक ज़ोर आजमाइश का मामला हो और दोनों राजनीतिक पार्टियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हो। दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री इस मामले में न तो सीबीआई और न ही केंद्र सरकार बल्कि सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमलावर हैं। मनीष सिसोदिया लगातार इस मामले में प्रधानमंत्री की आलोचना कर रहे हैं और खुलेआम कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री आम आदमी पार्टी के खिलाफ  साज़िश कर रहे हैं। यही नहीं, इस पूरे मामले पर जबरदस्त व्यंग्य करते हुए मनीष सिसोदिया यह भी कह रहे हैं, ‘मोदी जी, मैं खुलेआम घूम रहा हूं। फिर यह लुकआउट नोटिस की नौटंकी क्यों की जा रही है? बताइये, मुझे कहां आना है।’
जिस किस्म से मनीष सिसोदिया प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं, उससे लगता है, उन्हें भरोसा है कि आम लोग इसे सिर्फ  राजनीतिक रस्साकशी का मामला मानते हैं और मानेंगे। इस पर उन्हें आक्रामक पलटवार करना ज़रूरी है ताकि इस सियासी जंग में कम से कम दिल्ली के भीतर आम आदमी पार्टी का पलड़ा भारी रहे और भाजपा जिस तरह से दिल्ली के शासन-प्रशासन में अपनी उपस्थिति देखना चाहती है, उससे वह वंचित रहे। तभी तो वह लुकआउट नोटिस पर सीधे प्रधानमंत्री को लपेटते हैं और कहते हैं, ‘कौन कहता है, मैं गायब हूं। मैं तो यहां रहा। इसलिए लुकआउट नोटिस की नौटंकी मत कीजिए’। 
शायद मनीष सिसोदिया को लुकआउट नोटिस जारी करने की विस्तृत गाइडलाइन का पता नहीं है। यह सिर्फ  किसी अपराधी के विरुद्ध ही जारी नहीं होता बल्कि ऐसे लोगों के विरुद्ध भी जारी किया जाता है, जिन पर अपराधी होने की आशंका हो और उनसे देश के बाहर चले जाने का डर हो। 
इसलिए मनीष सिसोदिया जिस तरह का व्यंग्य कर रहे हैं, वह सिर्फ लुकआउट नोटिस की प्रक्रिया न जानने वाले लोगों के लिए सम्बोधित है। हकीकत यह है कि एलओसी सिर्फ  फरार या जिनका पता न चल रहा हो, ऐसे गायब लोगों के लिए ही नहीं जारी किया जाता बल्कि उन लोगों के विरुद्ध भी जारी किया जा सकता है, जिनके ऐसी सूची में शामिल होने की आशंका हो। मगर असली प्रश्न यह है कि बार बार अपनी साख पर बट्टा लगवाने वाली सीबीआई क्या सचमुच दिल्ली की जिस आबकारी नीति को भारी गड़बड़ घोटाले की रणनीति मान रही है, उसके विरुद्ध उसके पास ठोस सबूत हैं? आम आदमी पार्टी और खुद दिल्ली के मुख्यमंत्री व उप-मुख्यमंत्री ताल ठोंक कर बार-बार कह रहे हैं कि खुफिया एजेंसी को उनकी सरकार के विरुद्ध एक भी चीज नहीं मिली है और अगर उसने कुछ ऐसी चीज हासिल की हो तो उसे सार्वजनिक करे।
ज़ाहिर है, सीबीआई के कामकाज पर लगातार सवालिया निशान लगते रहे हैं और अगर इस बार भी ऐसा ही हुआ तो साबित हो जायेगा कि छापे और जांचों के पीछे आपराधिक कम, सियासी मंशाएं ज्यादा होती हैं। दिल्ली के सियासी गलियारों में कई महीने से खुसुर-फुसुर जारी है कि देश के ज्यादातर हिस्सों में अपनी सरकार चलाने और राजनीतिक दबदबा कायम करने वाली भाजपा को दिल्ली में आखिर लगातार कोई मौका क्यों नहीं मिल रहा? तभी से यह माना जा रहा था कि दिल्ली सरकार के खिलाफ  कई तरह की जांच पड़ताल का चक्रव्यूह रचा जायेगा। हो सकता है, खुसुर-फुसुर भी बहुत पूर्वनियोजित हो और अपने गुनाहों पर पर्दा डालने के लिए पहले से ही की जा रही आक्रामक मोर्चेबंदी हो। 
लेकिन अगर ज्यादातर बार की तरह इस बार भी सीबीआई के दावे दिल्ली की पूर्व आबकारी नीति के विरुद्ध टांय-टांय फिस्स साबित हुए, तो यह सीबीआई के दामन पर विश्वसनीयता के संकट की एक और मुहर होगी। लुकआउट सर्कुलर अगर महज राजनीतिक पार्टियों के बीच की निजी उठापटक हो तो इसमें बहुसंख्यक देशवासियों को शामिल करना अक्लमंदी नहीं होगी। वास्तव में हमारे यहां इतना समय राजनीति की क्रियात्मकता पर नहीं लगता, जितना इस बात पर लगता है कि कैसे दूसरी पार्टी को नीचे गिराया जाए ताकि वह कभी सत्ता की दावेदार न बन सके, लेकिन कई बार यह दांव उल्टा पड़ जाता है, इसलिए न सिर्फ  आरोपी की बल्कि आरोप लगाने वाले की भी विश्वसनीयता खो जाती है। कुल मिलाकर कहने की बात यह है कि लुकआउट नोटिस के बाद ‘आप’ पर सियासी भ्रष्टाचार का जो आरोप लगा है, अगर सीबीआई उसे साबित नहीं कर पाती तो उसकी साख पर लगा विश्वसनीयता का द़ाग और गहरा हो जायेगा। और अगर आम आदमी पार्टी जिसे वैकल्पिक राजनीति का प्रतीक माना जा रहा है,  इसमें लिप्त पायी गई तो ऐसी सारी आशाएं और उम्मीदें खत्म हो जाएंगी। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर