मोमबत्ती बुझने पर बिल्लियां ग्रे क्यों दिखायी देती हैं ?

एक प्रचलित कहावत है कि मोमबत्ती गुल होने पर सारी बिल्लियां ग्रे रंग की हो जाती हैं। लेकिन एक भौतिकशास्त्री कहेगा कि जब मोमबत्तियां बुझ जाती हैं तो सभी बिल्लियां काली हो जाती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि रोशनी की अनुपस्थिति में आमतौर से कुछ भी दिखायी नहीं देता है। बहरहाल, इस कहावत का अर्थ पूर्ण अंधेरा नहीं है बल्कि कहने का अर्थ यह है कि जब रोशनी कम या कमजोर होती है तो हम रंगों में अंतर नहीं कर पाते और हमें हर चीज ग्रे प्रतीत होती है।
क्या यह बात वास्तव में सच है? क्या वास्तव में ऐसा होता है कि आधे अंधेरे में एक लाल झंडा और एक हरा पत्ता दोनों ग्रे प्रतीत होंगे? आप इस बात की आसानी से पुष्टि कर सकते हैं। अगर आपने कभी धुंधलके में रंगों में अंतर करने का प्रयास किया है तो आपने देखा होगा कि हर चीज आमतौर से कमोबेश गहरा ग्रे टिंज हासिल कर लेती है, भले ही उसका रंग जो भी हो- चाहे वह लाल कंबल हो, नीला वाल पेपर हो, वायलेट फूल हों या हरी पत्तियां हों।
चेखव की कहानी ‘पत्र’ तो शायद आपको याद होगी। इसमें एक जगह वह लिखते हैं, ‘खिड़कियों व दरवाजों पर पड़े पर्दों ने धूप को अंदर आने से रोक दिया था। कमरे में आधा अंधेरा छा गया था। बड़े गुलदस्ते में रखे सभी गुलाब एक ही रंग के प्रतीत हो रहे थे।’
फिजिक्स के प्रयोगों ने चेखव के इस अवलोकन की पुष्टि की है। अगर आप हल्की सफेद रोशनी किसी रंगीन सतह पर डालेंगे या हल्की टिंटेड लाइट सफेद सतह पर डालेंगे और आहिस्ता-आहिस्ता मोमबत्ती की शक्ति में वृद्धि करेंगे, तो आप पहले केवल ग्रे रंग देखेंगे और कोई अन्य रंग नहीं देखेंगे। फिर जब मोमबत्ती की पॉवर पर्याप्त तीव्र हो जायेगी तो आप रंग को नोटिस करने लगेंगे। इसे रंग अनुभूति की पूर्ण डेवढ़ी या सीमा कहते हैं। इसलिए उक्त कहावत, जो विभिन्न भाषाओं में अलग-अलग तरह से मौजूद है, वास्तव में सही है क्योंकि रंग अनुभूति की ड्योढ़ी या सीमा के नीचे हर चीज ग्रे प्रतीत होती है। रंग संवेदना की एक टर्मिनल ड्योढ़ी या सीमा भी होती है। जब रोशनी बहुत अधिक ब्राइट या चमकीली होती है तो आंखें रंगों में अंतर करना फिर बंद कर देती हैं और सभी रंगीन सतहें ‘सफेद’ प्रतीत होती हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर