क्यों खास बनीं गोर्बाचेव की भारत यात्रा ?

सोवियत संघ के आखिरी राष्ट्रपति रहे मिखाइल गोर्बाचेव भारत में भी हमेशा याद रखे जायेंगे। उन्होंने शीत युद्ध को खत्म करने की ठोस कोशिशें कीं। मिखाइल गोर्बाचेव ने रूसियों को स्वतंत्रता का रास्ता दिखाया। यूरोप में शांति के लिए उनकी प्रतिबद्धता ने हमारे इतिहास को बदल दिया। उनका पिछले दिनों निधन हो गया। उनके निधन से उनकी सन् 1986 में की गई भारत यात्रा की यादें भी ताज़ा हो गईं। वह भारत यात्रा के एक साल पहले ही सोवियत संघ के राष्ट्रपति बने थे। वह नवम्बर में भारत के चार दिनों के दौरे पर आये थे। उनकी यात्रा को देखते हुए पालम एयरपोर्ट से लेकर उन सब जगहों पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किये गये थे, जहां पर उन्हें जाना था। दरअसल उस दौर में राजधानी में बड़ी संख्या में अफगानी शरणार्थी रहते थे। वे सोवियत संघ की अफगान नीति से खफा थे। आशंका थी कि अफगानी मिखाइल गोर्बाचेव की यात्रा के दौरान उनका विरोध करेंगे। मिखाइल गोर्बाचेव का पालम एयरपोर्ट पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी, उनकी पत्नी श्रीमती सोनिया गांधी और केन्द्रीय कैबिनेट के सदस्यों ने स्वागत किया था। गोर्बाचेव की उस भारत यात्रा की सारे संसार में चर्चा इसलिए हो रही थी क्योंकि वह किसी एशियाई देश में पहली दफा आए थे। गोर्बाचेव ने अपने उस  दौरा के दौरान संसद के दोनों सदनों को संबोधित भी किया था। अपने 30 मिनट के संबोधन में उन्होंने भारत-सोवियत संघ मैत्री के इतिहास और वर्तमान पर चर्चा की थी। हालांकि उम्मीद थी कि वह एक घंटा तो भाषण देंगे ही, पर उनका भाषण आधे घंटे में ही समाप्त हो गया था। वह रूसी भाषा में बोले  थे। उनके भाषण का हिन्दी-अंग्रेज़ी में अनुवाद सांसदों को उपलब्ध करवा दिया गया था। गोर्बाचेव को उस दौरे के दौरान भारत की तरफ  से बताया जा रहा था कि उसे चीन व पाकिस्तान की तरफ  से  हथियारों को लेकर खतरा है। यह स्थिति अब भी बनी हुई है।  वह 1985 से 1991 तक सोवियत संघ की सत्ता में थे। उन्होंने अपने दौर में दो सुधार किए थे जिन्होंने सोवियत संघ का भविष्य बदल डाला। ये थे ग्लासनोस्त यानि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पेरेस्त्रोइका यानि पुनर्गठन। ग्लासनोस्त या खुलेपन की नीति के बाद सोवियत संघ में लोगों को सरकार की आलोचना करने का अधिकार मिला। यह ऐसी बात थी जिसके बारे में पहले रूस वासियों द्वारा कभी कल्पना भी नहीं की गई थी।
मिखाइल गोर्बाचेव अपनी पत्नी रायसा तथा एक लम्बे-चौड़े प्रतिनिधिमंडल के साथ दिल्ली आए थे। उनके साथ, उप प्रधानमंत्री व्लादिमिर केमेनटसेव, विदेश मंत्री एडवर्ड शेवरनादजे तथा सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के विदेश मामलों के अध्यक्ष एंतोलिव डोबरनिन भी आए थे। वह राष्ट्रपति भवन में ठहरे थे। उस समय पालम एयरपोर्ट से लेकर राष्ट्रपति भवन, राजघाट आदि के आसपास की सड़कों पर भारत-सोवियत संघ के झंडे और राजीव गांधी तथा मिखाइल गोर्बाचेव के चित्रों वाले बड़े-बड़े बैनर लगे हुए थे। उन्होंने महात्मा गांधी की समाधि राजघाट पर जा कर बापू को श्रद्रांजलि दी थी। वहां उन्हें महात्मा गांधी के जीवन से जुड़ी कई किताबें भेट की गई थीं। उनकी उस यात्रा के बाद सोवियत संघ ने भारत को मिग-26 विमानों की सप्लाई तुरंत शुरू कर दी थी। यह अलग बात है कि मिग-26 विमानों की गुणवत्ता को लेकर अनेक सवाल बार-बार खड़े  किये जाते रहे परन्तु उन दिनों मिग के अतिरिक्त हमारे पास विकल्प ही क्या था।
 इस बीच रूस के मौजूदा राष्ट्रपति पुतिन से उनके संबंध अच्छे नहीं रहे। पुतिन सोवियत संघ के टूटने को दुखद मानते हैं। इसके लिए गोर्बाचेव को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा। पुतिन के साथ कई रूसी नेता मानते हैं कि सोवियत संघ के टूट जाने के बाद रूस कमज़ोर हुआ और उसकी अर्थव्यवस्था गिर गई। गोर्बाचेव ने सोवियत संघ के बिखरने के बाद रूसी मीडिया और कला जगत को आज़ादी दी थी। उन्होंने सरकार पर कम्युनिस्ट पार्टी की पकड़ ढीली करने के लिए कई क्रांतिकारी सुधार किए। उसी दौरान हज़ारों राजनीतिक बंदियों और कम्युनिस्ट शासन के आलोचकों को भी जेल से रिहा किया गया। यह भी याद रखा जाए कि गोर्बाचेव 54 साल की उम्र में सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने थे और इसी नाते वह देश के सर्वोच्च नेता भी बने। उस समय वह पोलित ब्यूरो के नाम से जानी जाने वाली सत्तारूढ़ परिषद के सबसे कम उम्र के सदस्य थे।