अन्ना हज़ारे के पत्र का जवाब देना चाहिए केजरीवाल को 

अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक गुरु कहे जाने वाले अन्ना हज़ारे ने उन्हें पत्र लिखा है। इस पत्र में अन्ना हज़ारे ने अरविंद केजरीवाल से कहा है कि वह दिल्ली में शराब की दुकानों को बंद कर दें। उन्होंने कहा कि अरविंद केजरीवाल ने स्वराज पुस्तक में बड़ी-बड़ी बातें की थीं, लेकिन उनके आचरण पर उसका असर नहीं दिख रहा है। अन्ना हज़ारे ने अपने पत्र में अरविंद केजरीवाल को संबोधित करते हुए लिखा, ‘आपके मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार मैं आपको खत लिख रहा हूं। पिछले कई दिनों से दिल्ली सरकार की शराब नीति को लेकर जो खबरें आ रही हैं, उन्हें पढ़कर दुख होता है।’ दिल्ली सरकार की शराब नीति पर सवाल खड़े करते हुए अन्ना हज़ारे ने पत्र लिख कर अरविंद केजरीवाल से कहा है, ‘जिस प्रकार शराब का नशा होता है... उसी प्रकार सत्ता का भी नशा होता है... आप भी ऐसी सत्ता के नशे में डूब गए हो, ऐसा लग रहा है।’
यह अन्ना हज़ारे ही हैं जिनके पीछे-पीछे आंदोलन के रास्ते चलते हुए अरविंद केजरीवाल राजनीति में आये। ऐसे में अरविंद केजरीवाल के नाम अन्ना हज़ारे का शिकायती पत्र देश की राजनीति में खास मायने रखता है-क्योंकि भ्रष्टाचार के खिलाफ अरविंद केजरीवाल के आंदोलन का नेतृत्व करने वाले अन्ना हज़ारे ने टीम अन्ना के मुख्य सूत्रधार की राजनीति या कहें, राजनीतिक मंशा पर सवाल उठा दिया है। 
अन्ना हज़ारे ने कहा कि महात्मा गांधी के ‘गांव की ओर चलो’ के विचार से प्रेरित होकर मैंने अपनी ज़िंदगी गांव, समाज और देश के लिए समर्पित की है। पिछले 47 सालों से ग्राम विकास के लिए काम कर रहा हूं और भ्रष्टाचार के विरोध में आंदोलन कर रहा हूं। अरविंद केजरीवाल को पुराने दिन याद दिलाते हुए अन्ना हज़ारे ने कहा कि आप हमारे गांव रालेगण सिद्धि आ चुके हैं। यहां आपने शराब, बीड़ी, सिगरेट आदि पर रोक की प्रशंसा की थी। राजनीति में आने से पहले आपने ‘स्वराज’ नाम से एक किताब लिखी थी। इस पुस्तक में आपने ग्रामसभा, शराब नीति के बारे में बड़ी-बड़ी बातें लिखी थीं। तब आपसे बहुत उम्मीद थी, लेकिन राजनीति में जाकर मुख्यमंत्री बनने के बाद आप आदर्श विचारधारा को भूल गए हैं।
अन्ना का आंदोलन भ्रष्टाचार और राजनीतिक गंदगी, संकीर्णता के खिलाफ  था। लोकपाल का गठन यूं प्रस्तुत किया गया मानो उसके बाद सरकारी और सत्ता के गलियारों में भ्रष्टाचार, दलाली, घूसखोरी आदि अस्तित्वहीन हो जाएंगे। अवकाश के दिन संसद का आकस्मिक सत्र बुलाकर लोकपाल पर चर्चा हुई और प्रस्ताव पारित किया गया कि लोकपाल को प्रशासन में स्थापित किया जाएगा। महिलाएं शराबबंदी और सामाजिक शुचिता को लेकर लामबंद हुई थीं। अन्ना के मानस-पुत्र के तौर पर केजरीवाल को प्रस्तुत किया गया। उन्होंने शूगर का मरीज़ होने के बावजूद अनशन किया।
उनके अतिरिक्त किरण बेदी, जनरल वी.के. सिंह, योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास, आशुतोष, शाजिया इल्मी आदि कई और चेहरों ने भी भ्रष्टाचार के खिलाफ  आंदोलन को गति दी, लेकिन केजरीवाल के एकाधिकारवाद के कारण धीरे-धीरे सभी अलग हो गए। जनरल वी.के. सिंह तो मोदी सरकार में राज्यमंत्री हैं। राजनीतिक सत्ता तब कोई लक्ष्य नहीं था। केजरीवाल ने भी तब कसम खाई थी। यही नहीं, प्रणब मुखर्जी, कपिल सिब्बल, शीला दीक्षित, अरुण जेतली, नितिन गडकरी सरीखे 15 बड़े नेताओं की सूची भी तैयार की गई थी। केजरीवाल समूह ने उन्हें ‘भ्रष्ट नेता’ करार दिया था और जेल भेजने का कथित संकल्प लिया था। 
गत वर्षों में पूरा परिदृश्य ही बदल चुका है। केजरीवाल और उनके सहयोगियों ने आम आदमी पार्टी (आप) का गठन किया। केजरीवाल लगातार पार्टी के आलाकमान बने हुए हैं। अर्द्धराज्य दिल्ली में वह 2015 से लगातार मुख्यमंत्री हैं और अब पंजाब में सरकार बन जाने के बाद देश का प्रधानमंत्री बनने की केजरीवाल और ‘आप’ की महत्वाकांक्षाएं बढ़ गई हैं। अन्ना ने एक अंतराल के बाद केजरीवाल को पत्र लिखा है। उसमें अन्ना की चिंता और सरोकार के समेत केजरीवाल के लिए फटकार भी है। अन्ना ने साफ  लिखा है कि केजरीवाल और उनकी ‘आप’ सत्ता के नशे में चूर हो गए हैं। लिहाज़ा आदर्श भूल चुके हैं और लोकपाल तो न जाने कहां पीछे छूट गया है। अन्ना ने केजरीवाल की लिखी किताब ‘स्वराज’ की भी याद दिलायी, जिसकी भूमिका अन्ना ने ही लिखी थी। किताब में ग्राम स्वराज, शराब के खतरनाक परिणाम, लोकपाल वाला प्रशासन आदि कई आदर्शवादी बातें कही गई थीं। अन्ना की पीड़ा है कि वह आदर्श कहीं खो गया है। केजरीवाल की कथनी और करनी में फर्क है। 
अन्ना ने याद दिलाया कि केजरीवाल ने संकल्प लिया था कि ग्राम सभा की 90 फीसदी से ज्यादा महिलाएं ‘हां’ कहेंगी, तो ही शराब की दुकानें खोली जाएंगी। खुद को ‘कट्टर ईमानदार’ मानने वाले केजरीवाल तय करें कि वास्तव में वह क्या हैं? बहरहाल अन्ना ने केजरीवाल की पूरी राजनीति को सूली पर टांग दिया है। हास्यास्पद यह है कि केजरीवाल इसे भी भाजपा की क्षुद्र राजनीति मान रहे हैं। यानी अन्ना ने भाजपा के कहने पर पत्र लिखा है और केजरीवाल को फटकार लगाई है। केजरीवाल ऐसी ‘सियासी भावुकता’ फैलाना बंद करें। जनता इतनी मूर्ख नहीं है। अन्ना का सवाल वाजिब है कि लोकपाल कहां है? बड़े सरकारी बंगले में आवास और ज़ैड प्लस सुरक्षा क्या है? केजरीवाल ने तो इनके खिलाफ राजनीति करने का संकल्प लिया था। शराब नीति पर कोई सवाल यहां उठाना ठीक नहीं है क्योंकि इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है। 
अन्ना के चेले अरविंद केजरीवाल ने भी अपने गुरु के पत्र पर सवाल उठा दिया है। वैसे अरविंद केजरीवाल तो दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के घर पर सीबीआई के छापे पर भी सवाल उठाते रहे हैं और दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन के खिलाफ  चल रहे मनी लॉन्ड्रिंग केस को ही फर्जी करार दे चुके हैं। निश्चित तौर पर अन्ना हज़ारे के पत्र पर अरविंद केजरीवाल की प्रतिक्रिया राजनीतिक है लेकिन क्या अन्ना हज़ारे का पत्र सवालों से परे है? फिर भी केजरीवाल को अन्ना के पत्र का जवाब देना चाहिए और तार्किक वजह बतानी चाहिए कि उन्हें सियासत में क्यों आना पड़ा? यदि वह खामोश रहेंगे और भाजपा पर आरोप चस्पा करते रहेंगे, तो उनकी सियासी शख्सियत और भी सवालिया होती जाएगी। भाजपा पर वह जो आरोप लगा रहे हैं, उन्हें भी साबित करना जरूरी है। उन्होंने आरोप लगाया है कि उनकी पार्टी गुजरात के विधानसभा चुनावों में भाग न ले सके, इसलिए उनके पीछे सीबीआई को लगा दिया गया है। इस तरह के आरोप जनता तभी सच मानेगी, जब वह साबित करके दिखाएंगे कि उनकी पार्टी वास्तव में ‘कट्टर ईमानदार’ है।