बदहाल हो रही है देश की सियासत

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आज़ाद ने करीब पांच दशकों के पिछले महीने को पार्टी की सदस्यता एवं सभी पदों से त्यागपत्र दे दिया साथ ही पांच पृष्ठों का पत्र भी लिखा जिसमें उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व की कार्यशैली विशेषतया राहुल गांधी द्वारा कांग्रेस पार्टी का सत्यानाश करने का खुला जिक्र भी किया। कहा कि वह भारी मन से पार्टी में होने वाली घुटन से आज़ाद हो रहे हैं। उन्होंने पार्टी नेतृत्व की योग्यता पर काफी सवाल उठाये। इस्तीफों की बात तो कैप्टन अमरेन्द्र सिंह से ही आरम्भ हो गई थी जो लगातार बढ़ती गई। 
आज़ाद के इस्तीफे के बाद जम्मू कश्मीर के कुछ बड़े नेताओं ने भी त्यागपत्र दे दिए अब मनीष तिवारी सरीखे नेता भी इसी राह पर जाते दिखाई दे रहे हैं। आनंद शर्मा भी जैसे इसी कतार में कह कर उपयुक्त समय का इंतज़ार करते दिखाई दे रहे हैं। आज़ाद ने अलग पार्टी बनाने का संकेत दिया है। गुलाम नबी आज़ाद के इस्तीफे पर अजय माकन और जयराम  रमेश ने बाकायदा प्रेस वार्ता में उस हेतु भाजपा की उकसाहट व मोदी प्रेम को कारण बताया है और कांग्रेस के इस संकट भरे समय में उनके इस्तीफे की भर्त्सना की। जी-3 बनाम जी-23 का विरोध खुल कर सामने आ गया है। चाहे आज़ाद एवं अन्य नेता भाजपा में न भी जाएं, तब भी प्रत्यक्ष नहीं तो परोक्ष रूप से कांग्रेस के नेताओं का पार्टी छोड़ना भाजपा के ही हित में है। सिंधिया एवं हिमंता सरमा इसके प्रमाण हैं जिन्होंने पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थामा और भाजपा की हाल में चुनावी जीत में योगदान भी दिया और महत्वपूर्ण पद भी हासिल किये। कांग्रेस पार्टी के भीतर होती घुटन महाभारत के उदाहरण से स्पष्ट हो जाती है जहां धृतराष्ट्र ने पुत्र प्रेम में कुरू वंश का ही बंटाधार करवा दिया था यूं ही पुत्र  प्रेम में कांग्रेस मुसलसल रसातल की ओर जा रही है। मुकाबला भाजपा जैसी शक्तिशाली पार्टी से है जहां  नेताओं को  मामूली पार्टी हितों के विरोध के कारण बाहर का रास्ता दिखाने में ज़रा-ज़रा संकोच नहीं किया जाता। 
आज़ाद भी अगर भाजपा में शामिल हो जाते हैं तो तो जम्मू-कश्मीर में भाजपा को एक सॉफ्ट नेता मिल जाता है जिसे मुख्यमंत्री पद से नवाज़ा जा सकता है से यदि आज़ाद अलग पार्टी  बनाकर चुनाव लड़ते हैं तो भाजपा के सहयोग से कुछ सीटें हासिल कर चुनाव उपरान्त भाजपा के गठजोड़ से सरकार बना सकते हैं। जम्मू से भाजपा के नेता जीतते हैं और कश्मीर में आज़ाद की पार्टी के तो मिलजुल कर सरकार बन जायेगी। बेलगाम घोड़ों की भांति बदजुबानी की रफ्तार मुसलसल बढ़ती जा रही है यह परवाह किये बिना कि उनके ऊल जलूल बयान राष्ट्र हित में नहीं हैं। सामाजिक भाईचारे को बिगाड़ते  हैं। परस्पर वैमनस्य पैदा कर हिंसा भड़काते हैं। देश के हितों पर कुठाराघात करते हैं। देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डालते हैं। दुश्मन देशों की हौसला अफजाई करते हैं। समय आ गया है कि देश के बुद्धिजीवी,  कानूनविद, समाजसेवी एवं रहनुमा परस्पर मिलकर सोचें और बेलगाम नेताओं व भ्रष्ट,चरित्रहीन, विवेकहीन नेताओं को बाहर  का रास्ता दिखाएं, उन्हें टिकेट न दें। ऐसे कानून बनाये जाएं जहां संसद में अनुशासनात्मक कोड  लागू हो जिसका उल्लंघन करने वालों की सदस्यता समाप्त की जाए। उनकी मान्यता रद्द की जाए, उन पर कड़ी कार्यवाही हो, अन्यथा यूं ही लोकतंत्र का मज़ाक बनता रहेगा। यह महज़ औचित्यहीन निरर्थक लफ्ज़ ही बन कर रह जाएगा। 
मतदाताओं को भी चाहिए कि किसी लोभ लालच, निजी हित व दबाव में ना आकर राष्ट्रहित में सोच समझकर मतदान करें। केवल सभ्य, शालीन, ईमानदार, वतनपरस्त नेताओं को ही चुनें जो निजी व निज की पार्टी हितों से ऊपर उठकर राष्ट्रहित व जनहित को प्राथमिकता दें। यह ही समय की मांग है अन्यथा आज के नेता अपने वतन की गरिमामय विरासत को रसातल में ले जाने के लिए काफी हैं।