फसली विभिन्नता संबंधी यथार्थपरक योजनाबंदी की ज़रूरत

किसानी गम्भीर संकट में है। किसानों के सिर चढ़े ऋण का बोझ बढ़ रहा है। आत्महत्याओं का रुझान अभी भी जारी है। धान खरीफ की मुख्य फसल है जो चीन से आए वायरस के कारण पौधे छोटे रहने की समस्या से घिरी हुई है। कहीं कम तथा कहीं अधिक बारिश होने के कारण धान की फसल का काफी नुक्सान हुआ। कम समय में अगेती पकने वाली धान तथा बासमती की किस्मों की कटाई भी पिछड़ गई। नरमे, कपास की काश्त अधीन गत वर्ष के 3.25 लाख हैक्टेयर रकबे से 25 प्रतिशत कम होकर रकबा 2.47 लाख हैक्टेयर पर आ गया। नरमे का उत्पादन भी कम हो गया। मक्की की काश्त का लक्ष्य पूरा नहीं हुआ। गन्ना उत्पादकों का भुगतान न होने के कारण गन्ने की काश्त को ओर किसानों का रूझान कम रहा है। सोयाबीन पंजाब की फसल ही नहीं बन सकी। सब्ज़ियां बारिश एवं मौसम के अनुकूल न होने के कारण खराब हो गईं।
यह सब कुछ होने के कारण कृषि विभिन्नता के यत्नों को सफलता नहीं मिल सकी। रबी में तो गेहूं की काश्त के अधीन रकबा कम करने की आवश्यकता नहीं। आवश्यकता खरीफ में धान की काश्त के अधीन रकबा कम करने की है क्योंकि भू-जल का स्तर प्रत्येक वर्ष नीचे जा रहा है और पानी कम हो रहा है। धान की काश्त के अधीन रकबा कम करने के लिए गत 30 वर्षों के दौरान किये गये प्रयास असफल रहे हैं। जैसे-जैसे सरकार द्वारा इस संबंधी अभियान तेज़ होता गया, धान की काश्त के अधीन रकबा कम होने की बजाय बढ़ता गया। वर्ष 2000 में यह रकबा 26 लाख हैक्टेयर था। वर्ष 2009 में 28 लाख हैक्टेयर हो गया और फिर 2021 में 30.66 लाख हैक्टेयर तथा अब इस वर्ष खरीफ में बढ़ कर 30.84 लाख हैक्टेयर पर पहुंच गया। चाहे इस रकबे में से 5 लाख हैक्टेयर रकबे पर बासमती की काश्त है जिसकी पानी की आवश्यकता धान से कम है। बासमती की किस्मों में भी थोड़े समय में पकने वाली पूसा बासमती-1509, पूसा बासमती-1692 किस्में जिन्हें पानी की ज़रूरत और भी कम है तथा कई बार यह बारिश के पानी से ही पक जाती हैं, की काश्त के अधीन रकबा बढ़ा है। किसानों को इस किस्म की फसल का मंडी में दाम भी 3000 से 3800 रुपये प्रति क्ंिवटल तक मिला जो गत वर्षों के मुकाबले संतोषजनक एवं लाभदायक है। 
किसान खरीफ के मौसम में धान की फसल को छोड़ना नहीं चाहते क्योंकि कोई अन्य फसल इसके मुकाबले में उनको मुनाफा नहीं देती। इस साल धान की फसल पर पौधे छोटे रहने जैसी बीमारियां और बारिश के कम-ज्यादा होने के कारण संभावित नुकसान होने के बावजूद पंजाब सरकार ने अनुमान लगाकर 191 लाख मीट्रिक टन धान की सरकारी खरीद करने का फैसला किया है। जबकि केन्द्र सरकार ने फूड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया (एफ.सी.आई.) के लिए सरकारी खरीद करने का लक्ष्य 184.45 लाख मीट्रिक टन रखा है। प्रीतम सिंह सरपंच देवीनगर उर्फ सवाई सिंह वाला (पटियाला) कहते हैं कि उसने 45 एकड़ रकबे पर धान की काश्त की है और परसल दवाई के दो स्प्रे किए हैं। जिसके उपरांत उसकी फसल तो पक गई परन्तु नाड़ हरा है जो कहता है, कि आशाजनक झाड़ देने का संकेत देता है। वह कहता है कि उसके गांव में किसानों ने धान बीज कर उससे हुई आय की सहायता से अनगिनत कम्बाईन हार्वैस्टर ले लिए जिनको वह भारत के सभी दूसरे राज्यों में जाकर कस्टम हायर पर चलाते हैं और अधिक कमाई कर रहे हैं। वह धान की बजाय खरीफ में कोई और फसल नहीं बीजना चाहते।
भारत विश्व का सबसे ज्यादा चावल निर्यात करने वाला देश बन गया है। इसका मुकाबला करने वाले दूसरे थाईलैंड तथा वीयतनाम जैसे देश पीछे रह गये हैं।  सन् 2020-21 में 46.32 लाख मीट्रिक टन चावल भारत ने विश्व के अलग-अलग देशों को निर्यात किया, जिससे 30 हजार करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की कमाई हुई। बासमती किस्मों के प्रसिद्ध ब्रीडर और आई.सी.ए.आर.-भारत कृषि अनुसंधान संस्थान के डायरैक्टर और उप-कुलपति डा. अशोक कुमार कहते हैं कि जो बासमती की तीन नई किस्में झुलस और भुरड़ (बलाईट और ब्लास्ट) रोग से मुक्त विकसित की गई हैं, उनका चावल बहुत उत्तम गुणवत्ता वाला है और इस किस्मों की काश्त के तौर पर एक्सपोर्ट मंडी में भारत की बासमती की मांग बढ़ेगी। किसानों की आय भी बढ़ेगी क्योंकि इनका उत्पादन दूसरी किस्मों से ज्यादा है। पूसा बासमती-1847 किस्म कम समय में पकने वाली पूसा बासमती-1509 किस्म का संशोधित रूप है, पूसा बासमती-1885 किस्म विश्व में सबसे ज्यादा खपत की जा रही लम्बे चावल वाली पीबी-1121 का संशोधन है और पूसा बासमती-1886 बढ़िया क्वालिटी के चावल वाली पूसा-1401 (पीबी-6) का संशोधित रूप है। 
इससे सिद्ध होता है कि निकटतम भविष्य में धान की काश्त अधीन क्षेत्रफल घटने की कोई संभावना नहीं क्योंकि इस स्थिति को मुख्य रख कर योजना बनाई जाये और फसली विभिन्नता पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, उनका लाभ किसानों को धान का मूल्य लाभदायक बना कर और बासमती की एम.एस.पी. निर्धारित करके पहुंचाया जाए। भूमिगत पानी के कम होने की समस्या कम समय में पकने वाली धान की पी.आर.-126 और बासमती की पूसा बासमती-1509, पूसा बासमती-1847 जैसी किस्मों की काश्त बढ़ाकर काफी हद तक हल किया जा सकता है। पंजाब की बासमती की मांग तो अंतर्राष्ट्रीय मंडी में विशेष तौर पर खाड़ी देशों और इरान में बढ़ रहा है। अफ्रीकन देशों में भी इस किस्म के चावल की मांग पैदा हो रही है। डा. अशोक कुमार सिंह के अनुसार भारत से बासमती की निर्यात की जाने वाली मात्रा 100 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है।