हिजाब का विवाद

कर्नाटक में भाजपा की राज्य सरकार है। इस सरकार के मौजूदा कार्यकाल के दौरान अलग-अलग समुदायों के मध्य अनेक विवाद उठते रहे हैं। इनमें शिक्षण संस्थाओं में सरकार द्वारा बनाये कानूनों के अनुसार अक्तूबर 2021 से हिजाब पर लगाये गये प्रतिबन्ध का विवाद भी शामिल है। मुस्लिम समुदाय द्वारा सरकार के इस फैसले की व्यापक स्तर पर आलोचना हुई थी तथा उनके द्वारा ज्यादातर स्थानों पर प्रदर्शन भी किये गये थे। देश तथा विदेश में इस विवाद के संबंध में चर्चा लगातार जारी है। इसका एक कारण पिछले समय में देश में साम्प्रदायिक माहौल का बेहद खराब होना है। भिन्न-भिन्न समुदायों में सांप्रदायिक टकराव तो अक्सर होते रहे हैं परन्तु प्रतीत होता है कि आगामी समय में इस मोर्चे पर हालात और भी खराब हो सकते हैं। 
इसलिए राज्यों के साथ-साथ केन्द्र सरकार की भी इसके प्रति बड़ी ज़िम्मेदारी बनती है परन्तु केन्द्र सरकार पर यह दोष लगता रहा है कि वह सृजित किये जा रहे ऐसे माहौल को कोई सुखद मोड़ देने की नीति या तीव्रता नहीं दिखा रही। इस तरह के हालात में मूलवादी संगठनों का ज़ोर पकड़ना स्वाभाविक है। हिजाब जैसे उठे मुद्दे इस प्रभाव को और भी पुख्ता करते हैं कि ऐसा सोची-समझी नीति के तहत किया जा रहा है, जिसका देश को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। आज़ादी के बाद देश में लोकतांत्रिक परम्पराएं लगातार मज़बूत होती रही हैं। देश के संविधान में सभी नागरिकों को एक समान अधिकार प्राप्त हैं। यदि लोकतंत्र को भीड़तंत्र में बदलने का यत्न किया जाये तो उससे देश का प्रत्येक पक्ष से बड़ा नुकसान तो हो सकता है, फिर लोकतंत्र की मज़बूत हुईं परम्पराओं को उखाड़ना बहुत कठिन होगा। यदि एक तरफ धार्मिक भावनाओं  को भड़का कर उसका राजनीतिक लाभ लेने के यत्न हो रहे हैं, तो दूसरी ओर राजनीतिक पार्टियां ऐसी मानसिकता के विरुद्ध खड़ी हुई दिखाई देती हैं। हिजाब के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ द्वारा अलग-अलग फैसले दिये जाने के कारण अब यह केस बड़ी पीठ के पास जाएगा। इस तरह सर्वोच्च न्यायालय में अभी इस केस की सुनवाई जारी रहेगी। परन्तु हमारा यह विचार है कि प्रत्येक नागरिक को अपनी आस्था के अनुसार खान-पान, पहरावे तथा ज़िन्दगी जीने का समान अधिकार होना चाहिए। चाहे भाजपा आज स्कूल यूनिफार्म के नाम पर हिजाब के विरोध में उतरी हुई है तथा इसे धार्मिक स्वतंत्रता नहीं, अपितु ‘अलगाववाद’ का नाम दिया जा रहा है। परन्तु इस क्षेत्र में कोई सांझा तथा सुखद हल न निकाले जाने की बजाये बहुमत के आधार पर ज़बरन कानून थोपने की प्रतिक्रिया बेहद ़खतरनाक हो सकती है तथा इसे भारतीय परम्पराओं के विपरीत ही माना जा सकता है।
हिजाब से किसी विद्यार्थी की धार्मिक पहचान तो बन सकती है परन्तु इससे अन्य समुदायों का नुकसान होता हो इस बात की समझ नहीं आती। इसलिए यह केन्द्र सरकार की भी ज़िम्मेदारी बनती है कि वह इस पेचीदा होते जा रहे मसले का कोई सुखद हल निकालने में सहायक साबित हो ताकि देश में भाईचारक सांझ को मज़बूत करने का माहौल बन सके। इस संबंध में जस्टिस सुधांशू धूलिया की टिप्पणियां विचारणीय हैं कि देश में लड़कियों की शिक्षा का मसला अहम है तथा हमें मुस्लिम लड़कियों की इच्छा का सम्मान करना चाहिए, इस हेतु संविधान के 19 तथा 25 चैप्टर को आधार बनाया जाना ज़रूरी है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द