त्यौहार की तैयारियों पर महंगाई की डरावनी छाया

कोरोना की बंदिशों से मुक्त होकर दो सालों बाद इस बार की दिवाली बिना मास्क और बिना मानसिक डर के मनाये जाने की तैयारियां हो रही थीं कि महंगाई की गहराती काली छाया ने इस हसरत पर पानी फेर दिया लगता है। पहले बारिश न होने के कारण और फिर बारिश ज्यादा हो जाने के कारण सब्ज़ियों के भाव आसमान पर चढ़ने लगे। फिर एक एक करके छ: महीनों में चौथी बार आरबीआई द्वारा बढ़ाए गये रेपोरेट के कारण बढ़ी लोन की किस्तों ने मानो घाव पर नमक ही मल दिया। कुल मिलाकर दिवाली के ठीक पहले महंगाई ने घर की थाली से लेकर तथाकथित खुशहाली तक के सारे बजट बिगाड़ दिये हैं। महंगाई की मार से आम आदमी ही नहीं, मिडिल क्लास का भी हाथ तंग हो चुका है। दो सालों के बाद दिवाली को खूब मस्ती से मनाये जाने का सारा जोश काफूर हो चुका प्रतीत होता है।
वैसे पोस्ट कोरोना अर्थशास्त्र ने हिंदुस्तान ही नहीं, पूरी दुनिया में महंगाई को पंख दिये हैं लेकिन आम हिंदुस्तानी तो पहले ही पिछले तीन सालों में करीब 300 रुपये से ज्यादा की हुई रसोई गैस की कीमतों में बढ़ोत्तरी और 2019 से अब तक पेट्रोल व डीज़ल के दामों में रह रहकर हुई 30 रुपये प्रति लिटर की वृद्धि के चलते अपनी दोहरी हुई कमर को सीधी नहीं कर पा रहा है। ऐसे में उम्मीद थी कि इस साल चूंकि कोरोना के बाद सभी काम-धंधे पटरी पर लौट आये हैं तो मूल्य-स्थिति भी पटरी पर लौट आयेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ बल्कि उल्टे महंगाई कुछ ज्यादा ही पटरी से उतर गई। खाने पीने की चीजों से लेकर कपड़ों तक की कीमतों में हाल में  हुए इजाफे ने त्यौहार की खुशियों को चिंताओं में बदल दिया है। अगस्त 2022 में महंगाई करीब 7 फीसदी थी और उम्मीद की जा रही थी कि सितम्बर में यह घटना शुरू हो जायेगी, लेकिन घटना तो दूर रिजर्व बैंक द्वारा की गई रेपोरेट में बढ़ोत्तरी ने 25 लाख रुपये तक जिनका कर्ज है, उनकी ईएमआई में 3000 रुपये तक प्रति महीने का इजाफा कर दिया। यह भी कोई एक बार की बात नहीं है, जब तक रेपोरेट नहीं घटता, तब तक यह बढ़ी हुई दर बनी रहेगी और अगर आने वाले दिनों में रिजर्व बैंक बिना कोई मुरव्वत दिखाये एक बार और रेपोरेट बढ़ा देता है तो यह महंगाई और बढ़ जायेगी।
दीपावली के ठीक पहले त्यौहार के उत्साह को फीका करने में इस बढ़ी हुई कर्ज की किस्तों ने सबसे ज्यादा असर डाला है। अगर हम किसी भी समय रोजमर्रा की ज़िन्दगी के लिए जरूरी चीजों में हुई वृद्धि को देखें तो पिछले एक साल के भीतर ही अनाज के दामों में 10 से 15 फीसदी की महंगाई बढ़ चुकी है और दालों में तो खास तौर पर 30 फीसदी तक की बढ़ोत्तरी हुई है। मसालों में इसी साल 15 से 25 फीसदी तक कीमतें बढ़ी हैं। अगर गैस की बात करें तो रसोई गैस पिछले तीन सालों में 320 रुपये तक बढ़ चुकी है यानि हर साल करीब 100 रुपये से ज्यादा और गैस के साथ ही बिजली की दरों में भी 10 से 15 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। जूते, चप्पल, कपड़े आदि में भी 15 से 20 फीसदी की बढ़ोत्तरी सामान्य तौर पर हुई है। पर्सनल केयर यानि कॉस्मेटिक की बात करें तो उसके दामों में 20 से 25 फीसदी तक की वृद्धि हुई है। याद रखिये, ये आंकड़े बाजार के औसतन आंकड़े हैं यानि वास्तविक आंकड़े इससे भी ज्यादा हो सकते हैं।
वास्तव में दिवाली के पहले यह जो महंगाई सुरसा के मुख की तरह बढ़ती जा रही है, उसके कारण दिवाली के आने के पहले ही सारा उत्साह फीका पड़ गया है। त्यौहार के ठीक कुछ दिनों पहले लोन की बढ़ी किस्तों ने लोगों की हिम्मत को तोड़ दिया है। यही कारण है कि त्यौहार के पहले बाजार में सामान तो खूब भरा हुआ है, लेकिन खरीददारों की वह रौनक नहीं दिख रही, जो दिखनी चाहिए। 
दरअसल दिवाली एक अकेला त्यौहार नहीं है बल्कि यह त्यौहार अपने साथ खुशियों या कहें, खर्च की एक पूरी श्रृंखला लेकर आता है। दिवाली अपने आपमें पांच त्यौहारों का समूह है और इसके पहले और उसके बाद भी कम से कम इतने ही त्यौहार और होते हैं। इसलिए दिवाली और उसके आसपास खर्च से पार पाना आसान नहीं होता। दिवाली के पहले खास तौरपर धनतेरस को हिंदुओं के घर में कोई एक चीज नई खरीदने की परम्परा या रिवाज है। दिवाली के मौके पर बाजारों में सबसे ज्यादा भीड़ इसी दिन होती है। 
एक अनुमान के मुताबिक अकेले उत्तर और पश्चिम भारत में ही धनतेरस के दिन 40 से 45 हजार करोड़ रुपये की खरीदारी होती है। इस दिन ज्यादातर लोग कोई एक चीज तो शगुन के तौर पर खरीदते ही हैं, पर जिनकी स्थिति थोड़ी बेहतर होती है, वे लोग दिवाली में की जाने वाली लक्ष्मी व गणेश की पूजा के लिए इस दिन चांदी और सोने के सिक्के भी खरीदते हैं। हालांकि सोने की  कीमतों में हाल के दिनों में कुछ कमी आयी है, लेकिन वे पहले से ही आसामन में इतनी ऊंची चढ़ी हुई हैं कि तात्कालिक तौर पर कुछ नीचे आ भी जाएं तो भी आम लोगों के लिए उससे दोस्ती बनाने की गुंजाइश नहीं है। इसलिए भले दो सालों के बाद दिवाली बिना मास्क, बिना कोरोना के भय के आ रही हो, लेकिन शायद ही वह अपने साथ सबके लिए भरपूर खुशियां लाए। पर हां, त्यौहार है तो खुशी की परम्परा तो निभाना ही है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर