पीएफआई मुसलमानों की रहनुमाई का हक नहीं रखता

अंततोगत्वा भारत सरकार को देश के सबसे खतरनाक इस्लामिक चरमपंथी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर प्रतिबंध लगाना ही पड़ा। पटना की घटना के बाद से देश की सुरक्षा एजेंसियां बेहद सतर्क थी। उन्हें लगातार इनपुट मिल रहा था कि पीएफआई के गुर्गे पूरे देश में बड़े पैमाने पर दंगे भड़काने की फिराक में हैं। इसके कई प्रमाण सामने आते ही केन्द्र सरकार ने सख्त कदम उठाया और पीएफआई को पूरे देश में प्रतिबंधित कर दिया। पीएफआई अपने आप को बेहद शरीफ संगठन बताता है लेकिन उसके खतरनाक कारनामे लगातार सुर्खियां बटोरते रहे हैं। अभी कुछ दिनों पहले ही हिजाब विवाद मामले में भी पीएफआई का नाम सामने आया था। बहुसंख्यक समुदाय के लोगों की बेरहमी से हत्या से लेकर कई गैरकानूनी कामों में पीएफआई की भूमिका संदिग्ध रही है। इन तमाम वारदातों से पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का नाम जुड़ा हैं। 
यह संगठन बेहद शातिराना तरीके से देश के अल्पसंख्यकों, खासकर युवकों को चरमपंथ में दीक्षित कर बहुसंख्यकों के बीच इस्लामोफोबिया पैदा कर कर रहा था। इससे देश में अशांति फैलने की पूरी संभावना बनती है। इस बीच पीएफआई ने एक नया खेल प्रारंभ किया जो पूर्ण रूप से इस संगठन के स्वार्थ की तो पूर्ति करता है लेकिन इस्लामिक धार्मिक कायदों के एकदम उलट था।
 पापुलर फ्रंट आफ इंडिया भारत में स्थित एक कट्टरपंथी संगठन है जो पूरे भारत के राज्यों में अपनी हिंसक गतिविधियों के लिए जाना जाता है। मुसलमानों के धार्मिक नेता भी पीएफआई के प्रति नकारात्मक भाव रखने लगे थे। कई इस्लामिक विद्वानों ने पीएफआई के इस कदम को इस्लामिक नजरिए के खिलाफ बताया था लेकिन पीएफआई को इस्लाम से क्या लेना देना। उसे तो बस एक खास किस्म की राजनीति करनी थी और अपने सरपरस्तों को राजनीतिक व आर्थिक लाभ पहुंचाना था।
पीएफआई के नेता निश्चित रूप से सभी मुसलमानों के नेता होने के योग्य नहीं हैं। वह राजनीति से प्रेरित हिंसक संगठन है जिसकी पहुंच मुट्ठी भर भारतीय मुसलमानों के बीच है। उसके नेता खुद को रोल माडल के रूप में पेश करने की बजाय विभिन्न हिंसक घटनाओं व घोटालों में शामिल हैं। पीएफआई के अध्यक्ष को वर्तमान में केरल राज्य सेवा नियमों का उल्लंघन करने के लिए निलंबित किया गया है जबकि इसके युवा विंग के नेता साम्प्रदायिक भावनाओं को भड़काने के लिए मुकद्दमा चल रहा है। कुछ अन्य नेता मनी लाडिं्रग से लेकर लोगों की हत्या तक के कई मामलों में आरोपी हैं।
पीएफआई के नेता लोगों को विद्वतापूर्ण सलाह देने के बजाय हमेशा सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने, लोगों में दुश्मनी पैदा करने और विभाजनकारी राजनीति करने में लगे रहते हैं। आजकल हिन्दुओं में भी कई ऐसे धार्मिक नेता खड़े हो रहे हैं जिन्हें कोई मान्यता प्राप्त नहीं है। इन नेताओं को हिन्दू परम्परा से कोई भी लेना-देना नहीं है। ईसाई समुदाय में भी इस प्रकार के धार्मिक नेता खड़े हुए हैं जिन्हें धार्मिक परम्परा और सिद्धांतों से कोई लेना-देना नहीं है।  ये आवारा पूंजी के द्वारा उत्पन्न किए गए नेता हैं जिनका एकमात्र काम समाज में वैमनस्य फैलाना है। पीएफआई भी ऐसा ही एक संगठन है जिसे मुस्लिम ब्रदरहुड के पैसे ने ताकत प्रदान कर रखी है।
वफादारी की मांग करने वाले विचलित समूह न केवल मुसलमानों को अपने चुने हुए नेताओं को धोखा देने के लिए कह रहे हैं बल्कि देश के कानून के खिलाफ जाने के लिए भी बाध्य कर रहे हैं। पीएफआई नेताओं का अधिकारियों के साथ टकराव का इतिहास रहा है, इसलिए उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। (युवराज)