ऑनलाइन शोषण से बचाना होगा बच्चें को


निरन्तर वैश्विक तकनीकी-मंथन से अमृत और विष दोनों निकले हैं। खुशी के साथ अमृत का स्वागत किया जाता है, लेकिन हाइड्रा जैसे विभिन्न सिर वाला विष गंभीर और तत्काल चिंता का विषय होता है। आम तौर पर अपराध को अब वैश्विक नेटवर्क के सहारे अंजाम दिया जा रहा है, जैसे नशीली दवाओं की तस्करी, मानव तस्करी, आतंकवाद, बाल शोषण आदि की कोई भौगोलिक सीमा नहीं है,  लेकिन सबसे भयावह, घृणास्पद, क्रूर और घिनौना अपराध है ऑनलाइन बाल यौन शोषण। दु:ख की बात है कि यह तेजी से बढ़ रहा है—गुप्थ रूप में तथा कपटपूर्ण और गुमनाम तरीके से।                       
एक सच्चाई यह है कि ऐसी तस्वीरें और वीडियो अनगिनत हैं जो अक्सर क्षति न पहुंचाने वाले कवर के तहत होते हैं, तथा ये इंटरनेट से जुड़े सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर सोशल नेटवर्किंग और सम्बद्ध वेबसाइटों के जरिये उपलब्ध हैं। कूट भाषा नेटवर्क इन विकृत अपराधियों का व्यावहारिक रूप से पता लगाना मुश्किल बनाते हैं। प्रत्येक तस्वीर या वीडियो के पीछे, एक वास्तविक बाल पीड़ित है, वास्तविक शोषण है और एक अपराध है। इस तरह की सामग्री का निरन्तर निर्माण व वितरण नए और अधिक खुली तस्वीरों की मांग को बढ़ावा देता है, जिससे नए बच्चों के साथ दुर्व्यवहार का चक्र चलता रहता है। ऑनलाइन बाल यौन शोषण के खिलाफ बच्चों को बचाने की लड़ाई बहुआयामी है, जिसमें उल्लंघन का अपराधीकरण, रोकथाम, सक्रिय पहचान, आपराधिक जांच, प्रसार पर अंकुश लगाना, पीड़ित की पहचान/पुनर्स्थापन और अपराधी पर मुकद्दमा चलाना शामिल हैं।
ऑनलाइन स्वीकार्य व्यवहार क्या है और क्या नहीं है, इंटरनेट तक पहुंच रखने वाले किसी भी बच्चे को, इसके बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए। बच्चों को कई उन विकृत व्यवहारों और खतरनाक स्थितियों के बारे में शिक्षित करना होगा, जो उनके सामने ऑनलाइन आ सकते हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, ऐसी सामग्री का सक्रिय रूप से पता लगाने और उसे प्रतिबंधित करने के लिए नियम व तौर-तरीके विकसित कर रहे हैं। ये निश्चित रूप से समाधान का हिस्सा हैं, लेकिन अपराध की जांच और अभियोजन का महत्व हमेशा की तरह महत्वपूर्ण है। भारत, दुनिया में बच्चों की सबसे बड़ी आबादी वाले देशों में एक है। भारत में डिजिटल पहुंच भी तेजी से बढ़ रही है। इससे अपराध होने की संभावना बढ़ जाती है।
भारत में आईटी अधिनियम और पॉक्सो के माध्यम से ऑनलाइन बाल यौन शोषण को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। पॉक्सो बच्चों को सर्वाधिक महत्व देता है और इसके लिए बच्चों के सम्बन्ध में अनुकूल रिपोर्टिंग, साक्ष्य को रिकॉर्ड करना, जांच करना और विशेष न्यायालयों के माध्यम से अपराधों के त्वरित परीक्षण के लिए एक मजबूत कानूनी फ्रेमवर्क प्रदान करता है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) पोस्को कार्यान्वयन की स्थिति की निगरानी करता है। भारत में कानून प्रवर्तन एजेंसियां, इंटरपोल और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सक्रिय सम्पर्क के माध्यम से ऑनलाइन बाल शोषण के खिलाफ लड़ाई के लिए प्रतिबद्ध हैं। सामग्री को रोकने और जानकारी साझा करने के अलावा अपराधों की जांच को भी उच्च प्राथमिकता दी जाती है। सीबीआई ने ऑनलाइन बाल यौन शोषण सामग्री के बारे में जानकारी एकत्र करने, मिलान करने, जांच करने और इसे बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए एक समर्पित प्रकोष्ठ की स्थापना की है।
इस खतरे से लड़ने की प्रतिबद्धता के अनुरूप, सीबीआई बाल यौन शोषण सामग्री (आईसीएसई) के बारे में सहयोग प्राप्त करने के लिए इंटरपोल द्वारा स्थापित अंतर्राष्ट्रीय बाल यौन शोषण (सीएसएएम) डेटाबेस में शामिल हो गई है। भारत इस डेटाबेस में शामिल होने वाला 68वां सदस्य देश है। डेटाबेस में 27 लाख से अधिक तस्वीरें हैं और इससे 23,000 से अधिक पीड़ितों की पहचान करने में मदद मिली है। इंटरपोल के महासचिव ने हाल ही में डेटाबेस की उपयोगिता के बारे में कहा है कि यह दैनिक आधार पर औसतन 7 पीड़ितों की पहचान करता है।
यह महसूस करते हुए कि संयुक्त व समन्वित खुफिया आधारित कार्रवाई, संचालन प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण है, सीबीआई ने हाल के वर्षों में अखिल भारतीय अभियान चलाए हैं। 2021 में ऑपरेशन कार्बन और 2022 में ऑपरेशन मेघ चक्र। दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि खतरा देश के सभी हिस्सों में फैल चुका है। दुनिया भर में 100 से अधिक न्यायालय क्षेत्राधिकारों में अपराध की मौजूदगी है। वास्तविक चुनौती इस कार्रवाई को तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाने की है। फिर भी, एक देशव्यापी कार्रवाई लोगों के बीच जागरूकता फैलाने में बहुत मदद करती है।
ऑनलाइन बाल शोषण की तुलना अन्य अपराधों से नहीं की जा सकती। नीति निर्माण और कानून प्रवर्तन को क्षेत्रीय बाधाओं, कानूनी विषमताओं और जटिल प्रक्रियाओं में फंसाने की बजाय समाधान ढूंढने की ज़रूरत है। वर्तमान में इंटरपोल कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच विश्व स्तर पर विश्वास-निर्माण कर सकता है। उसकी स्थिति सबसे अच्छी है। दिल्ली में आयोजित होने वाली इंटरपोल की महासभा को मुख्य रूप से इस मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिससे यह सर्वोच्च प्राथमिकता बन जाए।
‘हमारे बच्चे सबसे पहले- हर बार, हर जगह।’ यह वैश्विक समुदाय के लिए आदर्श वाक्य और लक्ष्य होना चाहिए।