ब्रिटिश राजनीति में योग्यता को मिला है सही सम्मान

भारतीय मूल के किन्तु ब्रिटेन में जन्मे 42 वर्षीय ऋषि सुनक के 24 अक्टूबर, 2022 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री पद की शपथ लिये जाने के बाद भारत में तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। भारतवासियों ने कुल मिलाकर सुनक के ब्रिटेन के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठने का स्वागत किया तो हिन्दुत्ववादियों द्वारा उनके हिन्दू होने पर गर्व किया गया। परन्तु मेरी नज़र में भारतवंशी ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने से ज़्यादा महत्वपूर्ण बात है ब्रिटेनवासियों द्वारा किसी विदेशी मूल के व्यक्ति को उसकी योग्यता व कार्यकुशलता की कद्र करते हुये उन्हें देश के सर्वोच्च पद के लिये चुना जाना। ऋषि सुनक लिंकन कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में दर्शनशास्त्र, राजनीति और अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी में स्नातक, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से एमबीए की डिग्री प्राप्त एक शिक्षित राजनेता हैं। वह पहली बार यॉर्कशायर के रिचमंड से 2015 में ब्रिटिश संसद में पहुंचे थे। तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसा मेअ की सरकार में संसदीय अवर सचिव के रूप में कार्य करने के बाद उन्होंने बोरिस जॉनसन के कंजर्वेटिव नेता बनने के अभियान का समर्थन किया। प्रधानमंत्री नियुक्त होने के बाद जॉनसन ने सुनक को राजकोष का चांसलर नियुक्त किया। चांसलर के रूप में सुनक ने यूनाइटेड किंगडम में कोरोना महामारी के आर्थिक प्रभाव के मद्देनज़र सरकार की आर्थिक नीति पर भी विशेष रूप से काम किया। ऋषि सुनक केवल विदेशी मूल के ही नहीं बल्कि ब्रिटेन के अब तक के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री भी हैं। 
भारतवंशी ऋषि सुनक के ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने की घटना की तुलना दरअसल वर्ष 2004 में भारतीय राजनीति के उस अध्याय से की जा सकती है जब भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव हारने तथा सोनिया गांधी के संप्रग संसदीय दल का नेता चुने जाने के बावजूद उनके प्रधानमंत्री बनने की संभावनाओं का ज़बरदस्त विरोध किया था। भाजपा की एक वरिष्ठ नेता (अब स्वर्गीय) ने तो यहां तक कह दिया था कि यदि सोनिया गांधी देश की प्रधानमंत्री बनती हैं तो वह अपने सिर के बाल मुंडवा लेंगी। इसी तरह एक भाजपाई नेता ने सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने पर उल्टी चारपाई पर सोने की धमकी दे डाली थी। सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने की आशंका से भयभीत लोग उन्हें ईसाई प्रचारित करने में भी कोई कसर बाकी नहीं रख रहे थे जबकि वह राजीव गांधी से शादी करने के बाद पूरी तरह से भारतीयता के रंग में रंग चुकी हैं। केवल भाजपा ही नहीं बल्कि स्वयं प्रधानमंत्री बनने की चाह में शरद पवार ने भी सोनिया गांधी को विदेशी मूल का बताते हुये उनके प्रधानमंत्री बनने का विरोध किया था और पी.ए. संगमा व तारिक अनवर जैसे नेताओं ने उनका साथ दिया था। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने के विरोधस्वरूप जन्मी पार्टी का ही नाम है।
उस समय इन्हीं सोनिया विरोधियों ने यहां तक प्रचारित किया था कि तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने सोनिया गांधी को स्वयं शपथ दिलाने से इन्कार कर दिया था परन्तु बाद में कलाम साहब ने अपनी पुस्तक  ‘विंग्स ऑफ फायर’ के दूसरे खंड ‘टर्निंग पॉइंट्स’ में स्पष्ट रूप से यह लिखा कि यदि सोनिया गांधी चाहतीं तो प्रधानमंत्री बन सकती थीं। डॉ. कलाम ने अपनी पुस्तक में लिखा कि ‘जब मई, 2004 में हुए चुनाव के नतीजों के बाद सोनिया गांधी मुझसे मिलने आईं तो राष्ट्रपति भवन की ओर से उन्हें प्रधानमंत्री नियुक्त किए जाने को लेकर चिट्ठी तैयार करके रखी गई थी लेकिन 18 मई, 2004 को जब सोनिया गांधी अपने साथ मनमोहन सिंह को लेकर पहुंचीं तो उन्हें आश्चर्य हुआ। उन्होंने (सोनिया गांधी ने) मुझे कई दलों के समर्थन के पत्र दिखाए। इस पर मैंने कहा कि यह स्वागत योग्य है और राष्ट्रपति भवन उनकी सुविधा के समय पर शपथ ग्रहण करवाने के लिए तैयार है। परन्तु इसके बाद सोनिया गांधी ने बताया कि वह मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के पद हेतु मनोनीत करना चाहेंगी। यह मेरे लिए आश्चर्य का विषय था और राष्ट्रपति भवन के सचिवालय को चिट्ठियां फिर से तैयार करनी पड़ीं।’ डा. कलाम द्वारा सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने या न बनने को लेकर किया गया यह रहस्योद्घाटन जहां हमारे देश के कुछ संकीर्णतावादी सोच वाले नेताओं की भूमिका का एक जीता जागता सबूत है, वहीं सोनिया गांधी की इस सर्वोच्च पद के प्रति प्रदर्शित त्याग का भी एक अभूतपूर्व  उदाहरण है जिसे पाने के लिये हमारे देश के नेता साम दाम दण्ड भेद क्या नहीं अपनाते। 
बहरहाल योग्यता, कार्यकुशलता और काबलियत के आधार पर ही न केवल ऋषि सुनक ब्रिटिश प्रधानमंत्री पद के लिये नियुक्त हुये बल्कि इसी आधार पर उन्होंने बिहार के सिवान जिले में जन्मे और वर्तमान में झारखण्ड में बस चुके मात्र 19 वर्षीय युवा प्रज्ज्वल पाण्डेय को अपनी कोर कमेटी के प्रमुख सदस्य के रूप में भी शामिल किया है। प्रज्ज्वल पाण्डेय 2019 में  यू.के. यूथ पार्लियामेंट के बाकायदा सदस्य चुने गए थे। उन्होंने युवा संसद सदस्य के तौर पर ब्रिटेन की संसद में पहली बार भाषण दिया था जिसके बाद वहां के लोग भी उनकी योग्यता के कायल हो गये थे। प्रज्ज्वल मात्र 16 साल की अल्प आयु में ब्रिटेन की कंज़र्वेटिव पार्टी के सदस्य बने थे। ऋषि सुनक जब प्रधानमंत्री पद का चुनाव लड़ रहे थे, उसी समय उन्होंने प्रज्ज्वल को उनकी योग्यता के आधार पर पार्टी के मुख्य चुनाव अभियान की टीम में अहम स्थान दिया था। गोया, एक कुशल एवं योग्य ब्रिटिश राजनेता सुनक ने अपने सिपहसालारों की कोर टीम में भी एक ऐसे युवा भारतवंशी को शामिल किया जिसमें सलाहियत थी। उन्होंने इस बात की परवाह नहीं की कि ब्रिटेन के लोग उन पर तुष्टिकरण का या प्रज्ज्वल के भारतीय मूल के युवा होने के नाते उन पर उनके साथ पक्षपात का इल्ज़ाम लगायेंगे। हमें ऋषि सुनक या प्रज्ज्वल पाण्डेय की नियुक्ति पर खुश होने के साथ-साथ उस उदारवादी ब्रिटिश राजनीति की भी प्रशंसा करनी चाहिये जहां ‘मूल’ व ‘धर्म’ को नहीं, योग्यता को सम्मान दिया गया है।