खतरनाक मोड़ पर है पाकिस्तान


पूर्व प्रधानमंत्री एवं ‘पाकिस्तान तहरीक-ए-इन्स़ाफ पार्टी’ के अध्यक्ष इमरान खान तथा उनकी पार्टी के कुछ अन्य नेताओं पर गुज़रांवाला के निकट किये गये हमले ने वहां पहले से ही चल रहे खराब हालात के कारण एक प्रकार से उठ रही लपटों पर तेल डालने का कार्य किया है। चाहे एक आरोपी को मौके पर ही पकड़ लिया गया था परन्तु इमरान की ही पार्टी के कुछ नेताओं द्वारा इस घटना की पूरी ह़क़ीकत सामने आने के बिना ही जिस तरह प्रधानमंत्री शहबाज़ शऱीफ तथा सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा पर इस संबंध में आरोप लगाने शुरू कर दिये गये उससे वहां और भी टकराव की स्थिति पैदा होने की सम्भावना बन गई है।
इमरान ने अपनी पार्टी के बड़े समर्थकों के साथ लाहौर से इस्लामाबाद तक लम्बे मार्च की घोषणा की थी। पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रांत पंजाब में अभी तक इमरान की ही पार्टी ‘पाकिस्तान तहरीक-ए-इन्स़ाफ’ का ही शासन है। परन्तु अप्रैल माह में कौमी असैम्बली में उनकी पार्टी के ज्यादातर सांसद उनकी कार्यगुज़ारी से नाराज़ हो गये थे, इन नेताओं ने उनसे किनारा कर लिया था जिस कारण उनकी सरकार कौमी असैम्बली में अल्पमत में रह गई थी। उस समय भी इमरान ने काफी समय तक बड़ा हंगामा किया था। अपनी सरकार गिरने का आरोप उन्होंने अमरीका पर लगाया था तथा कहा था कि उनके द्वारा बड़ी साजिश रच कर इसलिए उन्हें कुर्सी से उतारा गया था क्योंकि उनकी सरकार की आज़ाद विदेश नीति थी, परन्तु अमरीका ने इस बात से स्पष्ट इन्कार कर दिया था। इमरान की सरकार के समर्थन खो जाने के बाद वहां शहबाज़ शऱीफ के नेतृत्व में कई बड़ी पार्टियों ने मिल कर सरकार बनाई थी, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो के पुत्र बिलावल भुट्टो को विदेशी मंत्री बनाया गया है। इस सरकार का कार्यकाल अगस्त 2023 तक अर्थात 10 माह और शेष है। इस अवधि के बाद ही नये चुनावों की घोषणा हो सकती है परन्तु इमरान खान शीघ्र चुनाव करवाने की ज़िद्द कर रहे हैं। इसके साथ-साथ सेना की कारगुज़ारी पर भी उनके द्वारा अंगुली उठाई जा रही है जबकि उन पर यह आरोप लगता रहा है कि उन्हें प्रधानमंत्री बनाने में सेना ने ही बड़ा योगदान डाला था। दूसरी तरफ शहबाज़ के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने उनकी इस मांग को ठुकराते हुए देश के संविधान अनुसार निर्धारित समय पर ही नये चुनाव करवाये जाने की बात कही है। पाकिस्तान अतीव गरीबी, महंगाई तथा बड़ी बेरोज़गारी में से गुज़र रहा है। चीन ने पिछले दशकों में उसकी ज़रूरत एवं मज़बूरी का लाभ उठाते हुये वहां बड़े प्रोजैक्ट लगा कर देश को बड़े ऋण में फंसा लिया है। अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर भी पाकिस्तान इस पक्ष से कमज़ोर हो चुका है क्योंकि बहुत-से देश तथ्यों के आधार पर इस बात के कायल हो चुके हैं कि विश्व भर के आतंकवादियों ने इस देश में शरण ली हुई है। अ़फगानिस्तान में अमरीकी सहायता वाली सरकार का तख्ता पलट कर तालिबान ने सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया है। इसमें पाकिस्तान ने उनकी बड़ी सहायता की थी परन्तु आज देश में छिड़े आंतरिक युद्ध के कारण तालिबान भी पाकिस्तान के विरुद्ध हो चुका है। सीमाओं पर  प्रतिदिन दोनों देशों में भारी तनाव बना रहता है। 
अल-कायदा के सरगना अयमान अल-जवाहिरी को तालिबान ने शरण दी हुई थी जिसे अमरीका ने ड्रोन द्वारा मिसाइल द़ाग कर मार दिया था। अल जवाहिरी के मारे जाने का आरोप भी तालिबान द्वारा पाकिस्तान पर इसलिए लगाया जाता है कि पाकिस्तान की धरती का इस्तेमाल अमरीका ने ड्रोन उड़ाने के लिए किया था, जिस द्वारा मिसाइल छोड़ कर अल जवाहिरी को मार दिया गया था।आज यह देश जिस तरह अपनी आंतरिक उलझनों में फंस चुका है, उसमें से निकल पाना उसके लिए बेहद कठिन प्रतीत हो रहा है। चाहे अन्तर्राष्ट्रीय संस्था द्वारा उसे ‘ग्रे सूची’ में से निकाल दिया गया है परन्तु बड़ी विदेशी सहायता के बिना उसका समस्याओं में से उभर पाना बेहद कठिन प्रतीत होता है। इसलिए ही शहबाज़ शऱीफ ने चीन का दौरा भी किया है ताकि एक बार फिर लड़खड़ाती अर्थ-व्यवस्था को सहारा मिल सके। परन्तु पैदा हुये टकराव वाले राजनीतिक हालात में क्या यह देश अपनी बड़ी चुनौतियों का मुकाबला कर सकेगा? इस संबंध में इस समय विश्वास के साथ कुछ कहा जाना कठिन है, क्योंकि घायल हो चुके इमरान द्वारा शहबाज़ शऱीफ की सरकार पर आन्दोलन द्वारा और दबाव बढ़ाये जाने की सम्भावना है।

-बरजिन्दर सिंह हमदर्द