गुस्से का इलाज


एक युवती बहुत कलह करती थी। लड़ना-झगड़ना उसका रोज का काम बन गया था। एक दिन वह अपने पड़ोसी के पास जाकर बोली-पिता जी! आदत बदलती नहीं है। कलह से तंग आ गई हूं । क्रोध न आए, कुछ उपाय सुझाएं। पड़ोसी ने  कहा, बेटी  मेरे पास इसकी अचूक दवा है। वह मैं तुम्हें देता हूं। बहुत कीमती है। जब गुस्सा आए, तब एक घूंट दवा ले लेना, किन्तु  उसे  पन्द्रह-बीस मिनट  तक निगलना मत, मुंह में ही रखना। कुछ ही दिनों में तुम्हारी आदत बदल जाएगी।
दूसरे दिन युवती काम कर रही थी। उत्तेजना का अवसर आया। उसने तत्काल उस मूल्यवान औषधि का एक घूंट मुंह में लिया। क्रोध का आवेग भी तात्कालिक होता है । वह पन्द्रह-बीस मिनट कैसे रहे ? उसका क्रोध शांत हो गया। दूसरा प्रसंग आया। तीसरा और चौथा प्रसंग आया। उसने वैसा ही किया। तीन दिन तक प्रयोग किया। कलह शांत हो गया। घरवाले अचंभे में पड़ गए कि इतना परिवर्तन कैसे हुआ? पड़ोसी से पूछा, ऐसी क्या दवा है जो भयंकर क्रोध को भी शांत कर दे ? पड़ोसी ने कहा, केवल पानी दिया था। जब पानी मुंह में होता है, तब क्रोधी व्यक्ति बोल नहीं सकता और वह धीरे-धीरे शांत हो जाता है । यही इसका रहस्य है । इससे क्रोध आना रुकता नहीं, किन्तु क्रोध बाहर अभिव्यक्त नहीं होगा। इसलिए क्रोध का कटु परिणाम नहीं होगा। प्रकृति के पास व्यवस्था है कि कोई भी आवेग आए, चाहे वह ईर्ष्या हो या क्रोध, मान हो या माया, घृणा हो गया प्रेम, उसको शांत किया जा सकता है।
-रेनू जैन