कलकत्ता में नानकपंथियों का राजदूत जगमोहन गिल


मेरी 6 दशक पुरानी बंगाली कुलीग शुक्ला हज़रा आजकल दिल्ली छोड़ कर कलकत्ता जा बसी है। उसके साथ समय-समय पर बातचीत होती रहती है। पिछले दिनों उसने किसी अंग्रेज़ी समाचार पत्र का वह टुकड़ा भेजा जिसमें जगमोहन सिंह गिल नामक सिख नानकपंथी की जीवन क्रिया तथा जीवनशैली का विवरण है। जगमोहन के पिता करतार सिंह गिल सौ वर्ष पहले कलकत्ता के दमदम हवाई अड्डे पर टैक्सी चलाते थे। उन्हें बंगालियों ने इतना मान-सम्मान दिया कि वह दमदम में अपना ठिकाना बना कर वहां के निवासी हो गये। उनके बच्चों ने प्राथमिक शिक्षा स्थानीय स्कूल से तथा उच्च शिक्षा जयपुरिया काजेल से प्राप्त की। जगमोहन  इतिहास के विषय में अपने सहपाठियों जितना मेधावी नहीं था। परन्तु उसके अनपढ़ पिता करतार सिंह टैक्सी ड्राइवर की ऐतिहासिक पहुंच ने उसे इतना प्रभावित किया कि वह बड़ा होकर दूरवर्ती स्थानों पर रहते सिखों के बारे पढ़ने-लिखने में व्यस्त हो गया। उसने गत 10 वर्षों में बहुत सफर किया है। उसका सूटकेस सदा तैयार होता है क्योंकि पता नहीं उसने किस समय किस ओर चल पड़ना होता है। उसकी कोई औलाद नहीं और वह सूटकेस को अपना बच्चा कहता है। 
उसकी बंगाली भाषा पर इतनी पकड़ है कि उसका उच्चारण वहां के बंगालियों से भी अच्छा है। यह बात मैं नहीं कह रहा, चन्द्रमा भट्टाचारिया की है जो शुक्ला द्वारा भेजे गए टुकड़े का लेखक है। उसे उर्दू, हिन्दी तथा पंजाबी ही नहीं भारत की अन्य भाषाओं का भी ज्ञान है और प्रत्येक स्थान पर जहां कहीं भी सिख बसे हुए हैं, वहां विचरण करता है। विशेष कर भारत के पूर्वी राज्यों में। उसका मानना है कि बंगाल में सिख सौ वर्ष पहले ट्रांस्पोर्ट के कारोबार समय ही नहीं पहुंचे थे अपितु संन्यासी सम्प्रदाय से प्रेरित होकर बहुत  पहले आने शुरू हो गये थे। उसने यह बात पुस्तकों में नहीं पढ़ी, अपने पिता करतार सिंह से ग्रहण की हैं और उसकी यात्राओं ने इसकी पुष्टि की है। वह दूरवर्ती गांवों में नानकपंथियों द्वारा रुमालों में संभाल कर रखे श्री गुरु गं्रथ साहिब की बीड़ों का चश्मदीद गवाह है। उसकी हैरानी की कोई सीमा नहीं रही जब राजगीर तथा नालंदा के निकट एक धानिया पहाड़ी नामक स्थान पर पहुंच कर उसे पता चला कि खुदीराम बोस तथा प्रफुल चक्की द्वारा एक डगलस किंग्ज़फोर्ड नामक अंग्रेज़ जज की हत्या के लिए जो बम तैयार किये गये थे, उनकी तैयारी तथा आज़माइश में यहां के क्रांतिकारियों का हाथ था। यह भी कि इस स्थान पर गुरुद्वारा साहिब बनाने वाला भी पटना निवासी किदारनाथ बैनर्जी नामक वकील था। वह भी नानकपंथी संन्यासी धारणा से प्रेरित था। 
जगमोहन सिंह गिल के पास स्वतंत्रता संग्राम के समय नानकपंथियों के योगदान के बड़े किस्से हैं। उसके पिता को स्थानीय आबादी की भावनाओं एवं स्थानीय इतिहास का गहन ज्ञान था जो उसकी अपनी रगों में भी कायम है। उसके कथन के अनुसार बंगाल में रह रहे सिख उन सिपाहियों की औलाद हैं जो सौ वर्ष पहले अंग्रेज़ सरकार ने ब्रिटिश भारतीय सेना के लिए भर्ती किये थे। तब इन सिखों की संख्या 20,000 से अधिक नहीं होगी परन्तु उन्होंने बंगाली रहन-सहन तथा आर्थिकता के विकास में ऐसा प्रभाव छोड़ कि चन्द्रमा भट्टाचार्य जैसे पत्रकार आज भी इसका गुणगान करते हैं।
जगमोहन सिंह सिख संगत के नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ सांझ का जिक्र भी बड़े सम्मान के साथ करते हैं। नेता जी रासबिहारी वाले गुरुद्वारा साहिब में ही नतमस्तक नहीं  होते रहे थे। इससे पहले भाईया मंगल बालचक्क द्वारा अपनी गराज में स्थापित अस्थाई गुरुद्वारा में भी नतमस्तक होते रहे हैं। यह वाली गदराज कलकत्ता के बाकूल बहगन मार्ग पर थी। जगमोहन सिंह गिल की खोज यह भी बताती है कि जब 1941 में सुभाष चंद्र बोस जेल से फरार हो गए थे तो कलकत्ता से 1931 में पंजाबी का दैनिक समाचार पत्र निकालने वाले निरंजन सिंह तालिब को अंग्रेज़ सरकार ने कई दिन जेल में यातनाएं दी थी, यह समझकर कि तालिब को नेताजी के ठिकानों की खबर होगी। नेताजी के फरार होने के पीछे फार्वर्ड ब्लाक का प्रधान सरदूल सिंह कविशर नामक सिख को चुना गया था। यहीं बस नहीं नेताजी की अफगानिस्तान और रूस में सहायता करने वाले भी बाल सेवक सिख ही थे। यह बात तो जग जाहिर है कि इंडियन नैशनल आर्मी (आईएनए) की स्थापना करने वाले भी सिख योद्धा जनरल मोहन सिंह थे। जगमोहन सिंह को इस बात पर भी बहुत गर्व है।
यह बात अलग है कि समय के साथ आई.एन.ए. की कमान नेताजी सुभाष चंद्र बोस के हाथ में आ गई थी।
जगमोहन सिंह गिल की धारणा यह भी है कि सिख सिद्धांत मूल रूप में समाजवाद को समर्पित हुआ है। थोड़ा बहुत अंतर केवल परमात्मा का अस्तित्व और अनभिज्ञता तक ही सीमित है। उसके बताने के अनुसार उसकी जवानी से पहले एक बार कम्युनिस्ट नेता इंद्रजीत गुप्ता ने एक बैठक उसके पिता करतार सिंह के घर बुलाई थी।
जगमोहन सिंह गिल की इस कारगुजारी के कारण वह दमदम के गुरुद्वारा साहिब और स्थानीय पंजाबी साहित्य सभा का महासचिव है। उसकी 20 वर्ष की यात्रा ने उसको सिखों द्वारा दूरदराज पूर्वी स्थानों पर डाले योगदान से अवगत करवाया है। उसे यह जानकर भी हैरानी हुई कि पश्चिम बंगाल के कन्नटाई विद्यालय से बीए की डिग्री प्राप्त करने वाला प्रथम विद्यार्थी भी परान सिंह नामक सिख था।
जगमोहन सिंह की धारना अनुसार दूरदराज स्थानों पर रहते सिख नानकपंथी हैं। वे श्री गुरु गोबिंद सिंह जी से थोड़े अलग दृष्टिकोण को समर्पित हुए हैं। यह दृष्टिकोण समाजवादी भी है और क्रांतिकारी भी। 
जाते-जाते यह भी बताते कि जगमोहन मुझसे बहुत छोटा है। उसके कथन के अनुसार उसका खोज कार्य दस वर्ष और मांगता है। पर मैं चाहूंगा कि वह अपनी अब तक की खोज को छपवा दे और शेष दूसरी जिल्द में छप सकती है। 89 वर्ष के हो चुके व्यक्ति द्वारा 56 वर्षीय जगमोहन को यह सुझाव दिये बिना रहा नहीं जाता। अंतिम फैसला उसने ही करना है। 
अंतिका 
-तारा सिंह कामल-
रात फेर तुसीं सुपने आये, आ के बहि गये कोल
रात फेर चन्न अरशों लत्था, ज़िमीं दी भर गिया झोल
होंठ मेरे चुम्मण परछावें, सुहल बुल्लियां खोल
बोट वांग चिचलावन तड़फण, पर न सकन तोल।