मनरेगा द्वारा मूलभूत ढांचे का निर्माण

विगत दिवस महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी कानून जिसे मनरेगा कहा जाता है, को चलते हुए 15 वर्ष हो गए हैं। इस योजना जिसके तहत गांवों में रहने वाले ज़रूरतमंद परिवारों को 100 दिन के काम की गारंटी दी गई है, बारे अक्सर उच्च स्तर पर बड़ी चर्चा होती रही है। इस योजना का उद्देश्य जहां अति पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार उपलब्ध करवाना था, वहीं गांवों के मूलभूत ढांचे में सुधार करना भी था। गांवों के पंचायत भवन, तालाब, सड़क जैसी मूलभूत ढांचे की योजनाओं का निर्माण करना था। इस योजना के अधीन साढ़े 15 करोड़ लोग लाए गए हैं, जिन्हें इस योजना का लाभ मिल रहा है। परन्तु अब तक के अनुमानों के अनुसार जहां गुजरात तथा केरल जैसे प्रदेशों ने इसका अधिक से अधिक लाभ उठाया है, वहीं बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, उड़ीसा तथा उत्तर प्रदेश इसका पूरा लाभ नहीं ले सके। हम इस योजना को इसलिए एक सामाजिक सुरक्षा मानते हैं क्योंकि इसके अधीन बेहद ़गरीब एवं ज़रूरतमंद परिवारों को लाया जाता है।
 इस महत्त्वपूर्ण योजना को कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार द्वारा शुरू किया गया था। 2014 की नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार बनने के बाद पहले पहल इसके प्रति कुछ हिचकिचाहट दिखाई गई थी परन्तु इसके अतीव ज़रूरतमंदों के प्रति ठोस प्रभावों को देखते हुए केन्द्र सरकार द्वारा इस योजना को सिर्फ जारी ही नहीं रखा गया, अपितु इसमें समय-समय पर विस्तार भी किया गया है। इसके साथ-साथ इन विस्तृत योजनाओं में लापरवाही होने के समाचार ज़रूर मिलते रहे हैं। इस संबंध में ज़िम्मेदारी प्रदेश सरकार की अधिक बनती है क्योंकि जो प्रदेश आज विकास में पिछड़े दिखाई देते हैं, वह अपनी अच्छी योजनाबंदी से इससे अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। आज देश भर में गांवों के क्षेत्र में मूलभूत ढांचे को मज़बूत करने की अधिक ज़रूरत है। यदि इस योजना को सही ढंग से इसकी भावना के अनुसार लागू किया जाए तो इससे अधिक लाभ प्राप्त करने की उम्मीद की जा सकती है, इस योजना पर खर्च किए जा रहे अरबों-खरबों रुपए चाहे वर्तमान में ज़रूरतमंदों को राहत देने का साधन तो बन सकते हैं, परन्तु यदि इसके साथ-साथ इस पर खर्च की जाती राशि को किसी ढंग से व्यापक स्तर पर फैली ़गरीबी को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जा सके तो यह क्रियान्वयन सामाजिक क्षेत्र में अधिक कारगर सिद्ध होगा। इसके साथ-साथ इसे अधिक से अधिक पारदर्शी बनाने का प्रयास किया जाना भी ज़रूरी है ताकि इससे किसी प्रकार का कोई नाजायज़ लाभ न उठाया जा सके। 
केन्द्र सरकार द्वारा इसके प्रति सचेत होकर चलने को हम अच्छी दिशा में उठाया जा रहा कदम समझते हैं।  खास तौर पर इस योजना के माध्यम से जिस तरह इसके मूलभूत ढांचे का निर्माण किया गया। पंचायत स्तर पर इसके द्वारा मिलती राशि में अनियमितताओं को उजागर करना भी ज़रूरी है।  वर्ष 2021-22 में मनरेगा की योजना पर 98,000 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। इस बार संबंधित प्रदेश सरकारों को इस योजना द्वारा लक्ष्य निर्धारित करने का निर्देश भी दिया गया है। डेढ़ दशक से  चली आ रही इस योजना से यह उम्मीद ज़रूर की जा सकती है कि यदि  इसे सही ढंग के साथ क्रियान्वयन में लाया जाए तो इससे ग्रामीण क्षेत्र के दृश्य को बड़ी सीमा तक संवारा जा सकेगा।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द