अन्तर्यामी राहुल का अंतर्ज्ञान

 

किसी की समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर राहुल गांधी चाहते क्या हैं। गाहे बगाहे वे अपनी असंतुलित वाणी और अमर्यादित भाषा का प्रयोग जब भी भाजपा को नुकसान पहुंचाने के लिए करते हैं, अपने हाथ में थमी भाषा की दरांती, जिसमें धार अपनी ही ओर होती है, से अपनी ही पार्टी कांग्रेस पर घाव कर बैठते हैं और अपनी ही छवि में एक और डेंट लगा बैठते हैं। जानबूझकर मल-मल कर आँखें लाल कर लेते हैं।  हाल ही में राजस्थान में अपनी भारत जोड़ो यात्र का सौवां दिवस समारोह मनाते हुए अपनी प्रेस कांफ्रैंस में किसी भी प्रेस के व्यक्ति द्वारा कोई प्रश्न पूछने से पहले ही उन्होंने प्रेस पर ताना कसते हुए कहा कि, मैं जानता हूँ कि आप में से कोई मुझ से चीन के बारे में कोई सवाल नहीं पूछेगा, इसलिए मैं खुद बता देता हूँ, कह कर खुद सीमा विवाद पर बोलना शुरू कर दिया और तथाकथित यह राज जो पत्रकारों को मालूम नहीं था? भी बता दिया कि चीन के सैनिक मणिपुर बार्डर पर तवांग में भारतीय सैनिकों की पिटाई कर रहे हैं। इसके बरक्स भारत सरकार आँखें बंद करके बैठी है जबकि वे सब सारे टीवी चैनलों पर उस वायरल वीडियो क्लिप को जिसमें भारतीय सैनिक चीनी सैनिकों की पिटाई कर रहे थे देख चुके थे। 
इसे कहते हैं ‘विनाश काले विपरीत बुद्धि’। अपने बड़बोलेपन और सतावापसी की ललक के चलते भाजपा को बैठे बिठाए एक इतना बड़ा मुद्दा, जो कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष की हैसियत से उन्होंने चीन की सत्ताधारी पार्टी से किया था और भारतीय क्षेत्र पर नेहरु जी और बाद में कांग्रेसनीत सरकारों के समय में हुए चीनी कब्ज़े पर पहले से ही भाजपा कांग्रेस को घेरती आ रही है, को थमा देना, इसे कुल्हाड़ी पर पैर मारना ही कहा जा सकता है?।
इस बयान के चलते राहुल गांधी की आवश्यकता से अधिक किरकिरी हो गई। अच्छा होता यदि देश की सेना से बड़बोले राहुल गांधी माफी मांग लेते वर्ना देश की जनता उन्हें कभी क्षमा नहीं करेगी। सेना का मनोबल गिराना कांग्रेस को बहुत भारी पड़ सकता है। यहां प्रश्न यह उठता है कि राहुल गांधी और उनके सुर में सुर मिलाने वाली कांग्रेस पार्टी के नेता कम से कम यह तो बता देते कि वह दुश्मनों के सामने अपनी सरकार को कमजोर क्यों दिखाना चाहते हैं? क्या राहुल को लगता है कि देशवासी इतने भोले हैं कि उनकी हर बात मान जाएंगे, इस सरकार को गिरा देंगे और उनको पीएम बना देंगे? यहाँ प्रश्न यह भी उठता है कि उनके इन बयानों का स्रोत क्या है कि हमारी सेना की तवांग, डोकलाम या तलवान में पिटाई हो रही है? क्या कांग्रेस और राहुल भारत में चीनी एजेंडा चलाना चाहते हैं या फिर सरकारी चीनी मीडिया की पैरोकारी निस्वार्थ भाव से कर रहे हैं?
प्रबुद्ध नागरिक अब यह भी प्रश्न उठाने लगे हैं कि आखिर ऐसा क्यों है कि भारतीय सेना और सुरक्षाबलों पर से राहुल और उनकी टीम का विश्वास उठ गया है? कैसी विडम्बना है कि भारतीय सेना की सर्जिकल और एयर स्ट्राइक्स पर उन्हें विश्वास नहीं होता और चीन के साथ हुई मुठभेड़ों में भारतीय सेना के शौर्य पर उनको यकीन नहीं होता। अपनी सेना के कमांडरों और जनरलों के आत्मविश्वास पर उनका भरोसा नहीं रह गया है, या फिर उन्हें इन्हीं बयानों के आधार पर केंद्र की गद्दी कब्जाने का पूरा यकीन हो चुका है? क्या उन्हें जरा भी अफसोस नहीं है कि चीन इस सभ्य दुनिया का जन्मजात दुश्मन है? और क्या राहुल यह भी नहीं जानते कि चीन भारत समेत सारी दुनिया को लाल झंडे के नीचे चीन का पिट्ठू बनाने का खेल, खेल रहा है? अगर राहुल सचमुच इतने अनजान हैं तो उनकी प्रशासकीय क्षमताओं पर संदेह होना लाजिमी है। उन्हें पता होना चाहिए कि चाओ और माओ ने उनके परनाना जवाहरलाल नेहरू को ‘हिंदी चीनी भाई भाई’ का नारा देकर कितना बड़ा धोखा दिया था। क्या राहुल को ऐतिहासिक हार 1962 की कोई जानकारी नहीं है? अगर होती तो वे चीन की इस तरह पैरवी तो न करते जितनी कुछ वर्षों से करते नज़र आ रहे हैं। पिछले आठ सालों से भाजपा और मोदी से लड़ते हुए भी यदि उन्हें पता नहीं चला कि भारत सचमुच बदल रहा है तो मान लीजिए कि उनकी आंखों पर नफरत और ईर्ष्या के परदे इतने गहरे पड़ चुके हैं कि वे जानबूझकर कुछ और देखना ही नहीं चाहते। एक बड़ी पार्टी के युवराज हैं राहुल गांधी। उन्हें न केवल गंभीर और चिंतनशील होना चाहिए बल्कि बाहर से दिखना भी चाहिए। यह ईर्षाजनित सम्भाषण थोड़ा मीडिया कवरेज तो दिला सकता है मगर आपको उपहास का पात्र बना देता है, इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए। 
 राहुल गांधी को इतना तो ज्ञान होना ही चाहिए कि ये सभी देश अपने-अपने उपग्रहों के माध्यम से भारत चीन सीमा पर सभी कुछ देख रहे हैं और भारत सरकार को सटीक सूचनाएं संज्ञानित भी करा रहे हैं। उनसे कुछ भी छिपाया नहीं जा सकता। अगर छिपाया जाएगा तो देश की छवि खराब होगी। माननीय राहुल गांधी के पास ऐसी कौन सी दिव्य दृष्टि है जिससे उन्हें भारतीय सैनिकों की पिटाई दिखाई दे रही है? या फिर किसी चीनी स्पेस का कोई लिंक उनके पास है जिससे जो वह दिखाना चाह रहा है, वही उनको दिखायी दे रहा है? अगर आप इसी तरह के अनर्गल बयान में जारी करते रहेंगे तो निश्चित रूप से आप जनता का विश्वास खो बैठेंगे जिसकी प्रतिपूर्ति सम्भव नहीं हो सकेगी। हो सकता है कि आप न हों और शायद आप हैं भी नहीं मगर यह मान कर चलिए कि आपकी छवि चीन समर्थक नेता की होती जा रही है। भले ही आपकी ‘इनर कैबिनेट’ के लोग आपको इसका आभास न होने दे रहे हों मगर आपके हित में है कि आप इस पर विचार करें वरना शायद इतनी देर हो जायेगी कि आप भी फिर कुछ न कर सकें। (अदिति)