तुर्की-सीरिया के भूकप से या सीखेंगे कोई सबक ?

तुर्की और सीरिया में म् फरवरी को स्त्र.त्त् की तीव्रता के शतिशाली भूकप से हुए महाविनाश में क्भ् हजार से भी ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और हजारों की संया में लोग घायल हुए हैं, हजारों इमारतों को भारी नुकसान पहुंचा है, कई इमारतें तो पूरी तरह मलबे के ढ़ेर में तदील हो गई और भीषण भूकप में तुर्की का एक अस्पताल भी ताश के पाों की भांति ढ़ह गया। तुर्की की भौगोलिक स्थिति के चलते यहां असर भूकप आते रहते हैं। क्--- में तो यहां भूकप से क्त्त् हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। भूगर्भ वैज्ञानिकों के मुताबिक तुर्की में बार-बार भूकप आने का कारण यही है कि यहां का ज्यादातर हिस्सा एनाटोलियन प्लेट पर स्थित है, जिसके पूर्व में ईस्ट एनाटोलियन फॉल्ट है, बायीं ओर ट्रांसफॉर्म फॉल्ट है, जो अरेबियन प्लेट के साथ जुड़ता है, दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम में अफ्रीकन प्लेट है जबकि उार दिशा की ओर यूरेशियन प्लेट है, जो उारी एनाटोलियन फॉल्ट जोन से जुड़ी है। तुर्की के नीचे मौजूद एनाटोलियन टेटोनिक प्लेट घड़ी के विपरीत दिशा में घूम रही है, जिसे अरेबियन प्लेट धका दे रही है। जब घूमती हुई एनाटोलियन प्लेट को अरेबियन प्लेट धका देती है, तब यह यूरेशियन प्लेट से टकराती है और भूकप के तगड़े झटके लगते हैं। तुर्की और सीरिया में भूकप से हुई भयानक तबाही को देखने के बाद पिछले कुछ समय से भारत के विभिन्न हिस्सों में लगातार लग रहे भूकप के झटकों को लेकर भी चिंता गहराने लगी है। खासकर दिल्ली-एनसीआर तथा निकटवर्ती राज्यों में तो बार-बार भूकप के झटके लग रहे हैं। दिल्ली-एनसीआर में फ् फरवरी की रात फ्.ख् तीव्रता के भूकप के झटके महसूस किए गए थे। ख्ब् जनवरी की दोपहर को तो दिल्ली-एनसीआर सहित कुछ राज्यों में रिटर स्केल पर भ्.त्त् तीव्रता के भूकप के तेज़ झटके लगे थे। भ् जनवरी की रात दिल्ली-एनसीआर से लेकर जमू-कश्मीर तक में भ्.- तीव्रता के भूकप के झटके महसूस किए गए थे। उससे पहले दिल्ली-एनसीआर में नए साल की शुरूआत भी फ्.त्त् तीव्रता के भूकप के झटकों के साथ ही हुई थी। नवबर माह में तो दिल्ली-एनसीआर में दो बार ऐसे बड़े भूकप भी आए, जिनमें से एक अति गंभीर श्रेणी का रिटर स्केल पर म्.फ् तीव्रता का था, जिसका असर उार प्रदेश, उाराखंड सहित सात राज्यों के अलावा चीन और नेपाल तक महसूस किया गया था। नेशनल सेंटर ऑफ सिस्मोलॉजी (एन.सी.एस.) के मुताबिक वर्ष ख्ख् में दिल्ली-एनसीआर और आसपास के इलाकों में कुल भ्क् बार भूकप के झटके महसूस किए गए, जिनमें से कई रिटर स्केल पर तीन या उससे अधिक तीव्रता के थे। ख्ख् के बाद से भी दिल्ली-एनसीआर इलाका लगातार भूकप से झटकों से थर्रा रहा है। हालांकि राहत की बात यही है कि बार-बार लग रहे भूकप के झटकों से अब तक जान-माल का कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ है लेकिन दिल्ली एनसीआर सहित उार भारत में कई हल्के और मध्यम भूकप के झटके हिमालय क्षेत्र में किसी बड़े भूकप की आशंका को बड़ा रहे हैं। ऐसे में यदि जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो वह दिन दूर नहीं, जब दिल्ली-एनसीआर का हाल भी तुर्की और सीरिया जैसा ही होगा। उाराखंड का जोशीमठ धंस रहा है, जमीन फट रही है और घरों में दरारें पड़ रही हैं, पुरानी दरारें पहले से और ज्यादा चौड़ी हो रही हैं तथा किसी बड़ी दुर्घटना की आशंका के चलते सैंकड़ों घरों को खाली कराने पर विवश होना पड़ा है। यही हाल अब डोडा में भी देखने को मिल रहा है। ऐसे में भूकप के मुहाने पर खड़े दिल्ली-एनसीआर के मामले में जोशीमठ की घटना से सीख लेते हुए शीघ्र कोई ऐसा ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत महसूस हो रही है, जिससे विकास कार्यों से प्रकृति का कोई नुकसान न हो। दरअसल भूगर्भ वैज्ञानिकों का मानना है कि कई छोटे भूकप बड़ी तबाही का संकेत होते हैं और बार-बार लग रहे भूकप के झटकों के मद्देनज़र दिल्ली-एनसीआर इलाके में आने वाले दिनों में किसी बड़े भूकप का अनुमान लगाया जा रहा है। पिछले कुछ दशकों में दिल्ली-एनसीआर की आबादी काफी बड़ी है और ऐसे में म् से अधिक तीव्रता का भूकप यहां भारी तबाही मचा सकता है। भूकप आने के खतरे को लेकर देश के विभिन्न हिस्सों को कुल पांच जोन में बांटा गया है, जिनमें सर्वाधिक खतरनाक सिस्मिक जोन भ् है और उसके बाद सिस्मिक जोन ब् है। दिल्ली सिस्मिक जोन ब् में आती है और दिल्ली में कुछ क्षेत्र सिस्मिक जोन ब् से भी ज्यादा खतरे वाली स्थिति में हैं। ऐसे में दिल्ली में भूकप का खतरा हमेशा बना रहता है। एनसीएस के वैज्ञानिकों के मुताबिक दिल्ली को हिमालयी बेल्ट से काफी खतरा है, जहां त्त् की तीव्रता वाले भूकप आने की भी क्षमता है। दिल्ली से करीब दो सौ किलोमीटर दूर हिमालय क्षेत्र में अगर स्त्र या इससे अधिक तीव्रता का भूकप आता है तो दिल्ली के लिए बड़ा खतरा है। हालांकि ऐसा भीषण भूकप कब आएगा, इस बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका कोई सटीक अनुमान लगाना संभव नहीं है। दरअसल भूकप के पूर्वानुमान का न तो कोई उपकरण है और न ही कोई मैकेनिज्म। दिल्ली में बड़े भूकप के खतरे को देखते हुए भारतीय मौसम विभाग के भूकप रिस्क असेसमेंट सेंटर द्वारा कुछ समय पहले दिल्ली-एनसीआर में इमारतों के मानक में शीघ्रातिशीघ्र बदलाव किए जाने का परामर्श दिया गया था। राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एन.जी.आर.आई.) के वैज्ञानिकों के मुताबिक दिल्ली-एन.सी.आर. में आ रहे भूकपों को लेकर अध्ययन चल रहा है। उनका कहना है कि इसके कारणों में भू-जल का गिरता स्तर भी एक प्रमुख वजह सामने आ रही है, इसके अलावा अन्य कारण भी तलाशे जा रहे हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि या दिल्ली की ऊंची-ऊंची आलीशान इमारतें और अपार्टमेंट किसी बड़े भूकप को झेलने की स्थिति में हैं? विशेषज्ञों के अनुसार दिल्ली में बार-बार आ रहे भूकप के झटकों से पता चलता है कि दिल्ली-एनसीआर के फॉल्ट इस समय सक्रिय हैं और इन फॉल्ट में बड़े भूकप की तीव्रता म्.भ् तक रह सकती है। इसीलिए विशेषज्ञ कह रहे हैं कि बार-बार लग रहे भूकप के इन झटकों को बड़े खतरे की आहट मानते हुए दिल्ली को नुकसान से बचने की तैयारियां कर लेनी चाहिएं। दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में निरन्तर लग रहे झटकों को देखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट भी कई बार कड़ा रूख अपना चुका है। हाईकोर्ट ने कुछ समय पहले भी दिल्ली सरकार, डीडीए, एमसीडी, दिल्ली छावनी परिषद, नई दिल्ली नगरपालिका परिषद को नोटिस जारी करते हुए पूछा था कि तेज़ भूकप आने पर लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए या कदम उठाए गए हैं? अदालत द्वारा चिंता जताते हुए कहा गया था कि सरकार और अन्य निकाय हमेशा की भांति भूकप के झटकों को हल्के में ले रहे हैं जबकि उन्हें इस दिशा में गंभीरता दिखाने की जरूरत है। अदालत का कहना था कि भूकप जैसी विपदा से निपटने के लिए ठोस योजना बनाने की जरूरत है योंकि भूकप से लाखों लोगों की जान जा सकती है। दिल्ली सरकार तथा एमसीडी द्वारा दाखिल किए गए जवाब पर सत टिप्पणी करते हुए अदालत यहां तक कह चुकी है कि भूकप से शहर को सुरक्षित रखने को लेकर उठाए गए कदम या प्रस्ताव केवल कागजी शेर हैं और ऐसा नहीं दिख रहा कि एजेंसियों ने भूकप के संबंध में अदालत द्वारा पूर्व में दिए गए आदेश का अनुपालन किया हो। दिल्ली-एनसीआर भूकप के लिहाज से काफी संवेदनशील है, जो दूसरे नंबर के सबसे खतरनाक सिस्मिक जोन-ब् में आता है। इसीलिए अदालत को कहना पड़ा था कि केवल कागजी कार्रवाई से काम नहीं चलेगा बल्कि सरकार द्वारा जमीनी स्तर पर ठोस काम करने की जरूरत है। दरअसल वास्तविकता यही है कि पिछले कई वर्षों में भूकप से निपटने की तैयारियों के नाम पर केवल खानापूर्ति ही हुई है। दिल्ली-एनसीआर में पिछले कुछ महीनों में आए भूकप के ज्यादातर झटके भले ही रिटर पैमाने पर कम तीव्रता वाले रहे हों किन्तु भूकप पर शोध करने वाले इन झटकों को बड़े खतरे की आहट मान रहे हैं। इसीलिए अधिकांश भूकप विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली एनसीआर की इमारतों को भूकप के लिए तैयार करना शुरू कर देना चाहिए ताकि बड़े भूकप के नुकसान को न्यूनतम किया जा सके। एक अध्ययन के मुताबिक दिल्ली में करीब - प्रतिशत मकान कंक्रीट और सरिये से बने हैं, जिनमें से - प्रतिशत इमारतें रिटर स्केल पर छह तीव्रता से तेज़ भूकप को झेलने में समर्थ नहीं हैं। एनसीएस के अध्ययन के अनुसार दिल्ली का करीब फ् प्रतिशत हिस्सा जोन-भ् में आता है, जो भूकप की दृष्टि से सर्वाधिक संवेदनशील है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि दिल्ली में बनी नई इमारतें म् से म्.म् तीव्रता के भूकप को झेल सकती हैं जबकि पुरानी इमारतें भ् से भ्.भ् तीव्रता का भूकप ही सह सकती हैं। विशेषज्ञ बड़ा भूकप आने पर दिल्ली में जान-माल का ज्यादा नुकसान होने का अनुमान इसलिए भी लगा रहे हैं योंकि करीब ख्.ख्भ् करोड़ आबादी वाली दिल्ली में प्रतिवर्ग किलोमीटर दस हजार लोग रहते हैं और कोई बड़ा भूकप फ्-ब् किलोमीटर की रेंज तक असर दिखाता है। वैसे तो वैज्ञानिकों के मुताबिक भूकप की तीव्रता की अधिकतम सीमा तय नहीं की गई है। हालांकि रिटर स्केल पर स्त्र या उससे अधिक तीव्रता वाले भूकप को सामान्य से कहीं अधिक खतरनाक माना जाता है। रिटर स्केल पर ख् या उससे अधिक तीव्रता वाला भूकप 'सूक्ष्म भूकप' कहलाता है, जिसके झटके सामान्यतः महसूस नहीं होते। ब्.भ् की तीव्रता वाले भूकप घरों को क्षतिग्रस्त कर सकते हैं। बहरहाल, यहां सवाल इस बात का नहीं है कि कितनी तीव्रता का भूकप नुकसान पहुंचा सकता है बल्कि सवाल यह है कि निरन्तर आ रहे भूकप को रोका कैसे जाए और या ऐसे कदम उठाए जाएं, जिससे विकास की गति भी प्रभावित न हो और प्रकृति को नुकसान भी न हो ताकि आने वाले समय में दिल्ली जैसे शहर तुर्की और सीरिया जैसी भयावह त्रासदी झेलने को विवश न हों। सरकारों के साथ लोगों को भी इन सवालों को गंभीरता से लेते हुए कोई ठोस कदम उठाने की सत ज़रूरत है। -मो--ब्क्म्स्त्रब्भ्त्त्ब्