प्रभावी व्यवस्था की ज़रूरत


पंजाब में रेत खनन के धरातल पर माफिया राज को समाप्त करने के दावे के साथ, प्रदेश की भगवंत मान की ‘आप सरकार’ ने बेशक बड़े-बड़े दमगजों के साथ जन-साधारण को सस्ते दामों पर रेत सप्लाई किये जाने की घोषणा की है, किन्तु इस घोषणा को परख की कसौटी पर रखे जाने पर, इसके क्रियान्वयन में बड़े ‘झोल’ दिखाई देते हैं। इस घोषणा के अनुसार आम लोगों को साढ़े पांच रुपये प्रति घन फुट की दर से मौका पर ही रेत की सप्लाई की जाएगी। इस हेतु लधियाना और फाज़िल्का सैक्टरों में 16 खदानों पर रेत की खुदाई का काम शुरू भी कर दिया गया है। शेष केन्द्रों को अभी चिन्हित किया जाना है। रेत की इस घोषित दर पर बिक्री चूंकि खनन केन्द्रों पर होनी है, अत: बहुत स्वाभाविक है कि रेत की बिक्री की ये दरें अस्थायी हैं, और कि इसकी घोषित कीमत में ऊपर-नीचे बहुत कुछ हो  सकता है। यह भी, कि जिन लोगों ने खनन केन्द्रों पर खुदाई का कार्य करना अथवा कराना है, उनकी लागत के बाद, रेत की बिक्री दरें कितना उछाल लेंगी, अथवा इसके दृष्टिगत नई दरों की घोषणा कैसे और किस पैमाइश के साथ होगी, इसका विवरण इस सरकारी घोषणा में नहीं दिया गया है। इस पूरे प्रकरण में यह भी एक विचारणीय बिन्दु है कि पंजाब में शिक्षा का प्रतिशत आज भी अनपढ़ता के धरातल पर 60 से अधिक है। खास तौर पर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में यह प्रतिशतता बेहद चिन्ताजनक दृष्टिगोचर होती है। सरकारी घोषणा में इस सस्ती रेत की बुकिंग एक निर्धारित ऐप पर किये जाने हेतु निर्देश दिया गया है जबकि वास्तविकता यह है कि प्रदेश के  80 प्रतिशत से अधिक लोगों को ऑनलाईन अदायगी का तरीका ही नहीं आता है।
नि:सन्देह यह घोषणा शेख चिल्ली की कल्पनाओं जैसी अवश्य हो सकती है। पंजाब में आज भी 40 प्रतिशत से अधिक लोगों के पास मोबाइल सुविधा नहीं है। शेष जिन 60 प्रतिशत लोगों के पास मोबाइल उपलब्ध है भी, उनमें से 80 प्रतिशत लोग ऐप जैसी सुविधाओं का उपभोग कर पाने से वंचित रहते हैं। ऐसे में ऐप के ज़रिये सरकार द्वारा घोषित सस्ती दरों वाली रेत को प्राप्त करना बेहद कठिन एवं जटिल प्रक्रिया जैसा हो सकता है। दूसरे शब्दों में ‘न नौ मन तेल होगा, और न राधा के नाचने’ वाली स्थिति बनने की कोई सम्भावना है। यहां यह भी एक बेहद विचारणीय विषय रहेगा कि ़गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों और खास तौर पर शहरी मोहल्लों और ग्रामीण क्षेत्रों में मकानों की छिट-पुट मुरम्मत के कार्य हेतु जिन लोगों को दो-चार-दस बोरी रेत चाहिए होगी, वे कैसे इस सस्ती रेत को हासिल कर सकेंगे। नि:सन्देह ऐसे लोगों अथवा परिवारों के लिए यह कवायद और भी महंगी और कठिन हो जाएगी। यह भी देखने वाली बात होगी कि खनन  हेतु मशीनरी और उपकरण कैसे उपलब्ध कराये जाएंगे या कि इस सम्पूर्ण प्रक्रिया हेतु आम लोग रेत की खुदाई और लदान कैसे पायेंगे। नि:सन्देह इस प्रकार की क्रिया से खनन स्थल पर अराजकता जैसी स्थिति उत्पन्न होने की बड़ी आशंका बन जाती है। सरकार ने इस घोषणा में बेशक रेत खनन माफिया को समाप्त करने की बात कही है, परन्तु जिस प्रकार की स्थितियां उपजते दिखाई देती हैं, उनसे एक से अधिक नये म़ािफयाओं के खड़े हो जाने की प्रबल सम्भावना बनते हुए दिखाई देती है। रेत के व्यापार से जुड़े परचून दुकानदारों ने भी माना है कि परिवहन की सुविधा और अन्य खर्चे एक नई समस्या बनेंगे। उन्होंने यह भी माना कि इस प्रक्रिया से लोगों में लड़ाई-झगड़े बढ़ने की भी बड़ी आशंका है।
हम यह भी समझते हैं कि आम आदमी पार्टी की सरकार की इस घोषणा के क्रियात्मक धरातल पर पूरा उतरने के दौरान यानि खनन स्थल से रेत के आम उपभोक्ता के घर-द्वार तक पहुंचने के पथ में अनेकानेक चोर-दरवाज़ों और अवरोधों के खड़े हो होने की भी बड़ी सम्भावना है।  पांच-दस बोरी रेत चाहने वाले लोग नि:सन्देह बीच का मार्ग तलाश करेंगे, और कि उनकी यह तलाश कालाबाज़ारी और महंगाई को आमंत्रित करेगी। ऐप और आवेदन लेकर खनन-स्थल पर पहुंच जाने के बावजूद वांछित रेत की मात्रा को ले जाने हेतु परिवहन की ज़रूरत बड़ी समस्या बनेगी। इससे एक नया परिवहन माफिया खड़ा हो सकता है। रेत की खुदाई पर लगी कानूनी रोक हटने के बावजूद रेत की खुदाई उस स्तर पर अभी दोबारा शुरू नहीं हुई है जैसी कि अदालती प्रतिबन्धों से पूर्व हुआ करती थी। रेत के उत्पादन और मांग की आपूर्ति में बहुत बड़ा अन्तर मौजूद है। यह अन्तर भी प्रदेश में रेत की कालाबाज़ारी और मूल्य-वृद्धि को बढ़ाने में सहायी हो सकता है।  खनन केन्द्रों पर मौजूदा माफियाओं का व्यवहार भी समस्या का एक दूसरा पक्ष सिद्ध हो सकता है। 
कुल मिला कर हम यह कह सकते हैं कि यह सम्पूर्ण क्रिया मचान पर बैठ कर अन्धेरे में छोड़े गये तीर जैसी सिद्ध हो सकती है। नि:सन्देह आम आदमी पार्टी की यह सरकार यदि सचमुच अपने वायदे अथवा दी गई गारंटी को पूरा करने का दावा करना चाहती है, तो उसे सस्ती दरों पर रेत आम आदमी के घर-द्वार तक पहुंचाने की स्वयं व्यवस्था करनी चाहिए। नदियों के बीच खुदाई स्थलों से रेत को ़गरीब और आम आदमी द्वारा अपने खुदाई उपकरणों और फिर अपनी परिवहन व्यवस्था के ज़रिये अपने घर लाना कदापि सम्भव नहीं  हो सकता है। सरकार इस घोषणा के ज़रिये झूठी वाहवाही लूटना चाहती है, अथवा चुनावी वायदों की पूर्ति हेतु लीपा-पोती करना चाहती है, तो यह अलग बात है। सस्ती दरों पर रेत की सप्लाई हेतु सरकार को एक ऐसा ठोस तंत्र तैयार करना होगा जिससे एक ओर रेत माफियाओं पर प्रभावी अंकुश लगाया जा सके, वहीं लोगों को पूर्व की भांति आवश्यक मात्रा में रेत आसानी से उपलब्ध हो सके। इससे ही लोगों की संतुष्टि हो सकेगी तथा प्रदेश में निर्माण की गतिविधियां पुन: रफ्तार पकड़ सकेंगी।