अविश्वास का आलम

बजट सत्र के दौरान पिछले दिनों राज्यपाल के अभिभाषण के संबंध में विधानसभा में हुई चर्चा से नमोशी ही हुई है। सदन से बाहर सरकार की कारगुज़ारी की चर्चा भी ज़ोरों पर है। प्रतीत होता है कि बहुत कुछ बिखर रहा है, जिसे समेटा नहीं जा रहा। हाथों से गिरते को समेटा नहीं जा रहा। हालात अनिश्चितता वाले बनते जा रहे हैं। प्रशासन पर सरकार की पकड़ ढीली पड़ती जा रही है तथा इससे लोगों में असन्तोष भी बढ़ता जा रहा है। यदि हालात ऐसे ही बने रहे तो दिशाहीनता का आलम भारी हो जाएगा। सरकार के पास विधायकों की बहुसंख्या है। विधायकों से लोगों ने बड़ी उम्मीदें लगाई हुई हैं परन्तु इन उम्मीदों पर बूर पड़ता दिखाई नहीं दे रहा। इस कारण अब तक 11 महीनों में सरकार किए जाने वाले कामों की लम्बी सूची में से प्रथमांश भी नहीं छू सकी।
मुफ्त बिजली देने की घोषणा की गई तथा इसके साथ ही 500 आम आदमी क्लीनिकों को भी खोलने के लिए तत्परता दिखाई गई। आम आदमी पार्टी ने सरकार बनने से पूर्व ये दोनों ही महत्त्वपूर्ण घोषणाएं की थीं। अब वह यह दावा कर रही है कि एक वर्ष से पहले ही उसने ये वायदे पूरे कर दिये हैं। बात वायदों की पूर्ति से हुए हासिल की है। बिजली के ज़ीरो बिल आने से हर स्तर पर जन-साधारण तो खुश हो गए हैं परन्तु यह सुविधा कितने समय तक चल सकेगी, इस संबंधी विश्वास के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता। पॉवरकाम ने बिजली के उत्पादन पर जो खर्च करना है या मांग के बढ़ने से जितनी बिजली बाहर से खरीदनी है, यदि उसके लिए सरकार के पास आर्थिक स्रोत ही न हुए तो वह इस मुफ्त के प्रबंध को कितने समय तक जारी रख सकेगी? यही स्थिति आम आदमी क्लीनिकों की है, जिनके संबंध में ज़मीनी स्तर पर अब तक कोई सन्तोषजनक समाचार नहीं मिल रहे। जिस तरह अनियमितता से इस काम को पूरा किया गया, उससे उलझनें अधिक पैदा हो गईं। पहले से स्थापित स्वास्थ्य केन्द्र उखड़ गये। स्वास्थ्य सेवाओं में एक तरह से बिखराव पड़ गया। अनियमित ढंग से इनकी शुरुआत ने एक तरह से लोगों की बेचैनी में वृद्धि ही की है। यदि अब ऐमीनैंस स्कूलों की बात की जा रही है तो उसके लिए भी कोई पुख्ता योजनाबंदी सामने नहीं आई तथा न ही पहले से स्थापित स्कूलों को और सुविधाजनक बनाने के काम ही आरम्भ किए गए हैं। यदि बनाई गई योजनाएं निर्धारित मार्ग पर न चल सकीं तो निश्चित मंज़िल पर पहुंचना बेहद कठिन होगा। परन्तु अब तक सरकार अपने विरोधियों पर पुलिस का डंडा चलाने के लिए ही यत्नशील रही है। प्रतीत होता है कि विकास के और कामों को दृष्टिविगत करके वह इस डंडे का अधिक उपयोग करने को ही अपनी उपलब्धि समझने लगी है। चाहिए तो यह था कि पुलिस तन्त्र का कानून व्यवस्था को ठीक करने के लिए अधिक उपयोग किया जाता। इसे और प्रभावी बनाने की योजनाएं बनाई जातीं परन्तु मौजूदा समय में जिस तरह आपराधिक घटनाएं घटित हो रही हैं, जिस प्रकार लूटपाट का बाज़ार गर्म है, जिस तरह बड़ी संख्या में फिरौतियां मांगी जाने लगी हैं, उसने लोगों में सहम की भावना पैदा कर दी है। 
प्राथमिक सुविधाओं के नदारद होते जाने के कारण व्यापारी तथा उद्योगपति प्रदेश में किसी न किसी तरह से पलायन करने को प्राथमिकता देने लगे हैं। यही कारण था कि पिछले दिनों पंजाब सरकार द्वारा करवाया गया निवेश सम्मेलन बुरी तरह असफल हो गया, जो सरकार के लिए नमोशी का कारण बना। प्रदेश में नशों का चलन और भी बढ़ गया है। रेत-बजरी की नई योजनाओं ने बड़ी सीमा तक लोगों को निराश किया है। अजनाला थाने की एक घटना ने ही कानून व्यवस्था की पोल खोल दी है। उसके बाद जो रवैया सरकार ने धारण किया है, उसने एक तरह से पुलिस तन्त्र को बेबस करके रख दिया है। कुछ राजनीतिक नेताओं को जेलों में भेज कर भ्रष्टाचार पर काबू पाने का दावा नहीं किया जा सकता। इसके लिए एक प्रभावी व्यवस्था बनाने की ज़रूरत होती है। विधानसभा में इन बातों को लेकर छिड़ रही बहस अंतत: मछली बाज़ार का दृश्य पेश करने लगती है। आगामी दिनों में इस बजट अधिवेशन में क्या कुछ घटित होने वाला है, इसका अनुमान भी सहजता से लगाया जा सकता है। ऐसे हालात से पैदा हुई निराशा से कैसे निकला जा सकेगा, इस संबंध में फिलहाल विश्वास के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द