पंजाब को किस ओर ले जाएगा यह बढ़ता हुआ राजनीतिक टकराव ?

पंजाब के समक्ष मौजूदा समय में बहुत बड़ी चुनौतियां दरपेश हैं। एक तरह से पंजाब का अस्तित्व ख़तरे में पड़ा दिखाई  
देता है। ऐसी स्थिति मांग करती है कि प्रदेश की सभी राजनीतिक पार्टियां प्रदेश के मूलभूत तथा महवपूर्ण संबंधी कोई  
आम सहमति बना कर इन मसलों के हल हेतु कोई ठोस कार्य योजना तैयार करें। विशेष रूप से सााधारी आम आदमी  
पार्टी की बड़ी ज़िमेदारी बनती है कि वह विपक्षी पार्टियों को विश्वास में लेकर चले, उनके साथ ज़रूरी विचार-विमर्श भी करे  
तथा विधानसभा के भीतर तथा बाहर उन्हें बनता मान-समान भी दे। लोकतांत्रिक व्यवस्था में साा पक्ष के साथ-साथ  
विपक्ष का भी अपना एक महव तथा भूमिका होती है। उसी ने ही सााधारी दल का उादायित्व तय कर उसे लोगों के हितों  
अनुसार काम करने के लिए प्रतिबद्ध करना होता है।
पंजाब की राजनीति में हम पिछले लबे समय से देखते आ रहे हैं कि विपक्षी दल तथा सााधारी दल के बीच असर संबंध  
सुखद नहीं रहते। जो भी पार्टी साा में आ जाती है, वह विपक्षी दल को ज़रूरी महव देने तथा उसके साथ विचार-विमर्श  
करने की ज़रूरत महसूस नहीं करती, अपितु अपने बहुमत के बल पर अपनी इच्छानुसार फैसला लिए तथा लागू किए  
जाते हैं। इसी कारण विधानसभा के सत्र भी बहुत कम समय के लिए बुलाये जाते हैं। इसी कारण यह धारणा बनती जा  
रही है कि विधानसभा प्रदेश के ज्वलंत मुद्दों पर विचार करने के लिए उचित मंच नहीं रही। इसी का ही परिणाम है कि  
पंजाब लगातार रसातल की ओर जा रहा है तथा मामले और उलझन भरे होते जा रहे हैं।
स्त्र मार्च को विधानसभा के भीतर जो कुछ घटित हुआ है, उसने लोगों की चिन्ता में और वृद्धि की है। विपक्षी दल के नेता  
प्रताप सिंह बाजवा राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हो रही बहस में भाग ले रहे थे, विशेष रूप से वे मुद्दे  
उठा रहे थे जिनका राज्यपाल के अभिभाषन में ज़िक्र नहीं किया गया था। उनके द्वारा यह भी आरोप लगाया गया कि  
जिस तरह केन्द्र में भाजपा विपक्षी पार्टियों के विरुद्ध केन्द्रीय एजैंसियों का दुरुपयोग करती है, उसी तरह पंजाब में भी  
आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा विजीलैंस का दुरुपयोग किया जाता है। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि इस स्थिति  
को मुय रखते ही आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्ढा ने कहा था कि अब केन्द्रीय एजेंसियों के कार्यालयों पर भाजपा  
के ध्वज लगा दिए जाने चाहिएं, इसी तरह प्रताप सिंह बाजवा ने कहा कि पंजाब में भी जो स्थिति बन रही है, उसके  
कारण हमें यह कहने पर विवश न होना पड़े कि पंजाब विजीलैंस के कार्यालय पर भी आम आदमी पार्टी का ध्वज लगा  
देना चाहिए। उनके कहने का भाव यह था कि जिस तरह केन्द्र में भाजपा की सरकार द्वारा केन्द्रीय एजैंसियों का विपक्षी  
पार्टियों के विरुद्ध दुरुपयोग किया जा रहा है, इसी तरह ही पंजाब में भी सााधारी दल विजीलैंस का विपक्षी पार्टियों के  
विरुद्ध चयनित उपयोग कर रहा है। इस बात से मुयमंत्री भगवंत मान भड़क गए तथा वह कांग्रेस पार्टी तथा उसके नेताओं  
के विरुद्ध जवाब में आरोप लगाने लग पड़े। ऐसा करते वह इस सीमा तक चले गए कि उन्होंने एक तरह से सारे विपक्षी  
दल को भ्रष्ट करार देते हुए यह धमकी दी कि समय आने पर  सभी के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी। इसके बाद कांग्रेस के  
सभी विधायकों ने यह फैसला लिया कि विधानसभा अधिवेशन के दौरान जब मुयमंत्री विधानसभा में बैठेंगे तो वह  
विधानसभा की कार्रवाई का बायकाट करेंगे। उन्होंने यह भी मांग की कि मुयमंत्री को अपने व्यवहार के लिए माफी मांगनी  
चाहिए।
इस सन्दर्भ में हमारी यह स्पष्ट राये है कि विधानसभा के स्पीकर कुलतार सिंह संधवां को स्त्र मार्च को जब विपक्ष के नेता  
प्रताप सिंह बाजवा के भाषण में मुयमंत्री उठ-उठ कर बार-बार हस्तक्षेप कर रहे थे तो उन्हें रोकना चाहिए था। मुयमंत्री को  
स्पीकर की ओर से स्पष्ट रूप में कहा जाना चाहिए था कि वह अपने समय पर विपक्ष द्वारा उठाये गये सभी मुद्दों का उार  
दें तथा वह विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा के समय में बार-बार बोल कर हस्तक्षेप न करें। विधानसभा के स्पीकर  
जिन्होंने पिछले कई सत्र बड़े संतुलित ढंग के साथ चलाए थे, इस बार असफल होते दिखाई दिए। उन्होंने प्रभावशाली ढंग  
से मुयमंत्री भगवंत मान को नहीं रोका तथा वह लगातार प्रताप सिंह बाजवा के सबोधन के दौरान स्वयं बोलते रहे तथा  
बाद में बड़े घृणापूर्ण भरे ढंग से  उन्होंने स्पीकर को कहा, 'इसका समय खत्म हो गया है, अब इसे बिठाओ।' मुयमंत्री  
द्वारा विपक्ष के वरिष्ठ नेता के प्रति इस तरह की शदावली का प्रयोग एवं सरेआम स्पीकर को उनको बैठाने के लिए कहना  
बिल्कुल भी उचित नहीं था।
- मार्च को भी विधानसभा में चाहे मुयमंत्री भगवंत मान स्वयं उपस्थित नहीं थे, वह राष्ट्रपति का स्वागत करने हेतु  
अमृतसर में गए हुए थे परन्तु उनकी अनुपस्थिति में भी जिस तरह विधानसभा की कार्रवाई चली है, उसमें भी आम  
आदमी पार्टी के मंत्रियों ने बार-बार हस्तक्षेप करके विपक्षी पार्टी के नेताओं को बोलने से रोका है तथा बार-बार उनके  
भाषणों के दौरान रुकावट डाली है। जो भी मुद्दे विपक्षी दल के नेताओं द्वारा उठाये जाते रहे, उन्हें पिछली सरकारों की  
उदाहरणें देकर नकारने का प्रयास किया जाता रहा है। यह उचित व्यवहार नहीं है। उन्हें विपक्षी दल द्वारा पूछे सवालों के  
जवाब देने चाहिएं।
क् मार्च को विधानसभा में विा मंत्री हरपाल सिंह चीमा द्वारा बजट पेश किया जाना है। यदि कांग्रेस पार्टी के विधायक  
मुयमंत्री का बायकाट जारी रखते हैं तो स्वाभाविक है कि बजट पेश किए जाने के दौरान जब मुयमंत्री सदन में उपस्थित  
होंगे तो कांग्रेस के विधायक विधानसभा की कार्रवाई में भाग नहीं लेंगे।
हम समझते हैं कि विधानसभा के स्पीकर को पहलकदमी करके बजट पेश किए जाने से पहले ही मुयमंत्री भगवंत मान  
तथा कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रताप सिंह बाजवा के मध्य समझौता करवाना चाहिए ताकि बजट पेश करने के दौरान  
समूचे विपक्ष की विधानसभा में उपस्थिति सुनिश्चित बनाई जा सके। स्पीकर कुलतार सिंह संधवां की ऐसी पहलकदमी ही  
सााधारी पक्ष तथा विपक्ष के मध्य संबंधों को बेहतर बना सकती है तथा इसी प्रकार ही विधानसभा को बेहतर ढंग के  
साथ चलाने के लिए माहौल बनाया जा सकता है। बात केवल एक विधानसभा के अधिवेशन की नहीं, अपितु समूचे रूप  
से प्रदेश में  रचनात्मक राजनीतिक माहौल बनाने हेतु स्पीकर कुलतार सिंह संधवां को अपनी भूमिका निभानी चाहिए  
तथा साा पक्ष को प्रेरित करना चाहिए कि वह विपक्षी पार्टियों के प्रति कट्टरता वाला रवैया छोड़ कर उचित रवैया  
अपनाए।
जिस प्रकार कि हमने ऊपर लिखा है कि पंजाब मौजूदा समय में बहुत बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है, उन  
चुनौतियों का बेहतर ढंग से मुकाबला तभी किया जा सकता है यदि प्रदेश के अलग-अलग ज्वलंत मुद्दों पर राजनीतिक  
पार्टियों में आम सहमति बने। हमारे विचार के अनुसार विशेष रूप से निनलिखित मुद्दों पर आम सहमति ज़रूर बनाई  
जानी चाहिए :
क्. इस समय सबसे अहम मुद्दा प्रदेश में अमन-कानून की बिगड़ रही स्थिति है। ख्फ् फरवरी को अमृतपाल सिंह तथा  
उसके  साथियों द्वारा जिस तरह अजनाला के थाने पर हमला किया गया तथा उसी दौरान तोड़-फोड़ की गई तथा कुछ  
पुलिस कर्मचारियों को घायल भी कर दिया गया, उससे देश-विदेश में पंजाब का नाम बदनाम हुआ है। इसी तरह  
गोइंदवाल  की सुरक्षा के पक्ष से बहुत ही नाज़ुक जेल में जिस प्रकार गैंगस्टरों के दो गुटोंं में खुल कर लड़ाई हुई, जिस  
दौरान दो गैंगस्टर मारे गए उसने भी यह स्पष्ट प्रभाव दिया है कि प्रदेश में अमन-कानून की स्थिति बेहद खराब है।  
अमन-कानून की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए मुयमंत्री को सर्वदलीय बैठक बुला कर उनके साथ विचार-विमर्श करना  
चाहिए तथा उस चर्चा की रौशनी के सन्दर्भ में ठोस योजनाबंदी बना कर अमन-कानून की स्थिति को नियन्त्रित किया  
जाना चाहिए तथा अपराधियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करके आम लोगों तथा पुलिस के मनोबल को भी ऊंचा रखा जाना  
चाहिए।
ख्. दूसरा बड़ा मुद्दा प्रदेश में दिन-प्रतिदिन बढ़ता विाीय संकट है। जिस तरह पिछली अकाली दल-भाजपा तथा कांग्रेस की  
सरकारें ऋण लेकर लोगों को मुत की सुविधाएं देती आ रही थीं, उसी प्रकार की नीतियां वर्तमान आम आदमी पार्टी ने भी  
अपनाई हुई है। परन्तु पंजाब के विाीय स्रोत बेहद सीमित हैं,  मौजूदा समय में प्रदेश पर फ् लाख करोड़ का ऋण है,  
पिछले क्-क्क् महीनों में आम आदमी पार्टी ने फ् हज़ार करोड़ का ऋण और ले लिया है। यदि यह सरकार भी पिछली  
प्रदेश सरकारों की भांति अपनी अलग-अलग मुतखोरी की योजनाओं को जारी रखती है तो प्रदेश के सिर पर ऋण और भी  
तेजी के साथ बढ़ेगा। इस समय हालात ऐसे हो सकते हैं कि प्रदेश सरकार और ऋण लेने के समर्थ नहीं रहेगी तथा इससे  
पंजाब की स्थिति श्रीलंका तथा पाकिस्तान की तरह हो जाएगी। इससे पहले कि यह हालात बनें सााधारी पक्ष तथा  
विपक्षी पार्टियों को आम सहमति बना कर मुतखोरी की योजनाओं पर प्रतिबंध लगाना चाहिए तथा आपसी मुकाबलेबाज़ी  
में ऐसा रास्ता नहीं चुनना चाहिए जिससे पंजाब के समक्ष और बड़ी समस्याएं खड़ी हो जाएं।
फ्. तीसरा महवपूर्ण मुद्दा अपनी युवा पीढ़ी के लिए रोज़गार के बेहतर अवसर पैदा करना है, योंकि +ख् के बाद पंजाब के  
ज्यादातर युवा यहां पर अपना कोई भविष्य नहीं देखते तथा वह विदेशों की ओर पलायन करते जा रहे हैं। एक तरह से  
पंजाब उजड़ रहा है। इसलिए प्रदेश में कृषि विभिन्नता लाने की ज़रूरत है, केन्द्र सरकार के साथ बातचीत करके नई   
फसलों के मंडीकरण को सुनिश्चित बनाने की ज़रूरत है तथा इसके साथ-साथ प्रदेश में कृषि आधारित तथा अन्य उद्योग  
लगाने के लिए ठोस नीतियां बनाने की ज़रूरत है। इसके लिए भी विपक्षी पार्टियों के साथ बातचीत करके तथा केन्द्र  
सरकार के साथ विचार-विमर्श करके ठोस नीति बनाने की ज़रूरत है। यदि सााधारी पक्ष तथा विपक्ष एकजुट होकर इस  
मुद्दे के लिए केन्द्र सरकार के पास जाती हैं तो आवश्यक रूप से केन्द्र सरकार कृषि विभिन्नता के लिए ठोस योजनाबंदी  
करने तथा प्रदेश में लगाये जाने वाले कृषि आधारित उद्योगों को पहाड़ी प्रदेशों की तरह टैस पर छूट देने के लिए सहमत  
हो सकती है। परन्तु इसके लिए केन्द्र सरकार को तभी विवश किया जा सकता है यदि प्रदेश की राजनीतिक पार्टियां स्वयं  
एकजुट होकर इस संबंध में एक मंच पर आएं।
ब्. पंजाब के दिन-प्रतिदिन बिगड़े रहे पर्यावरण संतुलन तथा गहरे होते जा रहे भूमिगत पानी संबंधी भी आम सहमति के  
साथ पहलकदमी करने की ज़रूरत है।
इसके अलावा भाखड़ा प्रबंधकीय बोर्ड में पुनः प्रतिनिधित्व हासिल करना, नदियों के पानी संबंधी न्याय हासिल करना तथा  
राजधानी चंडीगढ़ हासिल करना अन्य मुद्दे हैं, जिन पर सहमति बना कर चलने की ज़रूरत है॥
परन्तु यदि मौजूदा समय की भांति साा पक्ष तथा विपक्षी पार्टियों के मध्य अंधा टकराव चलता रहता है तथा प्रदेश में  
मुतखोरी की नीतियां पहले की तरह चलती रहती हैं, अमन-कानून की स्थिति इसी प्रकार बिगड़ती रहती है तो पंजाब को  
उन बहुत-सी समस्याओं से बाहर नहीं निकाला जा सकेगा, जिनमें इस समय प्रदेश तथा इसके लोग फंसे हुए हैं। अब यह  
देखना बनता है कि मौजूदा चुनौतियों को मुय रख कर साापक्ष तथा विपक्षी पार्टियां कितनी ज़िमेदारी का प्रगटावा करती  
हैं।