जंग-ए-आज़ादी यादगार की जांच तो महज़ एक बहाना -वक्त की सरकार का ‘अजीत’ है असल निशाना

आज जब मैंने ‘अजीत’ के साथ हो रहे अन्याय के बारे में कलम उठाई है, तो मेरे ज़ेहन में, पंजाबी की यह कहावत कि ‘एक घर तो डायन भी छोड़ देती है’ ने आकर दस्तक दी है। मैं देना तो मात्र ‘अजीत’ के पक्ष में, एक संक्षिप्त-सा बयान ही चाहता था, परन्तु धीरे-धीरे मेरे मस्तिष्क में विचार उभरते गये तो मेरा बयान, स्वत: ही एक विषय बन गया। 
‘अजीत’ पंजाबी मां बोली का देश-विदेश में सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला, एक प्रमुख, दैनिक पंजाबी समाचार-पत्र है जो विगत लगभग 68 वर्षों से, पंजाबी पत्रकारिता के क्षेत्र में पंजाबी मां-बोली की निरन्तर सेवा कर रहा है। ‘अजीत’ ने पंजाब, पंजाबी, पंजाबियों एवं सिख पंथ पर उपजे प्रत्येक संकट के समय दृढ़ता के साथ, हक एवं सच का पक्ष-पोषक एवं ‘ध्वजवाहक-पहरेदार’ बन कर अपनी अपेक्षित भूमिका को बड़ी बेबाकी के साथ निभाया है।
पंजाब में एक नव्य एवं भव्य जंग-ए-आज़ादी यादगार जैसी ‘धरोहर’ की स्थापना आधुनिक पंजाब की बड़ी यादगार उपलब्धियों में से एक है तथा यह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण एवं सृजनात्मक रचना है जिसकी अद्भुत छवि किसी अजूबे से कम नहीं। यह स्मारक, पंजाब प्रांत एवं पूरे भारत की न केवल मौजूदा, अपितु आगामी पीढ़ियों के लिए भी जंग-ए-आज़ादी के इतिहास में, पंजाब की ओर से निभाई गई शानदार भूमिका की भावी विश्व में चर्चा करता रहेगा। जंग-ए-आज़ादी की यादगार स्थापित करने के इस चुनौतीपूर्ण कार्य को सम्पूर्ण करने में, ‘अजीत’ समाचार-पत्र के सम्पादक, डाक्टर बरजिन्दर सिंह हमदर्द की सूझबूझ, काल्पनिक दूरदृष्टि एवं साधना न केवल काबिल-ए-ताऱीफ है, अपितु काबिल-ए-ताज़ीम भी है तथा उनके संरक्षण एवं निगरानी में, वर्षों तक कार्य करता रहा सम्पूर्ण समूह ऐसी ही प्रशंसा एवं सराहना का हकदार है। 
बड़े दुख की बात है कि जंग-ए-आज़ादी की यादगार जैसी एक महान धरोहर की शानदार रचना की प्रशंसा करने की बजाय, इसे किसी जांच के दायरे में लेना एक बड़ी बेसमझी नहीं तो और क्या है? 
बुद्धि, विवेक एवं व्यवहारिक ज्ञान से शून्य इस सोच को अंधी बदलाखोरी किसी भी तरह सही नहीं है। मुझे इस पूरे मंज़र में प्रशासनिक सूझबूझ की गहराई एवं योग्यता का अंश, कहीं नज़र नहीं आ रहा। ़फैज़ अहमद ़फैज़ साहिब की नज़्म का एक बहुत अनुकूल शे’अर याद आ रहा है:
‘निसार मैं तिरी गलियों के ऐ वतन कि जहां,
चली है रस्म कि कोई ना सर उठा के चले।
जो कोई चाहने वाला तव़ाफ को निकले,
नज़र चुरा के चले, जिस्म-ओ-जां बचा के चले।
बने है अहिल-ए-हवस मुद््दई भी, मुन्स़िफ भी, 
किसे वकील करें, किस से मुन्स़फी चाहें।’
मेरी दृष्टि में, जंग-ए-आज़ादी की यादगार की जांच तो महज़ एक बहाना है;  वास्तव में तो ‘अजीत’ समाचार पत्र का सच एवं इसके मुख्य सम्पादक डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द के बेबाक सम्पादकीय ही, भगवंत मान की सरकार की ‘बदल़ाखोर’ नीति का वास्तविक निशाना हैं। 
अ़फसोस, कि भारत देश में आज स्वतंत्र पत्रकारिता का युग सिमटता जा रहा है। प्रत्येक ओर ‘गोदी मीडिया’ का प्रसार है। सच को हर-सू-द़फन करना, सरकार की नीति है परन्तु इसके बावजूद इस तारीक दौर में, कुछ जुगनू टिमटिमाते हुये सत्य पर पहरा दे रहे हैं। 
पांचवें पातशाह, गुरु अर्जुन देव जी का पावन-पवित्र फुरमान है :
दावा अग्नि बहुतु तृण
 जाले कोई हरिया बूटु रहिओ ही।।
(अंग-383)
(अर्थात: जब जंगल को आग लगती है तो बहुत-सा घास-फूस जल कर राख हो जाता है परन्तु कोई विरल हरित वृक्ष फिर भी बच जाता है)
पंजाब की आवाज़ के रूप में जाने जाते ‘अजीत’ समाचार पत्र ने अपने अस्तित्व के दौरान अनेकानेक आंधियों एवं बवंडरों को झेला है परन्तु ‘अजीत’ प्रत्येक आंधी एवं बवंडर के तीव्रतम वेग को सहन करते हुये स्थिरता के साथ खड़े रहने की क्षमता रखता है। 
‘अजीत’ ने स. बेअंत सिंह के काल के ‘तारीक दौर’ के  सैंसर भी देखे हैं  तथा ‘अजीत’ के मुख्य सम्पादक डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द के विरुद्ध टाडा लगाये जाने की धमकियों के दौर भी देखे हैं, तथा कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की वर्ष 2002 वाली सरकार के समय लगाई गई, सरकारी विज्ञापनों की पूर्ण पाबन्दी भी देखी है, परन्तु ‘अजीत’ देश-दुनिया में बसने वाले पंजाबियों की मोहब्बत के बल पर स्थिरता के साथ खड़ा रहा है। ‘अजीत’ का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सका। यह बात अलग है कि प्रत्येक शासक ने अपने समय के दौर में कमीनगी का प्रदर्शन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, परन्तु ‘अजीत’ सदैव विजयी रहा। इसके पृष्ठ सत्य लिखते एवं सत्य प्रकाशित करते गये तथा इसका ‘सम्पादकीय कॉलम’ बिना किसी दबाव एवं लालच के, बेबाकी के साथ कटु सच्चाइयों का सच उभारता एवं निखारता रहा। समय की सरकारों को सदैव सत्य से बदहज़्मी होती रही, सरकारें अपनी कमीनगी से बाज़ नहीं आईं परन्तु ‘अजीत’ अपने सत्य पर कायम रहा, इसीलिए इसका नाम ‘अजीत’ है। 
शाला! ‘अजीत’ का यह अज़्म सदैव सलामत रहे :
‘हमने उन तुंद-हवाओं में जलाये हैं चिऱाग,
जिन हवाओं ने उलट दी हैं, बिसातें अक्सर।’

पूर्व डिप्टी स्पीकर,  पंजाब विधानसभा
मो. 98140-33362