कृषि के लिए अभिशाप बन रहा मौसम का बदलता ंिमज़ाज

 

जिस समय मैं ये पंक्तियां लिख रहा हूं, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रह रहकर बादल आ-जा रहे हैं। अगर मौसम के इस मिज़ाज को भारतीय मौसम विभाग द्वारा की गई भविष्यवाणी से जोड़कर देखा जाए तो अगले 3 दिनों तक यानी 2 अप्रैल  तक इसके ऐसे ही रहने की सम्भावना है। मौसम विभाग का कहना है कि इस दौरान पश्चिमी विक्षोभ के कारण देश के उत्तरी हिस्से में मौसम काफी खराब रहेगा, लेकिन यह मौसम कोई अचानक खराब नहीं हुआ। अगर पिछले 28 से 32 दिनों पर हम पलटकर एक निगाह डालें तो पाएंगे कि न सिर्फ उत्तर भारत में बल्कि पश्चिम सहित देश के उत्तर-पूर्व और दक्षिण के इलाकों में भी पिछले 28 से 30 दिनों के बीच कम से कम 15 से 16 दिन तक किसी न किसी रूप में, किसी न किसी हिस्से में मौसम खराब रहा है। इस दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों में 8 से लेकर 26-27 मिमी. तक बारिश हुई है। 4 राज्यों में मोटे-मोटे ओलों पड़े हैं। तीन लाख एकड़ से ज्यादा गेहूं की फसल हवा, बारिश और ओलावृष्टि के कारण ज़मीन पर बिछ गई है, जिसका मतलब यह है कि अब इसमें अनुमान से आधा भी उत्पादन हो जाए तो बहुत बड़ी बात होगी।
हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, मध्य प्रदेश, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान आदि प्रांतों में पिछले एक महीने के दौरान अलग-अलग समय पर रह-रहकर जो बारिश हुई है, जो ओलावृष्टि हुई है और जो तेज़ हवाएं चली हैं या कहें आंधियां आयी हैं, उससे इस पूरे इलाके में कम से कम अब तक के अनुमान के मुताबिक 40 से 50 फीसदी भिन्न-भिन्न तरह की फसलें बर्बाद हो गई हैं। हालांकि इतने बड़े पैमाने पर हुए नुकसान का कोई अधिकृत सरकारी आंकड़ा तो नहीं आया, लेकिन अगर पुराने नुकसान के आधार पर इसका कुछ अनुमान लगाया जाए तो पिछले एक महीने के भीतर कम से कम 6 से 7 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ लगता है। हालांकि कुछ संगठनों का यह भी मानना है कि अब तक के हुए इस नुकसान के बावजूद गेहूं की बम्पर पैदावार होगी। अगर ऐसा हो जाता है तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन जिस तरह से कृषि बार-बार मौसम की मार झेल रही है, उससे लगता नहीं है कि यह अनुमान सही साबित होगा। 
यह दोहराने की ज़रूरत नहीं है कि हाल के सालों में हर गुज़रते दिन के साथ मौसम का मिज़ाज बदल रहा है और यह लगातार किसान और कृषि के लिए अभिषाप बन रहा है। कृषि पर बार-बार टूट रहा यह कहर बदलते मौसम का ही नतीजा है। भारत जैसे देश में जहां बहुत गर्मी पड़ती है और एक बड़े हिस्से में बहुत ज्यादा ठंड भी पड़ती है, वहां रबी की फसल देश का पेट भरने के लिए मुख्य फसल होती है। लेकिन दिसम्बर 2022 से लेकर मार्च के अंत तक जिस तरह बार-बार गेहूं की फसल को बदलते मौसम की मार झेलनी पड़ी हैं, वह गेहूं के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव डाल सकती है।
वैसे यह अकेले इस मौसम की त्रासदी नहीं है। अगर फरवरी 2022 से फरवरी 2023 के बीच के 365 दिनों को एक नज़र से देखें तो शायद यह पिछले 200 सालों में पहला ऐसा साल है, जब 365 में से 192 दिनों से ज्यादा मौसम वैसा नहीं रहा, जैसा रहता है यानी इन दिनों मौसम बहुत प्रबल स्थिति में रहा है। बहुत ज्यादा गर्मी, बहुत ज्यादा सर्दी, बेमौसमी बारिश, आंधी और चक्रवाती तूफान, कुल मिलाकर इस बार यह सब हुआ है। अगर साल के इन दिनों को आपस में जोड़ लें तो इस साल छह महीने से ज्यादा मौसम खराब रहा है। इसका साफ  संकेत है कि मौसम लगातार कृषि के प्रतिकूल हो रहा है। 
तात्कालिक स्थिति में भी यह महज किसानों की ही त्रासदी नहीं है, हालांकि यह बात भी सही है कि प्रत्यक्ष रूप से इस बेमौसमी बारिश का सबसे ज्यादा नुकसान किसानों को ही हुआ है। लेकिन इसकी मार देश के हर नागरिक को झेलनी पड़ रही है और आगे भी झेलनी पड़ेगी। इस साल अब तक जो तीन महीने गुज़रे हैं, उन तीन महीनों में ज्यादातर दिनों में सब्जियां सामान्य से ज्यादा महंगी बिकी हैं, जिसका कारण बेमौसमी बारिश, भीषण गर्मी और जनवरी में पड़ी कड़ी सर्दी रहा है। फरवरी और मार्च के शुरुआती दिनों में सामान्य से 10 सेंटीग्रेड तक ज्यादा तापमान ने जहां कृषि के लिए विपरीत स्थितियां पैदा कीं, वहीं मार्च के दूसरे पखवाड़े में लगातार बेमौसमी बारिश और आंधी ने हर तरह की फसल को भारी नुकसान पहुंचाया है।
यह पहला ऐसा साल है कि मार्च के महीने में ही दिल्ली और मुम्बई में 120 से 150 रुपये प्रति किलो तक भिंडी बिकी है और लौकी, तोरी व कद्दू भी 50 से 70 रुपये प्रति किलो रहे हैं। निश्चित रूप से इसकी वजह यही बेमौसमी बारिश, आंधी और भीषण गर्मी रही है। सब्ज़ियों की कीमतों में ये आसमानी उछाल इस बात का गवाह है कि खराब मौसम ने सब्ज़ियों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया है और अब जिस तरह से गेहूं की फसल कटने और कुछ इलाकों में अंतिम रूप से पकने के पहले मौसम ने अपना यह रूप दिखाया है, उससे साफ  है कि गेहूं की फसल को भी बड़ा नुकसान हुआ है। 
इस बिगड़े मौसम के कारण हुए नुकसान के लिए सरकार पर किसानों को मुआवज़ा देने के लिए दबाव तो बनाया जा सकता है, लेकिन इस दबाव से न तो मौसम का मिज़ाज बदलने वाला है और न ही किसानों की समस्या का हल निकलने वाला है। अब गंभीरता से सोच-विचार करने का मौका आ गया है कि हम अपनी कृषि के पैटर्न को बदलें, पर्यावरण और पारिस्थितिकी की जो मौजूदा स्थिति है, उसी के अनुरूप अपनी फसलों और फसल चक्र को व्यवस्थित करें नहीं तो कड़ी मेहनत के बावजूद देश में बड़े पैमाने पर अन्न संकट पैदा हो सकता है। ऐसे में यह ज़रूरी है कि हम जितना जल्दी हो सके अपनी कृषि, किसानी गतिविधियों को प्रकृति के अनुरूप ढाल लें और इस आपदा से मुकाबला करने के लिए खुद को तैयार करें। 


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