मोदी हटाओ अभियान में विपक्षी कवायद का सबब

 

अनेक क्षेत्रीय दलों में विभक्त भारत का विपक्ष परेशान है। कांग्रेस अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है। अनेक राष्ट्रीय दलों से उनके राष्ट्रीय होने का दर्जा छिन चुका है। आम आदमी पार्टी को उसके प्रदर्शन के आधार पर राष्ट्रीय दल का दर्जा प्राप्त हो चुका है। सबसे अधिक अस्तित्व संकट बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार के सम्मुख है। अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते वह बरसों से देश के प्रधानमंत्री बनने का स्वप्न देखते रहे हैं, जो नरेंद्र मोदी जैसे व्यक्तित्व के सम्मुख किसी भी स्तर पर नहीं टिकता। यही कुंठा उन्हें परेशान किए जा रही है। 
यदि ऐसा न होता तो वह मोदी हटाओ अभियान की अगुवाई करते हुए जगह-जगह विपक्षी एकता का राग न अलापते। 
इस कड़ी में नितीश कुमार कांग्रेस नेताओं से मिलने के उपरांत पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से मिले। वह अपनी इस कवायद को जेपी आंदोलन का नाम देने का प्रयास कर रहे हैं, किन्तु यह भूल गए हैं कि सर्वोदयी नेता जयप्रकाश नारायण  सम्पूर्ण क्त्रांति का नारा उस तानाशाही शासन के विरूद्ध दिया था, जिसमें एक तानाशाह ने न्याय की अवहेलना करके आपातकाल घोषित किया था तथा निरपराध लोगों को जेल में ठूंसकर प्रेस पर सेंशरशिप लागू  की थी। उस समय जन-जन में केंद्रीय सत्ता के प्रति आक्रोश था तथा अधिकांश विपक्षी दलों ने अपने अपने अस्तित्व को समाप्त करके जनता पार्टी में अपना विलय कर दिया था। वर्तमान में वैसी स्थिति नहीं है। न तो जनता में केंद्रीय सत्ता के प्रति आक्रोश है और न ही जूतों में बटी दाल की तरह परिवारवादी दलों में अपने अस्तित्व को समाप्त करके मोदी विरोध की समर्पित भावना। कहना गलत न होगा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की बढ़ती साख तथा घोटालामुक्त शासन विपक्ष के स्वार्थी तत्वों को रास नहीं आ रहा है। 
जनता में विपक्ष के प्रति आस्था का कम होना भी विपक्ष के सम्मुख अस्तित्व संकट उत्पन्न कर रहा है। ऐसे में जनसामान्य में विपक्ष के प्रति अविश्वास ने विपक्ष की नींद हराम कर रखी है। विपक्ष जिस जातीय संकीर्णता से मतदाताओं को अपनी जेबी वोट समझ रहा है, जागरूक मतदाता उस मिथक से खुद को दूर कर चुका है। पता नहीं कि विपक्षी किस कल्पनालोक में विचरण कर रहे हैं। वह अपने चेहरे पर वोट मिलने की कल्पना कर रहे हैं, किन्तु अपने अपने अहम् के चलते एक-दूसरे के प्रति समर्पित होने का जज़्बा उनमें नहीं है। विपक्ष का बड़ा चेहरा शारद पँवार महाविकास अघाड़ी के भविष्य को लेकर प्रश्न खड़ा कर चुका है। भ्रष्टाचार के मामलों में आरोप सिद्ध एवं सजायाफ्ता नेता किस आधार पर जननायक बनने के स्वप्न देख रहे हैं यह भी आश्चर्यजनक है। 
नि:संदेह बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार मोदी हराओ अभियान हेतु विपक्षी एकता में जुटे हैं तथा इस अभियान को जेपी क्रांति से जोड़ने की बात कर रहे हैं, जबकि यह नहीं भूलना चाहिए कि नितीश कुमार किसी भी दृष्टि से सर्वोदयी नेता जय प्रकाश नारायण के पासंग भी नहीं हो सकते। अंत: स्पष्ट है कि जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति के नारे को पर्याप्त जनसमर्थन मिला हुआ था। यही नही उनके आवाहन पर अनेक विपक्षी दलों ने बिना किसी नानुकर के अपने दलों का विलय जनता पार्टी कर दिया था।क्या आज किसी भी राजनीतिक दल में इतना साहस है कि संयुक्त विपक्षी गठबंधन हेतु अपने अपने दलों का विलय किसी एक मोर्चे में कर दें? यदि नहीं तो विपक्षी एकता का नाटक क्यों?


-ब्रह्मपुरी, मेरठ