झीलों व जलाशयों की उपेक्षा से गंभीर होता जल संकट

विश्व में झीलों पर मंडरा रहे खतरों पर की गई एक ताज़ा शोध में कहा गया है कि दुनिया की आधे से अधिक सबसे बड़ी झीलों और जलाशयों में पानी लगातार घट रहा है और वे सूखने की कगार पर हैं। इसके कारण धरती के कई हिस्सों में जल सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। झीलों और बड़े जलाशयों के सूखने का सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन, बढ़ती गर्मी और बढ़ती पानी की खपत को माना जा रहा है। ऐसे समय में जब पेयजल का गंभीर संकट महसूस किया जा रहा है और पानी के प्राकृतिक स्रोतों के संरक्षण पर ज़ोर दिया जा रहा है, यह इस शोध से हुआ नया खुलासा और चिंता पैदा करता है। व्यवस्थित रूप से इस संकट का अध्ययन करने के लिए एक टीम में अमरीका, फ्रांस और सऊदी अरब के वैज्ञानिक शामिल थे। इन लोगों ने 1992 से 2020 तक की सेटेलाइट तस्वीरों का उपयोग करते हुए पृथ्वी की सबसे बड़ी 1,972 झीलों और जलाशयों को देखा। उन्होंने बड़े पैमाने पर उपग्रहों की बेहतर सटीकता के साथ-साथ इंसानों और वाइल्ड लाइफ  के लिए महत्व होने के कारण बड़े मीठे पानी की झीलों पर अपना ध्यान केंद्रित किया। 
इस अध्ययन में यह देखने की कोशिश की गई झीलों में पानी की मात्रा में लगभग 30 साल में कैसे और कितना अंतर आया है। नतीजों में पाया गया कि 53 फीसदी झीलों और जलाशयों में पानी की मात्रा में लगभग 22 गीगाटन सालाना की दर से गिरावट देखी गई। इस तरह सरकारों और जल संचय के लिए काम करने वाले सामाजिक संगठनों के लिए यह एक चेतावनी है। झीलें एक प्रकार की प्राकृतिक जलाशय है, जिनके पानी का उपयोग पेयजल और उद्योगों आदि के काम में किया जाता है। जिस तरह नदियों का जलस्तर घटते जाने की वजह से दुनिया के अनेक शहरों में पेयजल का गहरा संकट पैदा हो गया है, इसी तरह झीलें अगर सिकुड़ती गईं, तो यह संकट और गंभीर हो जाएगा। नदियों एवं झीलों में गिरते जल स्तर से आज पूरी दुनिया जल-संकट के साये में खड़ी है। अनियोजित औद्योगीकरण, बढ़ता प्रदूषण, घटते रेगिस्तान एवं ग्लेशियर, नदियों के जलस्तर में गिरावट, पर्यावरण विनाश, प्रकृति के शोषण और इनके दुरुपयोग के प्रति असंवेदनशीलता पूरे विश्व को एक बड़े जल संकट की ओर ले जा रही है।
झीलों, नदियों, जलाशयों और अन्य प्राकृतिक जलस्रोतों के सूखते जाने को लेकर लगातार अध्ययन होते रहे हैं, उनके आंकड़ों से वजहें भी स्पष्ट हैं। मगर उनके संरक्षण को लेकर जिन व्यावहारिक उपायों की अपेक्षा की जाती है, उन पर क्रियान्वयन नहीं हो पाता। झीलों का स्रोत आम तौर पर पहाड़ों से आने वाला पानी होता है। वह बर्फ  के पिघलने या फिर वर्षा के जल के रूप में संचित होता है। मगर जलवायु परिवर्तन की वजह से जिस तरह दुनिया भर में गर्मी बढ़ रही है, उसमें कई जगह पहाड़ों पर पहले की तरह बर्फ  नहीं जमती और न पर्याप्त वर्षा होती है। बरसात की अवधि कम होने से झीलों में पर्याप्त पानी जमा नहीं हो पाता।  मानव एवं जीव-जन्तुओं के अलावा जल कृषि और अधिकांश औद्योगिक उत्पादन प्रक्रियाओं के लिये भी बेहद आवश्यक है। धरती के क्षेत्रफल का लगभग 70 प्रतिशत भाग जल से भरा हुआ है, परन्तु पीने के योग्य जल मात्र तीन प्रतिशत है, इसमें से भी मात्र एक प्रतिशत मीठे जल का ही वास्तव में हम उपयोग कर पाते हैं, जिनमें झीलों एवं नदियां ही मुख्य जलस्रोत है। लेकिन मानव अपने पर्यटन, स्वास्थ्य, सुविधा, दिखावा व विलासिता में अमूल्य जल की बर्बादी करने से नहीं चूकता। 
भारत के कई हिस्सों में पानी की समस्या विकराल रूप धारण कर रही है। प्रतिवर्ष यह समस्या पहले के मुकाबले और बढ़ती जा रही है। इसका मुख्य कारण पहाड़ों पर लगातार बढ़ रहा पर्यटन और औद्योगिक वाणिज्यिक गतिविधियां हैं। पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने का एक बड़ा नुकसान यह भी हुआ है कि झीलों तथा उनके आसपास व्यावसायिक गतिविधियां बढ़ी हैं, जिसके चलते उनमें कचरा जमा हो जाता है। उनकी नियमित गाद निकालने की व्यवस्था न होने से वे उथली होती गई हैं। कई झीलों का पाट सिकुड़ता गया है। देश की प्रमुख झीलों जिनमें कश्मीर की डल झील हो या पुष्कर सरोवर या उदयपुर की झीलें, यह उपेक्षा का नतीजा तो है ही, सामाजिक संगठनों की उदासीनता भी इसका कारण है। पहले सामुदायिक जल स्रोतों की सुरक्षा सुनिश्चित होती थी, मगर अब वह परम्परा लगभग समाप्त हो गई है। 
झीलों की सेहत सुधारनी है, तो यह उदासीनता और उपेक्षा का भाव त्यागना होगा, एक सुनियोजित समझ एवं सोच झीलों के जलस्रोत एवं संरक्षण के लिये विकसित करनी होगी। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक जल उपयोग पिछले 100 वर्षों में छह गुणा बढ़ गया है, और बढ़ती आबादी, आर्थिक विकास तथा खपत के तरीकों में बदलाव के कारण यह प्रतिवर्ष लगभग एक प्रतिशत की दर से लगातार बढ़ रहा है। पानी की अनियमित और अनिश्चित आपूर्ति के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से वर्तमान में पानी की कमी वाले इलाकों की स्थिति विकराल रूप ले चुकी है। ऐसी स्थिति में, जल-संरक्षण एकमात्र उपाय है।