हेमिस फेस्टिवल - जब रंग-बिरंगे मुखौटे लगा नाचते हैं बौद्ध भिक्षु

28-29 जून लद्दाख के हेमिस फेस्टिवल पर विशेष

इन दिनों लद्दाख में खूब चहल पहल है। हर तरफ रौनक ही रौनक है। हो भी क्यों न, हेमिस फेस्टिवल जो आने वाला है। आगामी 28 और 29 जून 2023 को लद्दाख के ढाई हजार साल पुराने हेमिस बौद्ध मठ के प्रांगण में तिब्बती बौद्ध तांत्रिक परंपरा का उल्लास बिखेरते हुए लामा और बौद्ध भिक्षु अपने नृत्य कौशल से देश-विदेश के सैलानियों को मोह लेंगे। तिब्बती कैलेंडर से-चु के मुताबिक हर चंद्र मास के 10वें दिन मनाये जाने वाले इस त्यौहार में न सिर्फ समूचा लद्दाख उल्लास और उमंग में डूबा होता है बल्कि उनके साथ पूरी दुनिया से यहां आये सैलानी भी खूब मस्ती में होते हैं। 
यूं तो पूरे लद्दाख में इस त्यौहार की धूम रहती है, लेकिन इसका केन्द्र यही हेमिस बौद्ध मठ होता है, जहां बौद्ध भिक्षु और लामा रंग बिरंगे मुखौटे पहनकर जबरदस्त तरीके से नृत्य करते हैं। यह नृत्य यहां से बुरी आत्माओं को भगाने के लिए होता है। कई सालों बाद इस साल मई महीने में ही लेह और उसके आसपास की हर रूकने वाली जगह पहले से ही सैलानियों से भर चुकी है। कोरोना महामारी के बाद पहली बार हेमिस फेस्टिवल को इतनी धूमधाम से मनाये जाने की तैयारी है। अगर टूरिस्ट ऑपरेटरों की मानें तो इस साल जून के पहले सप्ताह तक ही इतने सैलानी लद्दाख पहुंच चुके हैं, जितने पहले कभी नहीं गये। इसलिए इस साल इस फेस्टिवल की मस्ती देखने वाली होगी। 
हेमिस फेस्टिवल एक तरह से लद्दाख की सांस्कृतिक पहचान है। लद्दाख हिंदुस्तान की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है और यहां के लोग भी उतने ही सुंदर और भोले भाले हैं। ये सैलानियों से अपने घर परिवार के लोगों जैसा प्यार करते हैं। शायद यही वजह है कि सैलानी भी यहां हेमिस फेस्टिवल को इस तरह मनाते हैं, जैसे वह हमेशा से इसे मनाते आए हों। इस फेस्टिवल का मुख्य आयोजन लद्दाख के सबसे बड़े बौद्ध मठ हेमिस गोम्पा में किया जाता है। चारो तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ यह बौद्ध मठ दुनिया की सबसे खूबसूरत धार्मिक व आध्यात्मिक जगहों में से एक है। यह त्यौहार गुरु पद्मसंभव को सम्मान देने के लिए भी मनाया जाता है। गौरतलब है कि तिब्बत में गुरु पद्मसंभव तांत्रिक बुद्धिज्म के संस्थापक हैं और तिब्बतियन कैलेंडर के चंद्र मास के 10वें दिन उनका जन्मदिन भी होता है, तो एक तरह से यह उनके जन्मदिन को मनाने का भी जरिया है। 
हेमिस फेस्टिवल में पूरा लद्दाख उमंग और उल्लास में होता है। हर तरफ  लोग रंग बिरंगे वेशभूषा में मुखौटे पहने हुए नृत्य की मुद्रा में होते हैं। इस दिन सबसे दर्शनीय नृत्य हेमिस मठ में छाम नाम के लामा बौद्ध भिक्षुओं द्वारा किया जाता है। ये लोग अपनी नृत्य मुद्राओं से राक्षसों को तिब्बत से भगाने का अभिनय करते हैं। ये मुखौटा पहनकर यमो की भूमिका में होते हैं। इस फेस्टिवल में लोग झूमकर ढोल, मंजीरे और तमाम दूसरे स्थानीय वाद्य यंत्रों की धुनों पर नाचते गाते हैं। इनका नाच देखते हुए सैलानी भी उमंग में आ जाते हैं और वो इनके साथ जमकर नाचते हैं। माना जाता है कि जो इस नृत्य में भाग नहीं लेता, उसे पूरे साल बुरी आत्माएं परेशान करती हैं। इसलिए करीब करीब हर लद्दाखी इस नृत्य में डूबा होता है। 
नाचने गाने के दौरान खूब खाना पीना भी चलता रहता है। कई तरह के विशेष तिब्बती पेय और तरह तरह की खाने की चीजें, लोग अपने अपने घरों से लाकर उन समूहों के बीच इकट्ठा कर देते हैं, जहां लोग घेरा बनाकर नाच, गा और मस्ती कर रहे होते हैं। कहते हैं जो इस फेस्टिवल में हिस्सा लेता है, वह पूरे साल स्वस्थ और उमंग व उत्साह से भरा रहता है। दरअसल यह नृत्य और यह पूरा सामूहिक उत्सव तिब्बती तांत्रिक परंपरा का एक हिस्सा है, जिसका नेतृत्व छाम लामाओं द्वारा किया जाता है। हालांकि छाम केवल मठों में ही नृत्य करते हैं और उनके नृत्य की नकल पूरे लद्दाख में गली गली में होती है। वास्तव में यह परंपरा तिब्बत के तांत्रिक बुद्धिज्म की शिक्षाओं का हिस्सा है। गुरु पद्मसंभव को बुद्ध के बाद दूसरे सबसे बड़े गुरु का दर्जा दिया जाता है और माना जाता है कि तिब्बत अगर बुरी आत्माओं से मुक्त है तो यह गुरु पद्मसंभव की वजह से ही है।  हेमिस बौद्ध मठ साल 1630 में लद्दाख के एक शक्तिशाली राजा सेन्ग नामग्याल द्वारा बनवाया गया था। हेमिस फेस्टिवल दो हिस्सों में आयोजित होता है। दायीं और असेंबली हॉल है और बायीं ओर मुख्य मंदिर। इस त्यौहार के दौरान नर्तकियों द्वारा मठ के हॉल दुखांक का ‘ग्रीन रूम’ के रूप में उपयोग किया जाता है। इस फेस्टिवल के दौरान यहां कच्चे चावल, टॉरम्स यानी आटे और मक्खन को गूंथकर बनाया गया मिश्रण और अगरबत्तियां रखकर पूजा की जाती है, जो भी लोग इस उत्सव में हिस्सा लेते हैं, वे अपने और पूरे लद्दाख समाज की सुख और शांति की कामना करते हैं। जब लद्दाख तक पहुंचने के सुरक्षित रास्ते नहीं थे, तब भी लोग अपनी जान जोखिम में डालकर इस नृत्योत्सव में भाग लेने के लिए जाते थे। आज तो यह देश, विदेश के लोगों का बहुप्रतीक्षित फेस्टिवल है।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर